असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने रविवार को असमिया लोगों से अपील की कि वे स्वदेशी आबादी की संस्कृति और पहचान की रक्षा के लिए किसी भी 'संदिग्ध विदेशी' को अपनी जमीन न बेचें. सरमा ने किसी भी समुदाय की प्रगति के लिए वित्तीय विकास के महत्व पर जोर देते हुए लोगों, विशेषकर युवाओं से आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने का आग्रह किया.
गुवाहाटी के बोरागांव में असम आंदोलन के शहीदों की याद में मनाए गए 'स्वाहिद दिवस' कार्यक्रम में सरमा ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि अगर हर असमवासी अपनी जमीन किसी संदिग्ध विदेशी को नहीं बेचने की प्रतिज्ञा करें, तो हमारी 'जाति' सुरक्षित रहेगी. कुछ परिवार आर्थिक लाभ के लिए अपनी ज़मीन बेच देते हैं, लेकिन कई परिवारों को पैसे की ज़रूरत भी नहीं होती है और फिर भी वे इसे संदिग्ध विदेशियों को बेच देते हैं.''
उन्होंने कहा, ''आइए हम अपनी जमीन अब किसी भी संदिग्ध विदेशी को नहीं बेचने की प्रतिज्ञा करें.''
सरमा ने कहा कि राज्य सरकार वैष्णव संस्कृति के केंद्र माजुली, बारपेटा और बटाद्रवा जैसी जगहों पर ''बाहरी लोगों'' को जमीन की बिक्री पर रोक लगाने वाला कानून लाएगी.
उन्होंने अवैध प्रवासियों के खिलाफ छह साल तक चले असम आंदोलन के साथ अपने जुड़ाव का जिक्र किया जिसकी परिणति अगस्त 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर के साथ हुई थी.
सरमा ने कहा, ‘‘आंदोलन सिर्फ भावनाओं पर आधारित नहीं था, बल्कि तर्क पर भी आधारित था। आंदोलन के कई नेताओं ने असम को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने का सपना देखा था और उस समय के युवाओं ने भी छोटी-मोटी नौकरियां करके इसका जवाब दिया था.''
उन्होंने दावा किया, 'लेकिन अब ऐसा नहीं है. असमिया युवाओं की काम करने की इच्छा की कमी का फायदा उठाकर संदिग्ध विदेशियों ने महत्वपूर्ण स्थानों पर व्यापार और वाणिज्य पर कब्जा कर लिया है.'
यह उल्लेख करते हुए कि आर्थिक आत्मनिर्भरता उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी संस्कृति और भाषा की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम, मुख्यमंत्री ने युवाओं से अधिक परिश्रमी बनने और श्रम की गरिमा को महत्व देने का आग्रह किया.
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