बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
बोलने की आजादी पर उठते सवालों के बीच बीजेपी और आरएसएस के बड़े नेता सामने आए हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का कहना है कि प्रधानमंत्री और सरकार का विरोध कर सकते हैं लेकिन देश का विरोध नहीं करना चाहिए. वहीं आरएसएस के वरिष्ठ नेता दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि लोकतंत्र में असहमति की जगह है लेकिन असहमति के विरोध को असहिष्णुता नहीं कहा जा सकता.
गोवा में इंडिया फ़ाउंडेशन के इंडिया आइडियाज़ कॉन्क्लेव में इन दोनों ने अलग-अलग रूप से ये बातें कहीं. इस सम्मेलन का विषय भारत 70 साल- प्रजातंत्र, विकास और असहमति है. दोनों ही नेताओं ने लोकतंत्र में असहमति के महत्व को रेखांकित भी किया.
शाह ने कहा कि आजादी के बाद से जितना विरोध नरेंद्र मोदी का हुआ, उतना किसी नेता का नहीं हुआ. लोकतंत्र में असहमति व्यक्त करने की छूट है. प्रधानमंत्री का विरोध कर सकते हैं. सरकार का विरोध कर सकते हैं लेकिन देश विरोध नहीं किया जाना चाहिए. शाह ने कहा कि "अगर देश विरोध को अभिव्यक्ति की आजादी के कपड़े पहना कर आलोचना करेंगे तो देश ये सहन नहीं करेगा".
होसबोले ने कहा कि प्रजातंत्र में चर्चा की सबसे ज्यादा गुंजाइश होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि 5000 साल पहले कुरुक्षेत्र में भी संवाद और चर्चा हुई थी लेकिन अब मीडिया और बौद्धिक वर्ग ने राष्ट्रीय सहमति बनाने में मदद करने के बजाए मतभेद को गहराने का काम किया. हमारे टेलिविज़न के बहस के कार्यक्रमों में शोरगुल होता है मगर संवाद नहीं होता. आम सहमति प्रजातंत्र के मूल में है.
तीन तलाक का मुद्दा
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने तीन तलाक का मुद्दा भी उठाया. उन्होंने कहा कि सरकार इसे महिलाओं के अधिकार के रूप में देखती है इसीलिए जब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की राय पूछी तो बिना किसी धर्म और किसी भेदभाव को ध्यान में रखते हुए बिना झिझक इसके बारे में बता दिया गया.
वहीं इस्लाम के विद्वान महमूद मदनी ने कहा कि इस मुद्दे पर सलाह-मशविरे की जरूरत है. उनका कहना है कि इस्लाम में हर बात का रास्ता बताया गया है. जबकि संघ नेता होसबोले से महिलाओं के अधिकार के बारे में पूछा गया. उनका कहना था कि संघ महिलाओं और पुरुषों में भेदभाव नहीं करता. होसबोले ने कहा कि संघ का मानना है कि पुरुष और स्त्री में जितना अंतर प्रकृति ने बनाया, उतना ही है. उससे ज्यादा नहीं. तीन दिन के इस सम्मेलन को देश-विदेश की कई मशहूर हस्तियां संबोधित कर रही हैं इसका समापन रविवार दोपहर को होगा.
गोवा में इंडिया फ़ाउंडेशन के इंडिया आइडियाज़ कॉन्क्लेव में इन दोनों ने अलग-अलग रूप से ये बातें कहीं. इस सम्मेलन का विषय भारत 70 साल- प्रजातंत्र, विकास और असहमति है. दोनों ही नेताओं ने लोकतंत्र में असहमति के महत्व को रेखांकित भी किया.
शाह ने कहा कि आजादी के बाद से जितना विरोध नरेंद्र मोदी का हुआ, उतना किसी नेता का नहीं हुआ. लोकतंत्र में असहमति व्यक्त करने की छूट है. प्रधानमंत्री का विरोध कर सकते हैं. सरकार का विरोध कर सकते हैं लेकिन देश विरोध नहीं किया जाना चाहिए. शाह ने कहा कि "अगर देश विरोध को अभिव्यक्ति की आजादी के कपड़े पहना कर आलोचना करेंगे तो देश ये सहन नहीं करेगा".
होसबोले ने कहा कि प्रजातंत्र में चर्चा की सबसे ज्यादा गुंजाइश होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि 5000 साल पहले कुरुक्षेत्र में भी संवाद और चर्चा हुई थी लेकिन अब मीडिया और बौद्धिक वर्ग ने राष्ट्रीय सहमति बनाने में मदद करने के बजाए मतभेद को गहराने का काम किया. हमारे टेलिविज़न के बहस के कार्यक्रमों में शोरगुल होता है मगर संवाद नहीं होता. आम सहमति प्रजातंत्र के मूल में है.
तीन तलाक का मुद्दा
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने तीन तलाक का मुद्दा भी उठाया. उन्होंने कहा कि सरकार इसे महिलाओं के अधिकार के रूप में देखती है इसीलिए जब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की राय पूछी तो बिना किसी धर्म और किसी भेदभाव को ध्यान में रखते हुए बिना झिझक इसके बारे में बता दिया गया.
वहीं इस्लाम के विद्वान महमूद मदनी ने कहा कि इस मुद्दे पर सलाह-मशविरे की जरूरत है. उनका कहना है कि इस्लाम में हर बात का रास्ता बताया गया है. जबकि संघ नेता होसबोले से महिलाओं के अधिकार के बारे में पूछा गया. उनका कहना था कि संघ महिलाओं और पुरुषों में भेदभाव नहीं करता. होसबोले ने कहा कि संघ का मानना है कि पुरुष और स्त्री में जितना अंतर प्रकृति ने बनाया, उतना ही है. उससे ज्यादा नहीं. तीन दिन के इस सम्मेलन को देश-विदेश की कई मशहूर हस्तियां संबोधित कर रही हैं इसका समापन रविवार दोपहर को होगा.
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