भैंसों के वध पर रोक लगने से देश के मांस निर्यात कारोबार पर बुरा असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है.
नई दिल्ली:
काटने के लिए मवेशियों की खरीद-फरोख्त को लेकर सरकार की अधिसूचना पर अब नए सवाल उठ रहे हैं. वाणिज्य मंत्रालय के पास मौजूद आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल, 2016 से जनवरी, 2017 के बीच भारत के कुल मीट एक्सपोर्ट का 97% हिस्सा भैंसों के मांस का रहा. ऐसे में सवाल है कि क्यों भैंसों को जानवरों की प्रतिबंधित सूची में शामिल किया गया.
वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमन ने संसद के पिछले बजट सत्र के दौरान 27 मार्च, 2017 को लोकसभा में मीट एक्सपोर्ट पर महत्वपूर्ण तथ्य पेश किए थे. उन्होंने सदन को बताया था कि अप्रैल, 2016 से जनवरी, 2017 के बीच भारत से कुल 22,073 करोड़ के मीट निर्यात हुआ. इसमें सिर्फ भैंसों के मांस का निर्यात 21,316 करोड़ का रहा. यानी कुल मीट एक्सपोर्ट में 97% कारोबार भैंसों से आया.
ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि जब वाणिज्य मंत्रालय के पास यह महत्वपूर्ण जानकारी थी तो फिर पर्यावरण मंत्रालय ने अधिसूचना में काटने के लिए जानवरों की प्रतिबंधित सूची में भैंसों को क्यों शामिल किया. यह सवाल महत्वपूर्ण है क्योंकि इन आंकड़ों से साफ है कि भैसों को अगर प्रतिबंधित सूची से बाहर नहीं किया जाता है तो मीट के एक्सपोर्ट पर इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा.
सरकार की मौजूदा मीट निर्यात नीति में गाय, बैल और बछड़ों के निर्यात पर रोक है. भैंसों पर रोक लगाने से हजारों करोड़ का कारोबार खतरे में पड़ सकता है. विपक्ष के मुताबिक मामला खानपान के अधिकार में दखल का भी है. सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने बुधवार को यह सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार यह कैसे तय कर सकती है कि लोग क्या खाएं और क्या नहीं.
उधर मेघालय के गारो हिल्स के गारोबढ़ा मवेशी बाजार में पिछले कई दशकों से काटने के लिए मवेशियों की खरीद-फरोख्त होती रही है. अब भारत सरकार की अधिसूचना के खिलाफ वहां भारी विरोध शुरू हो गया है. ट्रेडर्स धमकी दे रहे हैं कि अगर सरकार ने अधिसूचना लागू की तो वे हड़ताल पर जाएंगे. आम लोगों ने भी इसका विरोध करने का फैसला किया है. यह दलील दी जा रही है कि बीफ उत्तर-पूर्व भारत की संस्कृति का एक हिस्सा है और इस पर प्रतिबंध लगाने का फैसला गलत होगा.
काटने के लिए मवेशियों की खरीद-फरोख्त पर लगी रोक के बाद अधिसूचना में बदलाव को लेकर भारत सरकार पर दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है. अब देखना होगा कि सरकार कितनी जल्दी अपनी अधिसूचना में संशोधन को लेकर बढ़ते दबाव के बाद इस बारे में आगे पहल करती है.
वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमन ने संसद के पिछले बजट सत्र के दौरान 27 मार्च, 2017 को लोकसभा में मीट एक्सपोर्ट पर महत्वपूर्ण तथ्य पेश किए थे. उन्होंने सदन को बताया था कि अप्रैल, 2016 से जनवरी, 2017 के बीच भारत से कुल 22,073 करोड़ के मीट निर्यात हुआ. इसमें सिर्फ भैंसों के मांस का निर्यात 21,316 करोड़ का रहा. यानी कुल मीट एक्सपोर्ट में 97% कारोबार भैंसों से आया.
ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि जब वाणिज्य मंत्रालय के पास यह महत्वपूर्ण जानकारी थी तो फिर पर्यावरण मंत्रालय ने अधिसूचना में काटने के लिए जानवरों की प्रतिबंधित सूची में भैंसों को क्यों शामिल किया. यह सवाल महत्वपूर्ण है क्योंकि इन आंकड़ों से साफ है कि भैसों को अगर प्रतिबंधित सूची से बाहर नहीं किया जाता है तो मीट के एक्सपोर्ट पर इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा.
सरकार की मौजूदा मीट निर्यात नीति में गाय, बैल और बछड़ों के निर्यात पर रोक है. भैंसों पर रोक लगाने से हजारों करोड़ का कारोबार खतरे में पड़ सकता है. विपक्ष के मुताबिक मामला खानपान के अधिकार में दखल का भी है. सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने बुधवार को यह सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार यह कैसे तय कर सकती है कि लोग क्या खाएं और क्या नहीं.
उधर मेघालय के गारो हिल्स के गारोबढ़ा मवेशी बाजार में पिछले कई दशकों से काटने के लिए मवेशियों की खरीद-फरोख्त होती रही है. अब भारत सरकार की अधिसूचना के खिलाफ वहां भारी विरोध शुरू हो गया है. ट्रेडर्स धमकी दे रहे हैं कि अगर सरकार ने अधिसूचना लागू की तो वे हड़ताल पर जाएंगे. आम लोगों ने भी इसका विरोध करने का फैसला किया है. यह दलील दी जा रही है कि बीफ उत्तर-पूर्व भारत की संस्कृति का एक हिस्सा है और इस पर प्रतिबंध लगाने का फैसला गलत होगा.
काटने के लिए मवेशियों की खरीद-फरोख्त पर लगी रोक के बाद अधिसूचना में बदलाव को लेकर भारत सरकार पर दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है. अब देखना होगा कि सरकार कितनी जल्दी अपनी अधिसूचना में संशोधन को लेकर बढ़ते दबाव के बाद इस बारे में आगे पहल करती है.
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