मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
असम में एनआरसी के मुद्दे पर मुख्य चुनाव आयुक्त ने बड़ा बयान दिया है. एनडीटीवी से खास बातचीत में मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा कि NRC में जिनके नाम कटे वो घबराएं नहीं, अगर वोटर लिस्ट में नाम है तो वे भी वोट सकेंगे. उन्होंने कहा कि NRC ड्राफ़्ट के आधार पर नाम नहीं हटेगा. 4 जनवरी को वोटर लिस्ट जारी हो जाएगा. उन्होंने एनडीटीवी से बातचीत में स्पष्ट किया कि 'जिनके नाम कटे हैं, वो अब भी वोटर' हैं.
मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा कि हम फ़ाइनल NRC का इंतज़ार नहीं कर सकते हैं. जब जनवरी के वोटर लिस्ट में नाम होगा तो वे सभी वोट दे सकेंगे. हालांकि, NRC से बाहर सभी 40 लाख वोटर नहीं हैं. उन्होंने कहा कि 40 लाख लोगों में बच्चे, नाबालिग भी होंगे. NRC और EC आपस में तालमेल कर रहे हैं.
क्या है नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (NRC), सिर्फ असम में ही क्यों है लागू, 6 बातें
बता दें कि असम में सोमवार को जारी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के मसौदे से कुल 3.29 करोड़ आवेदकों में से 40 लाख से ज्यादा लोगों को बाहर किए जाने से उनके भविष्य को लेकर चिंता पैदा हो गई है और साथ ही एक राष्ट्रव्यापी राजनीतिक विवाद पैदा हो गया है. नागरिकों की मसौदा सूची में 2.89 करोड़ आवेदकों को मंजूरी दी गई है. यह मसौदा असम में रह रहे बांग्लादेशी आव्रजकों को अलग करने का लंबे समय से चल रहे अभियान का हिस्सा है. 10 लाख आवेदकों को नागरिकता देने से इंकार किए जाने के बाद पैदा हुए विवाद पर केंद्र सरकार ने लोगों से भयभीत न होने और विपक्ष से इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं करने का आग्रह किया है.
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मसौदे को जारी करने वाले भारत के रजिस्ट्रार जनरल शैलेश ने कहा कि उन आवेदकों को पर्याप्त अवसर दिए जाएंगे, जो दावे और आपत्ति करना चाहते हैं. वे 30 अगस्त से 28 सितंबर तक अंतिम सूची तैयार किए जाने से पहले अपने दावे और आपित्त दाखिल कर सकते हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने असम और मोदी सरकार पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि जिन लोगों के पास आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और अन्य दस्तावेज थे, उनको भी छोड़ दिया गया, क्योंकि अधिकारी उन कागजात से संतुष्ट नहीं थे.
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क्या है एनआरसी:
देश में असम इकलौता राज्य है जहां सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था लागू है. असम में सिटिजनशिप रजिस्टर देश में लागू नागरिकता कानून से अलग है. यहां असम समझौता 1985 से लागू है और इस समझौते के मुताबिक, 24 मार्च 1971 की आधी रात तक राज्य में प्रवेश करने वाले लोगों को भारतीय नागरिक माना जाएगा.
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) के मुताबिक, जिस व्यक्ति का सिटिजनशिप रजिस्टर में नहीं होता है उसे अवैध नागरिक माना जाता है्. इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था. इसमें यहां के हर गांव के हर घर में रहने वाले लोगों के नाम और संख्या दर्ज की गई है.
एनआरसी की रिपोर्ट से ही पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं है. आपको बता दें कि वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी जमीन असम में थी और लोगों का दोनों और से आना-जाना बंटवारे के बाद भी जारी रहा. इसके बाद 1951 में पहली बार एनआरसी के डाटा का अपटेड किया गया.
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मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा कि हम फ़ाइनल NRC का इंतज़ार नहीं कर सकते हैं. जब जनवरी के वोटर लिस्ट में नाम होगा तो वे सभी वोट दे सकेंगे. हालांकि, NRC से बाहर सभी 40 लाख वोटर नहीं हैं. उन्होंने कहा कि 40 लाख लोगों में बच्चे, नाबालिग भी होंगे. NRC और EC आपस में तालमेल कर रहे हैं.
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बता दें कि असम में सोमवार को जारी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के मसौदे से कुल 3.29 करोड़ आवेदकों में से 40 लाख से ज्यादा लोगों को बाहर किए जाने से उनके भविष्य को लेकर चिंता पैदा हो गई है और साथ ही एक राष्ट्रव्यापी राजनीतिक विवाद पैदा हो गया है. नागरिकों की मसौदा सूची में 2.89 करोड़ आवेदकों को मंजूरी दी गई है. यह मसौदा असम में रह रहे बांग्लादेशी आव्रजकों को अलग करने का लंबे समय से चल रहे अभियान का हिस्सा है. 10 लाख आवेदकों को नागरिकता देने से इंकार किए जाने के बाद पैदा हुए विवाद पर केंद्र सरकार ने लोगों से भयभीत न होने और विपक्ष से इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं करने का आग्रह किया है.
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मसौदे को जारी करने वाले भारत के रजिस्ट्रार जनरल शैलेश ने कहा कि उन आवेदकों को पर्याप्त अवसर दिए जाएंगे, जो दावे और आपत्ति करना चाहते हैं. वे 30 अगस्त से 28 सितंबर तक अंतिम सूची तैयार किए जाने से पहले अपने दावे और आपित्त दाखिल कर सकते हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने असम और मोदी सरकार पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि जिन लोगों के पास आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और अन्य दस्तावेज थे, उनको भी छोड़ दिया गया, क्योंकि अधिकारी उन कागजात से संतुष्ट नहीं थे.
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देश में असम इकलौता राज्य है जहां सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था लागू है. असम में सिटिजनशिप रजिस्टर देश में लागू नागरिकता कानून से अलग है. यहां असम समझौता 1985 से लागू है और इस समझौते के मुताबिक, 24 मार्च 1971 की आधी रात तक राज्य में प्रवेश करने वाले लोगों को भारतीय नागरिक माना जाएगा.
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) के मुताबिक, जिस व्यक्ति का सिटिजनशिप रजिस्टर में नहीं होता है उसे अवैध नागरिक माना जाता है्. इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था. इसमें यहां के हर गांव के हर घर में रहने वाले लोगों के नाम और संख्या दर्ज की गई है.
एनआरसी की रिपोर्ट से ही पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं है. आपको बता दें कि वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी जमीन असम में थी और लोगों का दोनों और से आना-जाना बंटवारे के बाद भी जारी रहा. इसके बाद 1951 में पहली बार एनआरसी के डाटा का अपटेड किया गया.
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