सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच में 26 हफ्ते के भ्रूण के गर्भपात के मामले में सुनवाई चल रही है. सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदी वाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ मामले की सुनवाई कर रही है. एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि दुर्भाग्य से हम मां को मना नहीं पाए. अब अदालत को फैसला करना होगा. इस पर सीजेआई ने कहा कि ये केस भ्रूण के असामान्य होने में भी नहीं आता.
एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने कहा, "कानून के निर्धारण को अलग करें. इस मामले का फैसला अलग से किया जा सकता है. वह अभी तक संवेदनशील है. भारत एक समर्थक पसंद कानून है. पूरी दुनिया में प्रो चॉइस और प्रो लाइफ है. प्रो लाइफ देश गर्भपात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाते हैं. प्रो लाइफ देश महिलाओं की स्वायत्तता की दृढ़ता से रक्षा करते हैं और फिर कुछ देश बाड़ पर हैं. 1971 में 12 सप्ताह के साथ कानून आया. फिर 20 सप्ताह और फिर 2020 के बाद यह 24 सप्ताह तक चला गया."
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने बताया, "संसद ने एक कानून बनाया है. यह प्रो चॉइस और प्रो लाइफ के बीच संतुलन को दर्शाता है. जब संसद ने कट ऑफ दिया, तो उसे सभी बातों की जानकारी थी. 24 सप्ताह का कट ऑफ इस पहलू को संतुलित करने के लिए था. और हमारा पहलू मुख्य रूप से प्रो चॉइस है, क्योंकि यह अबाधित विवेकाधिकार देता है. सनातन धर्म के खिलाफ हेट स्पीच देने के मामले मे वकील विष्णु शंकर जैन ने एक हस्तक्षेप याचिका दाखिल कर यू स्टालिन, ए राजा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की है.
- इसके अलावा अर्जी में हेट स्पीच को लेकर दी गई शिकायत पर कोई कार्रवाई न करने के लिए डीसीपी साउथ के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही करने का निर्देश देने की मांग की गई है.
- साथ ही स्टालिन को तमिलनाडु कैबिनेट में मंत्री बने रहने और राजा को सांसद बने रहने से रोकने का आदेश देने की भी मांग की गई है.
- दरअसल, हेट स्पीच को लेकर दाखिल की गई याचिकाओं में हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए कहा गया है कि स्टालिन, राजा ने सनातन धर्म के खिलाफ नफरत फ्लेट हुए उसे डेंगू मलेरिया और कुष्ठ रोग को जैसे खत्म करने के बयान दिए हैं.
- यह नफरत फैलाने वाले भाषण के श्रेणी में आता है, इसके लिए उन पर कार्रवाई की जानी चाहिए.
एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि यहां सवाल यह है कि क्या किसी की पसंद को जीवन खत्म करने की अनुमति दी जा सकती है? कानून की धारा-3, 20 सप्ताह तक एक पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा समाप्त की गई गर्भावस्था से संबंधित है. जब यह 20 से अधिक हो और 24 सप्ताह से अधिक न हो. कम से कम दो चिकित्सा चिकित्सकों की राय होनी चाहिए कि गर्भावस्था का कारण होगा.
इस पर CJI चंद्रचूड़ ने कहा...
- आयरलैंड में क्या हुआ...? भारतीय मूल की महिला को गर्भपात कराना पड़ा और आयरिश कानून ने इसकी अनुमति नहीं दी. अंततः उसकी मृत्यु हो गई.
- हमारे कानून में यदि गर्भावस्था से मां के जीवन को खतरा होता है, तो इसे ग्यारहवें घंटे में भी किया जा सकता है. हमारा कानून इसकी अनुमति देता है और कोई कटौती लागू नहीं होती है. भ्रूण की असामान्यता के मामले में भी गर्भपात की इजाजत है.
- तो अगर आपको किसी महिला की जान बचानी है, तो आप खत्म कर सकते हैं. हमारा कानून महिला के जीवन को सर्वोपरि रखता है.
- जैसा कि आयरलैंड में हुआ था, भारतीय मूल की उस महिला की मृत्यु हो गई, क्योंकि वह गर्भपात नहीं कर सकी और फिर आयरिश कानून में संशोधन किया गया.
- 24 सप्ताह से अधिक के भ्रूण की असामान्यताओं में, एक बोर्ड बनाया जाता है. अगर महिला की जान ख़तरे में हो तो आपको मेडिकल बोर्ड की ज़रूरत नहीं है. जाहिर है क्योंकि ऐसा आपातकालीन स्थिति में किया जाएगा.
- भ्रूण की असामान्यता के साथ पैदा हुआ बच्चा- यह माता-पिता के जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करेगा. और दूसरा, इसका असर बच्चे के जीवन की गुणवत्ता पर पड़ेगा.
- ये केस भ्रूण के असामान्य होने में भी नहीं आता.
- यौन उत्पीड़न पीड़िता के मामले में हमारा कानून 24 सप्ताह का समय कहता है. मान लीजिए कि कोई पीड़िता है, एक युवा नाबालिग, उसे यह भी नहीं पता होगा कि वह गर्भवती है. उसे इसका एहसास हो सकता है और वह इसे परिवार से गुप्त रख सकती है. और फिर वह अदालत में आती है, तो अदालत एक अलग दृष्टिकोण अपना सकती है.
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने दलील दी कि मेडिकल बोर्ड की राय को प्राथमिकता देनी चाहिए. मेडिकल बोर्ड स्पष्ट रूप से कहता है कि MTP ना हो, क्योंकि बच्चे के जीवित रहने की व्यवहार्य और उचित संभावना है.
इस पर सीजेआई ने कहा- तो मेडिकल बोर्ड ने शुरू में कहा नहीं और फिर हमने वह आदेश दे दिया. और डॉक्टर को एक नैतिक दुविधा थी और उसने मेल लिखा
इस मामले मे सरकार की जिम्मेदारी है. हमारी अंडरटेकिंग दर्ज कर लीजिए. सरकार बच्चे के लिए कब कदम उठाएगी. वह अक्टूबर 2022 से प्रसवोत्तर मनोविकृति का इलाज करा रही थी. इसलिए वह इस गर्भावस्था के दौरान इलाज करा रही थी. क्या हमें एम्स से रिपोर्ट मांगनी चाहिए कि क्या उसने जो इलाज लिया है, उससे भ्रूण में असामान्यता हुई है?
एएसजी ने कहा कि अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी से पता चलता है कि भ्रूण सामान्य है, इसमें कोई असामान्यता नहीं है.
इसके बाद CJI ने महिला के डॉक्टर के पर्चे पर सवाल उठाए और कहा कि इसमें संदेह होता है. बीमारी के बारे भी नहीं लिखा कि दवा किस लिए हैं. क्या इन पर सुप्रीम कोर्ट को भरोसा करना चाहिए? हम एम्स को महिला की डिप्रेशन की बीमारी की जांच करने को कहेंगे. साथ ही ये भी जांच कराएंगे कि भ्रूण में कोई असामान्यता तो नहीं है
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