लॉकडाउन से राहत के बाद उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में श्रम कानूनों में अहम बदलाव के सवाल पर संघ परिवार में अंदरूनी मतभेद सामने आ गया है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) से जुड़े भारतीय मज़दूर संघ (BMS) बीजेपी-शासित उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की राज्य सरकारों द्वारा श्रम कानूनों में बदलाव करने के फैसले के विरोध में खड़ा हो गया है. उधर 10 बड़े श्रमिक संगठन अब इसके खिलाफ राष्ट्रव्यापी मुहिम की तैयारी में है.
लॉकडाउन के दौरान देश के करोड़ों मजदूर बेरोजगार हुए और करोड़ों को अप्रैल माह की सैलरी भी नहीं मिली. अब इस संकट के दौरान श्रम कानूनों में बदलाव करने के उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकारों के फैसले के खिलाफ विरोध तेज हो गया है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े भारतीय मजदूर संघ के महासचिव विरजेश उपाध्याय ने एनडीटीवी से कहा, 'हम राज्य सरकारों के इस पहल के खिलाफ हैं. हम उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत श्रम कानून में बदलाव करने पर विचार कर रहे हर राज्य सरकार से ये पूछना चाहते हैं की अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने में मौजूदा श्रम कानून कैसे रोड़ा बन रहे हैं? हम किसी भी हालत में श्रमिकों के अधिकारों को स्थगित करने के फैसले के सख्त खिलाफ हैं ".
अब भारतीय मज़दूर संघ की राज्य इकाइयां अपना विरोध लेकर उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों के पास जाएंगी. उधर देश की 10 बड़ी श्रमिक संगठनों ने एक साझा बयान जारी कर कहा है कि यूपी और मध्य प्रदेश सरकारों का ये फैसला मज़दूरों के खिलाफ एक अमानवीय अपराध है जो दमनकारी है.
सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियंस के महासचिव तपन सेन ने कहा, 'ये सरकार देश में मज़दूरों के लिए जंगल राज खड़ा करना चाहती है. कल चेन्नई में 30 हजार मज़दूरों ने प्रदर्शन किया. अब कर्नाटक और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में विरोध शुरू हो गया है. हम मज़दूरों के साथ मिलकर इसे लागू नहीं होने देंगे.
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