जनवरी का पहला हफ़्ता... उत्तराखंड समेत हिमालय की तमाम ऊंची पहाड़ियों में भारी बर्फ़बारी। इस बेहद सर्द मौसम और बर्फ़ की सफ़ेद चादर के बीच भी जून 2013 की आपदा को झेल चुके केदारनाथ में मशीनों की घरघराहट और हथौड़ों की आवाज़। केदारनाथ में क़रीब तीन सौ लोगों की टीम एक ख़ास मुहिम में जुटी हुई है। मुहिम केदारनाथ घाटी को जल्द से जल्द उसका पुराना वैभव लौटाने की। पूर्व में की गई लापरवाहियों से सबक सीखते हुए इस इलाके को एक नई शक्ल देने की जो पर्यावरण और इलाके की भौगोलिक वास्तविकताओं के अनुरूप हो।
इस मिशन का नेतृत्व कर रहे हैं देश के प्रतिष्ठित पर्वतारोहण संस्थान नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग (एनआईएम) के प्रिंसिपल कर्नल अजय कोठियाल। कर्नल कोठियाल के नेतृत्व में एनआईएम की प्रशिक्षित टीम ने जून 2013 की आपदा के बाद राहत, बचाव और पुनर्वास के काम में एक बड़ी भूमिका निभाई थी। उसी को देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने एनआईएम की टीम को यह अहम ज़िम्मेदारी सौंपी है।
एनआईएम की टीम के सामने पहली बड़ी चुनौती है केदारनाथ में पूर्व में हुए बेतरतीब और बेतहाशा निर्माण को हटाने की, जो जून 2013 की आपदा के दौरान आए मलबे से जर्जर हो चुका है। इन इमारतों की एक-एक मंज़िल आज भी मलबे में दबी हुई हैं। हालत ये है कि ऊपर से आए मलबे ने केदारनाथ के आसपास की ज़मीन को दस से पंद्रह फुट तक ऊपर उठा दिया है। ऐसे में यहां नए सिरे से काम के लिए भारी मशीनों और गाड़ियों की ज़रूरत पड़ी।
एनआईएम की टीम ने पहले पहल ज़रूरी मशीनों और गाड़ियों को उनके कल पुर्जे अलग कर सत्रह किलोमीटर लंबे पैदल और कठिन रास्ते से ऊपर केदारनाथ तक पहुंचाया। छोटी जेसीबी मशीन के आठ सौ किलो वज़न के पुर्ज़ों को भी कंधों पर रखकर केदारनाथ पहुंचाया गया। ऊबड़-खाबड़ रास्तों में चलने के लिए बनी छह ऑल टैरेन व्हीकल–एटीवी को तो केदारनाथ तक बने संकरे और ख़तरनाक रास्ते से चलाकर ऊपर पहुंचाया गया। यह काम अपने आप में काफ़ी ख़तरनाक भी रहा। निर्माण में ज़रूरी सामान के लिए घोड़ों और खच्चरों की मदद भी ली गई। इसके भरोसे केदारनाथ में पुराने निर्माण को हटाने काम शुरू हुआ, लेकिन काम में तेज़ी लाने के लिए बड़ी जेसीबी मशीनों और डंपरों की ज़रूरत थी जिन्हें वायुसेना के सबसे बड़े हेलीकॉप्टर एमआई- 26 के ज़रिए ही ऊपर पहुंचाया जा सकता था। लेकिन इस हेलीकॉप्टर को उतारने के लिए एक ख़ास और बड़े हेलीपैड की ज़रूरत थी। ऐसे में एनआईएम की टीम ने इस चुनौती को स्वीकार किया और रिकॉर्ड साढ़े तीन महीने में डेढ़ सौ मीटर लंबा और पचास मीटर चौड़ा हेलीपैड केदारनाथ में तैयार कर दिया।
सात जनवरी को भारी मशीनों की पहली खेप लेकर एमआई-26 हेलीकॉप्टर कामयाबी के साथ केदारनाथ में उतर गया। इसके बाद अब केदारनाथ में चल रहे काम में काफ़ी तेज़ी आ गई है। वहां मौजूद लोगों की टीम दिन रात एक कर माइनस दस डिग्री तक तापमान में भी काम में जुटी हुई है। लेकिन चुनौती यह है कि अब जो नया निर्माण हो वह इलाके की भौगोलिक वास्तविकताओं और संवेदनशीलता को ध्यान में रखकर किया जाए। इसके लिए वास्तुविदों और भूविज्ञानियों की मदद ली जा रही है।
(केदारनाथ में जारी पुनर्निर्माण पर लेख की यह पहली कड़ी है, अब आगे जानेंगे जून 2013 की आपदा को देखते हुए केदारनाथ में पुनर्निर्माण के सामने असली चुनौतियां क्या हैं।)
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