
- सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति और राज्यपाल के विधेयक निर्णय पर समय सीमा की वैधता पर सुनवाई पूरी कर ली है.
- SC में 10 दिनों की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अगुवाई वाली पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है.
- पीठ ने साफ किया कि वह तमिलनाडु राज्यपाल के फैसले पर अपील नहीं करेगी बल्कि संवैधानिक प्रश्नों का समाधान करेगी.
सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई पूरी हो गई है और अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. इस मामले में पांच जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई की है. 10 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद CJI बी आर गवई की अगुवाई वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने इस पर फैसला सुरक्षित रखा है कि क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधेयक पर फैसला लेने के लिए समय सीमा दी जा सकती है?
यह पीठ जस्टिस पारदीवाला की अगुवाई वाली 2 जजों की पीठ द्वारा राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर फैसला लेने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा निर्धारित करने की वैधता की जांच करेगी.
इन न्यायाधीशों ने की मामले की सुनवाई
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की पीठ ने दस दिनों तक मामले की सुनवाई की.
राष्ट्रपति का संदर्भ मई में तमिलनाडु राज्यपाल मामले में दो जजों की पीठ द्वारा दिए गए फैसले के तुरंत बाद दिया गया था, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए समय-सीमा निर्धारित की गई थी.
SC ने कहा - सिर्फ संवैधानिक प्रश्नों का जवाब देंगे
सुनवाई के दौरान पीठ ने कई बार स्पष्ट किया कि वह तमिलनाडु राज्यपाल के फैसले पर अपील नहीं करेगा और केवल संवैधानिक प्रश्नों का जवाब देगी.
तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल और पंजाब जैसे राज्यों ने इस संदर्भ की स्वीकार्यता पर इस आधार पर आपत्ति जताई कि तमिलनाडु राज्यपाल के फैसले में पहले ही सवालों के उत्तर दिए जा चुके हैं.
सुनवाई के दौरान अदालत ने सवाल किया कि क्या राज्यपाल अनिश्चित काल तक विधेयकों को रोक सकते हैं ?
अदालत ने मामले में हैरानी भी जताई
अदालत ने टिप्पणी की कि यदि राज्यपाल विधेयकों को विधानसभा को वापस किए बिना रोक सकते हैं तो यह निर्वाचित सरकार को राज्यपाल की इच्छा पर छोड़ देगा.
अदालत ने यह भी हैरानी जताई कि क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए एक समान समय सीमा को केवल विलम्ब के कुछ छिटपुट उदाहरणों के आधार पर उचित ठहराया जा सकता है.
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