यूपी के उपचुनावों में लगातार मिलती हार ने बीजेपी नेतृत्व की चिंता बढ़ा दी है (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की पूर्व संसदीय सीट गोरखपुर, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की पूर्व संसदीय सीट फूलपूर और अब कैराना..... देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में लगातार मिल रही हार ने बीजेपी की नींद उड़ा दी है. इन तीनों सीटों पर बीजेपी की हार में एक बात कॉमन रही. विपक्षी पार्टियों ने यह समझ लिया है कि विजय रथ पर सवार बीजेपी को अकेले रोक पाना बेहद मुश्किल है. ऐसे में उन्होंने 'प्लान बी' के साथ बीजेपी के सामने खड़े होने की रणनीति अपनाई. परिणाम सामने हैं, यूपी की बात करें तो एक के बाद एक बीजेपी सीटें गंवा रही है. इन जीतों के बाद जहां विपक्षी पार्टियों सेलिब्रेशन के मूड में हैं तो बीजेपी में सन्नाटा सा खिंच गया है. देश की सत्ता पर काबिज बीजेपी इसे भले ही प्रदर्शित नहीं करे लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इन तीन हारों ने पार्टी को जोर का झटका दिया है.
देखा जाए तो गोरखपुर और फूलपुर सीट के लिए बनाई रणनीति साझा विपक्ष के लिए एक प्रयोग था जिसमें सफलता ने कैराना की जीत की राह प्रशस्त की. कैराना में विपक्षी और बड़ी एकता के साथ बीजेपी के सामने आया. रालोद प्रत्याशी तबस्सुम हसन को सपा, बसपा और कांग्रेस ने बाहर से समर्थन देकर बीजेपी की हार की स्क्रिप्ट लिख दी. इससे पहले गोरखपुर और फूलपुर में दो धुर विरोधी सपा और बसपा ने मिलकर बीजेपी को धूल चटाई थी. गौरतलब है कि बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन के कारण कैराना में उपचुनाव की नौबत आई थी. दानवीर कर्ण की नगरी कहे जाने वाले कैराना के नतीजे से सहमी बीजेपी को यूपी में एक और झटका लगा. नूरपुर विधानसभा सीट पर सपा के सामने उसे अपनी सीट गंवानी पड़ी है. वर्ष 2019 में होने वाले यह आमचुनाव बीजेपी के लिए आंखें खोलने वाले हैं.
कैराना में जीतने वालीं तबस्सुम बोलीं- 2019 में साथ मिलकर बीजेपी को धूल चटाएंगे
यूपी से आया यह संदेश देश के दूसरे राज्यों में भी जा सकता है.संभव है कि अगले लोकसभा चुनाव बीजेपी vs संयुक्त विपक्ष का दंगल देखने को मिले. लोकसभा सीटों के लिहाज से देश के दो सबसे बड़े राज्य यूपी और बिहार में यह प्रयोग अगर सफल रहा तो बीजेपी के मिशन 2019 को तगड़ा झटका लग सकता है. बिहार में लालू प्रयाद यादव की आरजेडी के साथ कांग्रेस और जीतन राम मांझी की 'हम' एनडीए के लिए चुनौती पेश करने में सक्षम हैं. दक्षिण के राज्य कर्नाटक में भी कांग्रेस और जेडी एस की नजदीकी आम चुनावों में बीजेपी के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकती है. चंद्रबाबू नायडू की पार्टी तेलुगुदेशम, एनडीए से अलग हो चुकी है. तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव एनडीए और बीजेपी विरोधी तेवर अख्तियार किए हुए हैं. अपने प्रभुत्व वाले राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और गुजरात में बीजेपी ने ज्यादातर सीटें जीती हैं. शीर्ष नेतृत्व को अंदेशा है कि लोकसभा चुनाव 2019 में सत्ता विरोधी रुझान के कारण इन सीटों में कमी आ सकती है.
