भारत में जब-जब चुनाव होते हैं, तब-तब ईवीएम की चर्चा तेज हो जाती है. अक्सर चुनाव के परिणामों के बाद तो ईवीएम पर ही सवाल उठने लगते हैं. इस बीच अब बीएसपी अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने रविवार को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर निशाना साधते हुए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को लेकर सवाल उठाए और मतपत्रों से चुनाव कराने की मांग की. मायावती ने मॉल एवेन्यू स्थित बसपा के राज्य मुख्यालय पर ‘जन कल्याण दिवस' के रूप में मनाये जा रहे अपने 67वें जन्मदिन के मौके पर रविवार को आयोजित संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया. उन्होंने सत्तारूढ़ भाजपा की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में कानून व्यवस्था ठीक करने की आड़ में जो घिनौनी राजनीति हो रही है वह किसी से छिपी नहीं है.''
बसपा प्रमुख ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त से मतपत्र से चुनाव कराये जाने के लिए पुरजोर मांग करते हुए कहा, ‘‘देश में ईवीएम के जरिये चुनाव को लेकर यहां की जनता में किस्म-किस्म की आशंकाएं व्याप्त हैं और उन्हें खत्म करने के लिए बेहतर यही होगा कि अब यहां आगे छोटे-बड़े सभी चुनाव पहले की तरह मतपत्रों से ही कराए जाएं.'' उन्होंने दलितों, पिछड़ों, मुसलमानों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को एकजुट होने की अपील करते हुए कहा, ‘‘मैं अपने जन्मदिन के मौके पर दलित, आदिवासियों, पिछड़े, मुस्लिम और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समाज के लोगों को यह याद दिलाना जरूरी समझती हूं कि भारतीय संविधान के मूल निर्माता एवं कमजोर, उपेक्षित वर्ग के मसीहा बाबा साहब आंबेडकर ने जातिवादी व्यवस्था के शिकार अपने लोगों को स्वाभिमान व उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए कानूनी अधिकार दिलाए हैं और उन्हें आपस में भाईचारा पैदा करके केंद्र व राजनीति की सत्ता की ‘मास्टर चाबी' अपने हाथों में लेनी होगी.''
मायावती पहले भी ईवीएम की भूमिका को लेकर सवाल उठाती रही हैं और अब 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर उन्होंने एक बार फिर मतपत्र से चुनाव कराने की मांग पर जोर दिया है. बसपा प्रमुख ने कांग्रेस, भाजपा और समाजवादी पार्टी (सपा) पर सीधा प्रहार करते हुए कहा कि अब तक के अनुभव यही बताते हैं कि इन जातिवादी सरकारों के चलते इन वर्गों के लोगों को संविधान में मिले उनके कानूनी अधिकारों का अब तक सही से लाभ नहीं मिल सका है. मायावती ने कहा कि खासकर आरक्षण के मामले में तो शुरू से ही यहां कांग्रेस, भाजपा व सपा सहित अन्य विरोधी पार्टियां अपने संवैधानिक उत्तरदायित्व के प्रति कतई ईमानदार नहीं रही हैं. अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण लागू करने के मामले में ही नहीं, बल्कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण को लेकर भी इन दलों का रवैया जातिवादी व क्रूर रहा है.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार में मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू नहीं होने दिया गया और एससी-एसटी के आरक्षण को निष्प्रभावी बना दिया गया. अब भाजपा भी इस मामले में कांग्रेस के पदचिह्नों पर चलते हुए घोर अनुचित कार्य कर रही है जिसके चलते उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव भी प्रभावित हुआ है. राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी सपा को अति पिछड़ों का विरोधी करार देते हुए मायावती ने कहा, ‘‘इतना ही नहीं सपा के नेतृत्व वाली सरकार ने यहां खासकर अति पिछड़ों को उनका पूरा हक न देकर इनके साथ छल किया है. सपा सरकार ने अपने कार्यकाल में 17 अन्य पिछड़ी जातियों को ओबीसी से हटाकर अनुसूचित जाति में शामिल कराने की पहल कर इनके परिवारों को ओबीसी के आरक्षण से वंचित कर दिया था. ये जातियां न ओबीसी और न ही एससी में शामिल हो सकीं और इसके लिए सपा नीत सरकार को अदालत से फटकार लगी तब ये जातियां पुरानी स्थिति में वापस आयीं.''
उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य में सपा के नेतृत्व वाली सरकार ने पदोन्नति के आरक्षण को समाप्त कर दिया और इसके विधेयक को संसद में फाड़ दिया. मायावती ने कहा, ‘‘आप सभी को मालूम है कि हर नववर्ष के पहले महीने में 15 जनवरी को मेरी पार्टी के लोग मेरा जन्मदिन मनाते हैं. मैं सबसे पहले अपने शुभचिंतकों और विशेषकर बसपा के लोगों को दिल से आभार प्रकट करती हूं जो इस बार भी कोविड-19 के नियमों का पालन करते हुए देश भर में मेरा जन्मदिन मना रहे हैं.'' उन्होंने कहा, ‘‘महात्मा फुले, साहू जी महराज, नारायणा गुरु, बाबा साहेब आंबेडकर व कांशीराम की मानवतावादी सोच व आंदोलन को ध्यान में रखकर ही मैंने अपनी जिंदगी समर्पित की है जिसके तहत वे (बसपा कार्यकर्ता) आज मेरे जन्मदिन को ‘जनकल्याणकारी दिवस' के रूप में मना रहे हैं. ये लोग अपने अपने सामर्थ्य के अनुसार गरीब, लाचार और अन्य जरूरतमंदों की आर्थिक मदद करते हैं और इस बार भी कर रहे हैं.''
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘हमारी पार्टी गरीब, असहाय और कमजोर वर्ग के लिए संघर्षरत है. बसपा ने इन्हीं विचारधाराओं पर चलकर अपने नेतृत्व में चार बार राज्य में सरकार बनाई. मेरी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने मेरे जन्मदिन के मौके पर कई नयी-नयी जनहित की योजनाएं प्रारंभ कीं. लेकिन जातिवादी, संकीर्ण, साम्प्रदायिक व पूंजीवादी मानसिकता रखने वाली विरोधी पार्टियों को यह अच्छा नहीं लगा और उन्होंने एकजुट होकर साम-दाम-दंड-भेद की नीति तथा अनेक हथकंडे अपनाकर बसपा को सत्ता में आने से रोका, यह सर्वविदित है.''
ये भी पढ़ें : चीन सीमा पर भारत किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार : सेना प्रमुख
ये भी पढ़ें : नेपाल के क्रैश हुए येति विमान में 5 भारतीय समेत 10 विदेशी नागरिक थे सवार: रिपोर्ट
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं