प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
प्रदूषण फैला रही गाड़ियों से दो खतरे होते हैं। इनसे निकलते पार्टिकुलेट मैटर यानी PM 2.5 जैसे खतरनाक कण और नाइट्रोजन ऑक्साइड गैस, जिसे नॉक्स भी कहा जाता है। जहां एक ओर PM 2.5 जैसे कण अस्थमा, ब्रांकाइटिस, हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों के कारण हो सकते हैं वहीं वाहनों से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड वातावरण में मौजूद हाइड्रोकार्बनों के साथ रिएक्शन कर जमीनी स्तर पर खतरनाक ओज़ोन गैस बनाती है।
इन खतरों के लिए मूल रूप से डीज़ल इंजन ही सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। 2020 से लाए जा रहे यूरो 6 नॉर्म, यानी भारत स्टेज 6 ( या बीएस-6) मानक आ जाने से प्रदूषण काफी हद तक काबू में आएगा।
भारत स्टेज 6 मानक
तुरंत लागू किए जाएं मानक
एनर्जी और पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रहे अनूप बंदीवदेकर कहते हैं, ‘कि भारत स्टेज – 6 मानकों को लागू करना एक बड़ा प्रभावी कदम है और इसे तुरंत लागू किया जाना चाहिए। लेकिन सड़क के व्यवहारिक हालात में सही परिणाम हासिल करने के लिए बीएस – 6 से भी आगे 6- बी और 6- सी जैसे मानकों की ओर बढ़ना होगा।’
भारत स्टेज 6 मानक ईंधन की क्वॉलिटी पर भी लागू होंगे। अभी ईंधन में सल्फर की मात्रा 50 पीपीएम होती है, जो भारत स्टेज 6 मानकों में घटकर 10 पीपीएम रह जाएगी, यानी अभी के स्तर से 80 प्रतिशत कम। इस उम्दा ईंधन की वजह से नए स्टैंडर्ड के फिल्टर लगाना मुमकिन होगा।
यूरो-6 मानकों के लिए उपयुक्त ईंधन की जरूरत
द एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट यानी टैरी के सुमित शर्मा कहते हैं, ‘देश के 50 शहरों में जो ईंधन मिलता है वह 50 पीपीएम सल्फर कन्टेंट वाला है, जबकि बाकी शहरों में तो सल्फर की मात्रा 350 पीपीएम तक है। ऐसे घटिया क्वॉलिटी के ईंधन के साथ नए मानक लागू नहीं हो सकते, क्योंकि इससे फिल्टर के चोक होने का खतरा है। इसलिए यूरो – 6 मानकों के लिए वैसा ही ईंधन भी चाहिए।’ सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरांमेंट यानी सीएसई की अनुमिता रॉयचौधरी कहती हैं कि यह सच है कि हमारी रिफायनरियों को निवेश करना होगा, लेकिन उन्हीं ने यह वादा किया था कि 2020 तक वे यूरो – 6 मानकों का ईंधन मुहैया कराएंगे। अब यह जिम्मेदारी ऑटोमोबाइल कंपनियों की है कि वह इन मानकों की गाड़ियां तैयार करें।
भारत की प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में यह मानक एक बड़ी क्रांति ला सकते हैं, लेकिन चुनौती यह भी है कि 2020 तक सड़कों पर भारी संख्या में जमा हो चुके पुराने वाहनों को कम कैसे किया जाए?
इन खतरों के लिए मूल रूप से डीज़ल इंजन ही सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। 2020 से लाए जा रहे यूरो 6 नॉर्म, यानी भारत स्टेज 6 ( या बीएस-6) मानक आ जाने से प्रदूषण काफी हद तक काबू में आएगा।
भारत स्टेज 6 मानक
- वाहनों पर एक खास फिल्टर लगाए जाएंगे
- इनमें डीज़ल पार्टिकुलेट फिल्टर यानी DPF होंगे
- इससे 80 से 90 फीसदी PM 2.5 जैसे कण हवा में आने से रोके जा सकेंगे
- इसमें सिलेक्टिव कैटेलिटिक रिडक्शन टेक्नोलॉजी इस्तेमाल होगी
- इससे नाइट्रोजन ऑक्साइड को काबू में किया जा सकेगा
- बीएस-6 मानकों के लागू होने पर कारों के साथ-साथ ट्रकों, बसों जैसे भारी वाहनों में भी फिल्टर लगाने जरूरी होंगे
- मौजूदा भारत स्टेज 4 और भारत स्टेज 3 मानकों के तहत यह शर्तें लागू नहीं होतीं और काफी प्रदूषण होता है
तुरंत लागू किए जाएं मानक
एनर्जी और पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रहे अनूप बंदीवदेकर कहते हैं, ‘कि भारत स्टेज – 6 मानकों को लागू करना एक बड़ा प्रभावी कदम है और इसे तुरंत लागू किया जाना चाहिए। लेकिन सड़क के व्यवहारिक हालात में सही परिणाम हासिल करने के लिए बीएस – 6 से भी आगे 6- बी और 6- सी जैसे मानकों की ओर बढ़ना होगा।’
भारत स्टेज 6 मानक ईंधन की क्वॉलिटी पर भी लागू होंगे। अभी ईंधन में सल्फर की मात्रा 50 पीपीएम होती है, जो भारत स्टेज 6 मानकों में घटकर 10 पीपीएम रह जाएगी, यानी अभी के स्तर से 80 प्रतिशत कम। इस उम्दा ईंधन की वजह से नए स्टैंडर्ड के फिल्टर लगाना मुमकिन होगा।
यूरो-6 मानकों के लिए उपयुक्त ईंधन की जरूरत
द एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट यानी टैरी के सुमित शर्मा कहते हैं, ‘देश के 50 शहरों में जो ईंधन मिलता है वह 50 पीपीएम सल्फर कन्टेंट वाला है, जबकि बाकी शहरों में तो सल्फर की मात्रा 350 पीपीएम तक है। ऐसे घटिया क्वॉलिटी के ईंधन के साथ नए मानक लागू नहीं हो सकते, क्योंकि इससे फिल्टर के चोक होने का खतरा है। इसलिए यूरो – 6 मानकों के लिए वैसा ही ईंधन भी चाहिए।’ सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरांमेंट यानी सीएसई की अनुमिता रॉयचौधरी कहती हैं कि यह सच है कि हमारी रिफायनरियों को निवेश करना होगा, लेकिन उन्हीं ने यह वादा किया था कि 2020 तक वे यूरो – 6 मानकों का ईंधन मुहैया कराएंगे। अब यह जिम्मेदारी ऑटोमोबाइल कंपनियों की है कि वह इन मानकों की गाड़ियां तैयार करें।
भारत की प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में यह मानक एक बड़ी क्रांति ला सकते हैं, लेकिन चुनौती यह भी है कि 2020 तक सड़कों पर भारी संख्या में जमा हो चुके पुराने वाहनों को कम कैसे किया जाए?
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