कट्टरपंथी अलगाववादी नेता मसर्रत आलम की रिहाई से पीडीपी-भाजपा गठबंधन में तनाव पैदा होने और संसद में जोरदार तरीके से यह विषय उठने के बाद आज जम्मू-कश्मीर सरकार ने कहा कि वह अब और राजनीतिक बंदियों या उग्रवादियों को रिहा नहीं करेगी।
जब जम्मू-कश्मीर के गृह सचिव सुरेश कुमार से पूछा गया कि क्या सरकार और भी उग्रवादियों तथा राजनीतिक बंदियों की रिहाई जारी रखेगी तो उन्होंने कहा, 'इस तरह की कोई बात नहीं है।' कुमार ने जम्मू में कहा, 'मसर्रत आलम के खिलाफ लोक सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत दोबारा कोई मामला नहीं बनता, इसलिए उसे रिहा किया गया। इसके अलावा और कुछ नहीं है।'
आलम की रिहाई के फैसले का बचाव करते हुए गृह सचिव ने कहा, 'किसी को पीएसए के तहत हिरासत में रखने की सीमा होती है। आप उसे ज्यादा से ज्यादा छह महीने तक हिरासत में रख सकते हैं और एक बार और रख सकते हैं।' उन्होंने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार आप किसी को समान आरोप में बार-बार हिरासत में नहीं रख सकते। अगर आपने ऐसा किया है तो उसके खिलाफ नए आरोप होने चाहिए।'
इस मामले में उठे विवाद के बीच जम्मू-कश्मीर के उप-मुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने आज दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात की और उन्हें आलम की रिहाई को लेकर उठे विवाद के मद्देनजर राज्य के हालात से अवगत कराया।
सूत्रों के अनुसार सिंह ने शाह से उनके आवास पर मुलाकात की और उन्हें इस विवादास्पद मुद्दे पर प्रदेश भाजपा के रख के बारे में जानकारी दी। उन्होंने शाह को सईद को इस बाबत सौंपे गए ज्ञापन के बारे में भी बताया।
इस मुद्दे पर सरकार की आलोचनाओं के बीच केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आज कहा कि उनकी सरकार की शीर्ष प्राथमिकता राष्ट्रीय सुरक्षा है और राज्य में सरकार में बने रहना उनकी प्राथमिकता में नहीं है जहां भाजपा का पीडीपी के साथ गठबंधन है।
विपक्षी दलों ने संसद में इन खबरों को लेकर सरकार के खिलाफ हल्ला बोला है कि जम्मू कश्मीर सरकार 800 और अलगाववादियों को रिहा करने की योजना बना रही है। विपक्षी दलों ने जानना चाहा कि क्या राज्य के राज्यपाल ने केंद्र को अपनी रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को संसद में कहा था कि आलम की रिहाई मंजूर नहीं है और सरकार राष्ट्र की अखंडता के साथ किसी तरह का समझौता बर्दाश्त नहीं करेगी।
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