चंद्रयान-3 : कोरोना से भी नहीं रुकी रफ्तार, 4 साल तक लगे रहे वैज्ञानिक, जानें- कौन हैं ISRO के हीरो

भारत अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में बुधवार को एक नया मुकाम हासिल करने की ओर अग्रसर है. हालांकि इस कामयाबी के पीछे हज़ारों वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और टेक्नीशियनों की कड़ी मेहनत है.

नई दिल्ली:

भारत बुधवार को अंतरिक्ष विज्ञान में एक नया इतिहास रचने वाला है. चंद्रयान-3 का लैंडर बुधवार शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा. अगर ये सफल रहता है तो भारत- अमेरिका, रूस और चीन के साथ ये उपलब्धि हासिल करने वाला चौथा देश बन जाएगा. वहीं दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला भारत पहला देश होगा. ये पल ऐसे ही नहीं आए, देश को गर्व के ये क्षण देने के पीछे हज़ारों वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और टेक्नीशियनों की कड़ी मेहनत है और इस मेहनत को एक लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए जिन प्रमुख हस्तियों ने दिशा दिखाई, उनका ज़िक्र किया जाना भी बेहद ज़रूरी है.

डॉ एस सोमनाथ, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के चेयरमैन
चंद्रयान-3 मिशन इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ के नेतृत्व में आगे बढ़ा है. एक एयरोस्पेस इंजीनियर रहे एस सोमनाथ ने उस रॉकेट के डिज़ाइन में बड़ी भूमिका अदा की, जिसने चंद्रयान-3 को उसकी कक्षा में पहुंचाया. व्हीकल मार्क 3 को बाहुबली रॉकेट भी कहा गया. एस सोमनाथ प्रतिष्ठित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस, बेंगलुरु के छात्र रहे हैं. ख़ास बात ये है कि वो संस्कृत के जानकार भी हैं और यानम नाम से संस्कृत भाषा की एक फिल्म में अभिनय कर चुके हैं. उनके नाम सोमनाथ का अर्थ ही है चंद्रमा का देवता.

चंद्रयान-3 के बाद अगला कदम कौनसा? जानें- ISRO की टाइमलाइन में अब और क्या-क्या है?

डॉ उन्नीकृष्णन नायर एस, थिरुवनंतपुरम विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के निदेशक

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डॉ उन्नीकृष्णन नायर रॉकेट के विकास और निर्माण से जुड़े विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के निदेशक हैं. पेशे से एयरोस्पेस इंजीनियर डॉ उन्नीकृष्णन अंतरिक्ष में भारत के मानव मिशन की अगुवाई कर रहे हैं. वो प्रतिष्ठित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस के छात्र रहे हैं और उन्हें छोटी कहानियां लिखने का शौक है. लेकिन अंतरिक्ष की दुनिया में वो एक बड़ी कहानी लिखने की ओर बढ़ रहे हैं.

श्री वीरामुथुवेल पी, चंद्रयान-3 मिशन, प्रोजेक्ट डायरेक्टर, यूआर राव सैटलाइट सेंटर, बेंगलुरु 

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जिस मिशन की ओर देश और दुनिया दम साध कर देख रही है, उस चंद्रयान-3 मिशन के प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं डॉ वीरामुथुवेल पी. बीते चार साल से उनकी ज़िंदगी दिन-रात सिर्फ़ और सिर्फ़ इसी प्रोजेक्ट के इर्द-गिर्द घूम रही है. 2019 में नाकाम हुए चंद्रयान-2 मिशन के विक्रम लैंडर की बारीक से बारीक जानकारियों ने उन्हें चंद्रयान-3 मिशन को और पुख़्ता बनाने में मदद की है.

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सुश्री कल्पना के, डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर, चंद्रयान 3 मिशन, यूआर राव सैटलाइट सेंटर, बेंगलुरु

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चंद्रयान-3 मिशन की डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ कल्पना ने बीते चार साल में अथक मेहनत की है. कोरोना महामारी के दौर की मुश्किलें भी उनके हौसले को डिगा नहीं पाईं. उनका नेतृत्व  ISRO में भारत की नारी शक्ति का प्रतीक है. उन जैसी कई महिला वैज्ञानिक और इंजीनियर जी जान से इस मिशन का कामयाब बनाने में दिन रात जुटी हुई हैं.

सुश्री एम वनिता, डिप्टी डायरेक्टर, यूआर राव सैटलाइट सेंटर, बेंगलुरु
डॉ एम वनिता चंद्रयान 2 मिशन की प्रोजेक्ट डायरेक्टर रह चुकी हैं. बेहद मृदुभाषी एम वनिता इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम्स इंजीनियर हैं और भारत के किसी भी मून मिशन का नेतृत्व करने वाली पहली महिला बनने का गौरव उन्हें हासिल है.

श्री एम शंकरन, निदेशक, यूआर राव सैटलाइट सेंटर, बेंगलुरु 

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ISRO का पावर हाउस माने जाने वाले डॉ एम शंकरन की विशेषज्ञता नायाब पावर सिस्टम्स और सोलर एरेज तैयार करने में है, जो अंतरिक्ष में उपग्रहों को ऊर्जा प्रदान करते हैं. उन्होंने ये सुनिश्चित किया कि चंद्रयान -3 मिशन के उपग्रह हॉट और कोल्ड टेस्ट में पूरी तरह खरा उतरे.

डॉ वी नारायणन, निदेशक, लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर, थिरुवनंतपुरम 

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लिक्विड प्रोपल्शन इंजन के विशेषज्ञ डॉ वी नारायणन के नेतृत्व में उनकी टीम द्वारा बनाए गए थ्रस्टर बहुत अहम भूमिका अदा करने वाले हैं. चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर कामयाबी के साथ उतरे, ये उनके बनाए थ्रस्टर्स की भूमिका पर ही निर्भर करेगा. वो क्रायोजैनिक इंजन के भी विशेषज्ञ हैं.

श्री बीएन रामकृष्ण, निदेशक, ISRO टेलीमेट्री ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (ISTRAC), बेंगलुरु 

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चंद्रयान-3 उप्रगह चांद के चारों ओर चक्कर लगा रहा है तो बीएन रामकृष्ण की टीम के इशारों पर ही. उनके ही कमांड पर अब विक्रम लैंडर आगे बढ़ रहा है. बेंगलुरु में उड़न तश्तरी की शक्ल की ISTRAC की ये इमारत दहशत के आख़िरी 20 मिनट में सबसे अहम भूमिका निभाने वाली है.

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लेकिन ये बस कुछ नाम भर हैं. इन नामों के पीछे इसरो के वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और तकनीशियनों की वो टीम है, जिस पर पूरे भारत को नाज़ है और जो आने वाले दिनों में अंतरिक्ष में भारत की बड़ी कहानी लिखने वाले हैं.