बिलकिस बानो के 11 गुनाहगारों की समय से पहले रिहाई मामले में SC में सुनवाई की जल्‍द तय होगी तरीख

बिलकिस बानो ने एक याचिका दायर कर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग की है. सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने भरोसा दिया है कि दो जजों की स्पेशल बेंच में सुनवाई की तारीख तय करेंगे.

बिलकिस बानो के 11 गुनाहगारों की समय से पहले रिहाई मामले में SC में सुनवाई की जल्‍द तय होगी तरीख

दो जजों की स्पेशल बेंच सुनवाई की तारीख तय करेगी- CJI

नई दिल्‍ली:

गुजरात के 2002 दंगों में बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार के 11 गुनाहगारों की समय से पहले रिहाई का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. बिलकिस बानो ने एक याचिका दायर कर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग की है. सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने भरोसा दिया है कि दो जजों की स्पेशल बेंच में सुनवाई की तारीख तय करेंगे. बिलकिस की ओर से पेश वकील शोभा गुप्ता ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच से जल्द सुनवाई की मांग करते हुए कहा कि सुनवाई के लिए तारीख नहीं मिल रही है. इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि ये मामला जस्टिस रस्तोगी के पास है. हम दो जजों की स्पेशल बेंच से बात करेंगे और सुनवाई की तारीख देंगे. 

बता दें कि 13 दिसंबर 2022 को जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने बिलकिस बानो की याचिका पर भी सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था. तब से बिलकिस बानो की याचिका पर सुनवाई नहीं हुई है. हालांकि, इससे पहले सुभाषिनी अली और महुआ मोइत्रा की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट नोटिस जारी कर चुका है. साथ ही गुजरात सरकार हलफनामा दाखिल कर रिहाई को कानून के मुताबिक बता चुकी है. 

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है...
 दोषियों की समय से पहले रिहाई न केवल बिलकिस बानो, उसकी बड़ी हो चुकी बेटियों, उसके परिवार के लिए, बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरे समाज के लिए एक झटका है. बिलकिस बानो सहित पूरे देश और पूरी दुनिया को रिहाई की चौंकाने वाली खबर के बारे में तब पता चला जब वो रिहा हो गए. दोषियों को पूरे सार्वजनिक चकाचौंध में माला पहनाई गई और सम्मानित किया गया और मिठाइयां बांटी गईं. ये घटना इंसानों के एक समूह द्वारा इंसानों के एक अन्य समूह, जिसमें असहाय और निर्दोष लोगों पर अत्यधिक अमानवीय हिंसा और क्रूरता का सबसे भीषण अपराधों में से एक, उनमें से अधिकांश या तो महिलाएं या नाबालिग थे. एक विशेष समुदाय के प्रति नफरत से प्रेरित होकर उनका कई दिनों तक पीछा किया गया. गुजरात सरकार का समय से पहले रिहाई का आदेश एक यांत्रिक आदेश है. 

SC ने पहले ही घोषित किया है कि सामूहिक छूट स्वीकार्य नहीं
अपराध की शिकार होने के बावजूद रिहाई की ऐसी किसी प्रक्रिया के बारे में कोई खबर नहीं दी गई. इस रिहाई से वो बेहद आहत, परेशान और निराश हैं. उन्होंने सभी दोषियों की समय से पहले रिहाई से संबंधित कागजात/पूरी फाइल का अनुरोध करने के लिए राज्य सरकार से संपर्क किया था, लेकिन रिमाइंडर के बावजूद राज्य सरकार की ओर से कोई जवाब या कागजात नहीं आया. SC ने पहले ही घोषित किया है कि सामूहिक छूट स्वीकार्य नहीं है. प्रत्येक दोषी के मामले की उनके विशिष्ट तथ्यों और अपराध में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका के आधार पर व्यक्तिगत रूप से जांच जरूरी है. 

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बिलकिस के दोषियों ने दी थी ये दलील
इससे पहले चार जनवरी 2023 को बिलकिस के दोषियों की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई ना करने की दोषियों की मांग सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो बिलकिस की याचिका को मुख्य याचिका मानकर सभी पांच याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. मैरिट पर होगी सुनवाई. दरअसल, दोषियों के वकीलों ने कहा था कि सुभाषिनी अली और महुआ मोइत्रा समेत पांचों याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं. ये तीसरे पक्ष की याचिकाएं हैं और उनका केस में कोई लोकस नहीं है. लेकिन जस्टिस अजय रस्तोगी ने कहा था कि खुद पीड़िता बिलकिस भी यहां आई हैं. 
हम बिलकिस की याचिका तो लीड बनाकर इन याचिकाओं पर सुनवाई करेंगे. एक बार जब पीड़िता यहां आ गई है, तो लोकस का मुद्दा खत्म हो जाता है. याचिकाकर्ता के वकील फाइनल हियरिंग के लिए तैयार होकर आएं. पीठ ने कहा था कि कानूनी मुद्दे और बिंदुओं पर ही बहस करें. याचिकाकर्ता की वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा था  कि कानून और न्याय हमारे साथ है. लेकिन बरी की गए सजायाफ्ता लोगों के वकील ने कहा कि मुख्य याचिकाकर्ता की कोई कानूनी भूमिका यानी लोकस नहीं है. जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने इस मामले में भी खुद को सुनवाई से अलग कर लिया है.