भाजपा ने रविवार को पटना में नीतीश कुमार द्वारा राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को फोन करके राज्यसभा उपचुनाव में जदयू उम्मीदवारों का समर्थन के कदम की आलोचना की है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने नीतीश पर आरोप लगाया कि उन्होंने सत्ता और सुविधा की राजनीति के लिए नैतिकता, सिद्धांत एवं स्वाभिमान जैसे शब्दों को बार-बार घिसकर खोटा सिक्का बना दिया है।
सुशील ने कहा कि नीतीश महीने भर पहले तक लालू को लाठी में तेल पिलाने की राजनीति का प्रतीक और बिहार में 15 साल के जंगल राज के लिये जिम्मेदार बताते हुये जनता से लालटेन फोडने की अपील कर रहे थे। लेकिन अब वे जदयू सरकार बचाने से लेकर पार्टी के राज्यसभा उम्मीदवारों की जीत के लिये लालू से समर्थन मांग रहे हैं।
उन्होंने नीतीश से पूछा कि इससे नैतिकता कहां बची है? क्या लालू को फोन कर समर्थन मांगने के बाद भी नीतीश का स्वाभिमान और सिद्धांत बचा रह गया है?
सुशील ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री रहते हुए नीतीश ने दल-बदल कानून के नियमों का उल्लंघन करते हुए राजद के 13 विधायकों को विधानसभा में अलग गुट के रूप में मान्यता दिलाने की साजिश रची। क्या वह संसदीय आचरण की नैतिकता के अनुकूल था?
उन्होंने आरोप लगाया कि फिर जब राजद के समर्थन से सरकार बचाने की नौबत आई तो अलग गुट की मान्यता वाले फैसले को सदन के अध्यक्ष से वापस कराया गया। नैतिकता तो दोनों बार तार-तार हुई, लेकिन जुबां पर नैतिकता की रट जारी रही।
सुशील ने आरोप लगाया कि नीतीश गैर-कांग्रेसवाद की राजनीति करते रहे, लेकिन सरकार बचाने के लिए इस सिद्धांत को 'डीप फ्रीजर' में डालकर उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को फोन कर कांग्रेस के चार विधायकों का समर्थन हासिल कर लिया।
कांग्रेस ने न तो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिया और न ही कोई विशेष पैकेज, लेकिन नीतीश ने सारे सिद्धांत भूलकर उसी कांग्रेस का समर्थन ले लिया। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार बतायें कि भाजपा के दो और राजद के तीन विधायकों से इस्तीफा दिलाकर जनता पर उपचुनाव का बोझ डालना किस सिद्धांत की राजनीति है?
सुशील ने आरोप लगाया कि जिस ललन सिंह ने किसान महापंचायत बुलाकर नीतीश कुमार को अपनी ताकत दिखाई और पिछले विधान सभा चुनाव में राजग उम्मीदवारों के खिलाफ काम किया। उनको लोकसभा चुनाव हारने पर पहले एमएलसी और फिर कैबिनेट मंत्री बनवा दिया गया। क्या यही सिद्धांत की राजनीति है?
उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार 17 साल तक भाजपा के साथ रहे, तब सांप्रदायिकता कोई मुद्दा नहीं था। अपने अहंकार को सिद्धांत बताकर उन्होंने गठबंधन तोडा और बिहार के विकास को पटरी से उतार दिया।
सुशील ने कहा कि जनता प्रदेश में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में भी लालू प्रसाद और नीतीश कुमार दोनों को करारी शिकसत देगी, जो नैतिकता, सांप्रदायिकता और सिद्धांत की माला जपते हुए भ्रष्टाचार पर पर्दा डालकर विकास विरोधी राजनीति कर रहे हैं।
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