- बिहार विधानसभा चुनाव में वोटिंग खत्म हो गई है, जनता ने अपना फैसला ईवीएम में बंद कर दिया है
- इस बार दोनों चरणों में राज्य में बंपर वोटिंग हुई है, सारे रिकॉर्ड टूटे
- नीतीश कुमार अपनी छवि और महिलाओं की कल्याणकारी योजनाओं के दम पर मजबूती के साथ मैदान में हैं
बिहार विधानसभा 2025 के लिए वोटिंग खत्म हो गई. Exit Poll के नतीजों का निचोड़ है कि बिहार में एनडीए की सरकार बनने जा रही है. चुनाव प्रचार और वोटिंग के दौरान मूल सवाल एक ही पूछा गया. बिहार में किसका पलड़ा भारी है? इस सवाल के जवाब नीचे दिए गए 7 प्वाइंट में समझते हैं.
पीपुल्स पल्स का एग्जिट पोल- NDA को मिल सकती है- 133 से 159 सीटें
| EXIT POLL | NDA | महागठबंधन | जनसुराज पार्टी | अन्य |
| चाणक्य स्ट्रैटजीज | 130-138 | 100-108 | 0-0 | 3-5 |
| दैनिक भास्कर | 145-160 | 73-91 | 0-3 | 5-7 |
| DV रिसर्च | 137-152 | 83-98 | 2-4 | 1-8 |
| JVC | 135-150 | 88-103 | 0-1 | 3-6 |
| Matrize | 147-167 | 70-90 | 0-2 | 2-8 |
| P-मार्क | 142-162 | 80-98 | 1-4 | 0-3 |
| पीपल इनसाइट्स | 133-148 | 87-102 | 0-2 | 3-6 |
| पीपल पल्स | 133-159 | 75-101 | 0-5 | 2-8 |
| पोल ऑफ पोल्स | 147 | 90 | 1 | 5 |
1. चिराग और कुशवाहा एनडीए के साथ का मतलब क्या?
पिछली बार चिराग पासवान की पार्टी को करीब 6% वोट मिले थे. पिछली बार चिराग अलग लड़ रहे थे. पिछली बार उपेंद्र कुशवाहा भी अलग लड़े थे. इन्हें करीब 2% मिले थे. दोनों को मिला दें तो करीब 8% वोट. जबकि पिछले चुनाव में एनडीए एक फीसदी से कम मतों के अंतर से जीत पाई थी. साफ है कि एनडीए ने चुनाव के काफी पहले इस गणित को ठीक करने के लिए काम शुरू कर दिया था. मुकेश सहनी पिछली बार एनडीए के साथ थे और इस बार महागठबंधन के साथ लेकिन कुशवाहा और चिराग का जोड़ सहनी से ज्यादा होगा.

2. एंटी इनकम्बेंसी है या नहीं?
2020 के चुनाव में कोविड का दर्द था. सरकार से गुस्सा था. फिर भी थोड़े से अंतर से ही सही एनडीए जीती. इस बार ऐसी कोई बड़ी वजह चुनाव से तुरंत पहले नजर नहीं आती. नीतीश को बहुत साल हो गए, सिर्फ इस बात पर जनता उन्हें सत्ता से बाहर कर देगी, इस तर्क में ज्यादा दम नहीं. बैठे-बैठे क्या करेंगे, करना है कुछ काम, चलो बदल देते हैं बिहार में सीएम का नाम...ऐसा नहीं होता.

3. पीके किसका खेल बिगाड़ेंगे?
इस सवाल का जवाब छिपा है इस सवाल में. पीके किसके खिलाफ जनादेश मांग रहे हैं? मौजूदा सरकार के खिलाफ. महागठबंधन किसके खिलाफ जनादेश मांग रहा है? मौजूदा सरकार के खिलाफ. सबसे सरल विश्लेषण यही है कि जो नीतीश के खिलाफ हैं, वो बटेंगे और अंतत: फायदा NDA को होगा.
4. दस हजारी योजना का क्या असर?
चुनाव से ऐन पहले नीतीश सरकार ने डेढ़ करोड़ जीविका दीदियों को 10 हजार रुपये दिए. इतना ही नहीं, अगर सरकार वापस आई तो इन जीविका दीदियों को 50 हजार और दो लाख रुपये देने का भी वादा है. ये चाल सारा खेल पलटने का दम रखती है. वैसे भी महिला वोट नीतीश की ताकत रहा है. इस योजना से उन्होंने इस सपोर्ट वोट बैंक को और पुख्ता कर लिया है. सामने से तेजस्वी ने भी कहा है कि सरकार बनी तो मां-बहिन योजना के तहत मिलने वाली सारी राशि 30,000 रुपये 14 जनवरी को एकमुश्त देंगे. लेकिन यहां शर्ते लागू हैं. सरकार बनी तो. इधर वादा है, उधर डिलिवरी है.
5. SIR का क्या असर?
2020 चुनाव कांटे का मुकाबला था. दशमलव एक प्रतिशत वोटों से जीत हार तय हुई थी. सीमांचल, जहां महागठबंधन पिछले चुनाव में मजबूत था, जहां मुसलमान आबादी ज्यादा है, वहां सबसे ज्यादा वोट कटे हैं. करीब 6%. किसको फायदा होगा?
6. छठ के बाद वोट से किसको फायदा?
ऐन छठ के बाद वोटिंग. अनुमान है कि इस बार लाखों बिहारी वोट देने के लिए छठ के बाद रुक गए. दोनों गठबंधनों की पहचान को लेकर जिस तरह की धार्मिक लकीर खिंची है, उससे कोई भी अंदाजा लगा सकता है छठ के बाद वोट देने के लिए रुक गए वोटरों का ज्यादा प्यार किसे मिलेगाय़
7. NDA vs महागठबंधन : किसका बेहतर चुनाव प्रबंधन?
एक तरफ NDA साधन संपन्न, दूसरी तरफ सत्ता से दूर महागठबंधन. दांव पर ज्यादा है महागठबंधन का लेकिन टिकट बंटवारे से लेकर गठबंधन में एकजुटता के ज्यादा प्रयास दिखे NDA में. जिस चुनाव में एक-एक वोट की कीमत है वहां महागठबंधन पांच सीटों पर मतभेद ही नहीं सुलझा पाया. तर्कहीन फ्रेंडली फाइट कर रहे हैं. ओवैसी कहते रह गए कि मैं तैयार हूं लेकिन उनसे सुलह नहीं हो पाई. जेएमएम रूठकर मैदान से बाहर हो गई. अगर मैच आखिरी ओवर तक गया तो ओवैसी और सोरेन का 'मिस्ड कैच', हरा सकता है.
डिस्क्मलेर- बिहार में दोनों चरणों में रिकॉर्ड़तोड़ वोटिंग हुई है. रिकॉर्ड वोट सत्तारूढ़ पार्टी को उखाड़ने के लिए ही हो, जरूरी नहीं. हां अगर बिहार की सियासी जमीन के इतने नीचे कोई अंडर करंट हो, जिसे जमीन से नहीं भांपा जा सकता तो अलग बात है. वैसे भी बिहार के बारे में एक खास बात है कि गांधी से लेकर जेपी तक, ये जमीन अप्रत्याशित बदलाव के लिए उर्वर रही है.
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