वीडियो: तबस्सुम हसन बोलीं, 2019 में मिलकर बीजेपी को हराएंगे
पार्टी को यह अहसास हो चुका है कि विपक्षी एकता के चलते अगले लोकसभा चुनाव में यूपी में उसकी सीटों की संख्या में कमी आएगी, ऐसे में वह अपना ध्यान पश्चिम बंगाल और उड़ीसा जैसे राज्यों पर केंद्रित कर रही है. पार्टी नेतृत्व सीटों की संख्या में संभावित कमी की भरपाई इन राज्यों से करना चाहता है.कुल मिलाकर उपचुनावों के परिणाम (लोकसभा और विधानसभा) बीजेपी को लिए निराशा देने वाले हैं. लोकसभा सीट में महाराष्ट्र के पालघर और विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड के थराली में ही वह जीत हासिल कर पाई है. उपचुनाव में मिले जख्मों को सहलाते हुए बीजेपी फिलहाल तो यही उम्मीद कर रही होगी कि विपक्षी एकता की 'खिचड़ी' नहीं पकपाए. अगर खिचड़ी पकी जो बीजेपी के मुंह का जायका बिगड़ना तय है...
देखा जाए तो गोरखपुर और फूलपुर सीट के लिए बनाई रणनीति साझा विपक्ष के लिए एक प्रयोग था जिसमें सफलता ने कैराना की जीत की राह प्रशस्त की. कैराना में विपक्षी और बड़ी एकता के साथ बीजेपी के सामने आया. रालोद प्रत्याशी तबस्सुम हसन को सपा, बसपा और कांग्रेस ने बाहर से समर्थन देकर बीजेपी की हार की स्क्रिप्ट लिख दी. इससे पहले गोरखपुर और फूलपुर में दो धुर विरोधी सपा और बसपा ने मिलकर बीजेपी को धूल चटाई थी. गौरतलब है कि बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन के कारण कैराना में उपचुनाव की नौबत आई थी. दानवीर कर्ण की नगरी कहे जाने वाले कैराना के नतीजे से सहमी बीजेपी को यूपी में एक और झटका लगा. नूरपुर विधानसभा सीट पर सपा के सामने उसे अपनी सीट गंवानी पड़ी है. वर्ष 2019 में होने वाले यह आमचुनाव बीजेपी के लिए आंखें खोलने वाले हैं.
कैराना में जीतने वालीं तबस्सुम बोलीं- 2019 में साथ मिलकर बीजेपी को धूल चटाएंगे
यूपी से आया यह संदेश देश के दूसरे राज्यों में भी जा सकता है.संभव है कि अगले लोकसभा चुनाव बीजेपी vs संयुक्त विपक्ष का दंगल देखने को मिले. लोकसभा सीटों के लिहाज से देश के दो सबसे बड़े राज्य यूपी और बिहार में यह प्रयोग अगर सफल रहा तो बीजेपी के मिशन 2019 को तगड़ा झटका लग सकता है. बिहार में लालू प्रयाद यादव की आरजेडी के साथ कांग्रेस और जीतन राम मांझी की 'हम' एनडीए के लिए चुनौती पेश करने में सक्षम हैं. दक्षिण के राज्य कर्नाटक में भी कांग्रेस और जेडी एस की नजदीकी आम चुनावों में बीजेपी के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकती है. चंद्रबाबू नायडू की पार्टी तेलुगुदेशम, एनडीए से अलग हो चुकी है. तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव एनडीए और बीजेपी विरोधी तेवर अख्तियार किए हुए हैं. अपने प्रभुत्व वाले राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और गुजरात में बीजेपी ने ज्यादातर सीटें जीती हैं. शीर्ष नेतृत्व को अंदेशा है कि लोकसभा चुनाव 2019 में सत्ता विरोधी रुझान के कारण इन सीटों में कमी आ सकती है.
वीडियो: तबस्सुम हसन बोलीं, 2019 में मिलकर बीजेपी को हराएंगे
पार्टी को यह अहसास हो चुका है कि विपक्षी एकता के चलते अगले लोकसभा चुनाव में यूपी में उसकी सीटों की संख्या में कमी आएगी, ऐसे में वह अपना ध्यान पश्चिम बंगाल और उड़ीसा जैसे राज्यों पर केंद्रित कर रही है. पार्टी नेतृत्व सीटों की संख्या में संभावित कमी की भरपाई इन राज्यों से करना चाहता है.कुल मिलाकर उपचुनावों के परिणाम (लोकसभा और विधानसभा) बीजेपी को लिए निराशा देने वाले हैं. लोकसभा सीट में महाराष्ट्र के पालघर और विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड के थराली में ही वह जीत हासिल कर पाई है. उपचुनाव में मिले जख्मों को सहलाते हुए बीजेपी फिलहाल तो यही उम्मीद कर रही होगी कि विपक्षी एकता की 'खिचड़ी' नहीं पकपाए. अगर खिचड़ी पकी जो बीजेपी के मुंह का जायका बिगड़ना तय है...
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