फाइल फोटो
नई दिल्ली:
सवाल है, कई दिन जो समझौता टलता रहा, उसमें नाराज़ पक्ष क्या अब पूरी तरह संतुष्ट हैं? सूत्र बता रहे हैं कि पासवान वादे से कम सीटें मिलने की बात कह रहे हैं तो मांझी ये गुत्थी सुलझाने में लगे हैं कि उनकी पार्टी के उम्मीदवार कमल निशान पर कैसे चुनाव लड़ सकते हैं।
अमित शाह के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में बैठे रामविलास पासवान के चेहरे पर वो रौनक नहीं दिखी जो ऐसे मौक़ों पर दिखती है। सीटों के बंटवारे पर सहमति जताई और निकल गए।
लेकिन सूत्र बता रहे हैं कि पासवान 45 सीटों की उम्मीद कर रहे थे। वो इस बात से भी नाराज़ हैं कि बीजेपी जीतनराम मांझी को कुछ ज़्यादा भाव दे रही हैं। हालांकि असमंजस में मांझी भी हैं. समझ नहीं पा रहे कि उनकी पार्टी के उम्मीदवार बीजेपी के टिकट पर चुनाव कैसे लड़ सकते हैं।
जेडीयू इसे मांझी का अपमान बताकर उन्हें उकसाने में लगी है। सीटों के लिहाज से मामला 5-10 सीटों का ही है। लेकिन मांझी और पासवान एनडीए की राजनीति में तुरुप के वो पत्ते हैं, जो लालू-नीतीश से दलित वोटों का बड़ा हिस्सा छीन सकते हैं। सवाल ये है कि क्या इनको नाराज़ करके बीजेपी बिहार जीत सकती है?
अमित शाह के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में बैठे रामविलास पासवान के चेहरे पर वो रौनक नहीं दिखी जो ऐसे मौक़ों पर दिखती है। सीटों के बंटवारे पर सहमति जताई और निकल गए।
लेकिन सूत्र बता रहे हैं कि पासवान 45 सीटों की उम्मीद कर रहे थे। वो इस बात से भी नाराज़ हैं कि बीजेपी जीतनराम मांझी को कुछ ज़्यादा भाव दे रही हैं। हालांकि असमंजस में मांझी भी हैं. समझ नहीं पा रहे कि उनकी पार्टी के उम्मीदवार बीजेपी के टिकट पर चुनाव कैसे लड़ सकते हैं।
जेडीयू इसे मांझी का अपमान बताकर उन्हें उकसाने में लगी है। सीटों के लिहाज से मामला 5-10 सीटों का ही है। लेकिन मांझी और पासवान एनडीए की राजनीति में तुरुप के वो पत्ते हैं, जो लालू-नीतीश से दलित वोटों का बड़ा हिस्सा छीन सकते हैं। सवाल ये है कि क्या इनको नाराज़ करके बीजेपी बिहार जीत सकती है?
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