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This Article is From Apr 07, 2012

इलाहाबाद बाल गृह में रेप के मामले में नौ निलंबित

इलाहाबाद: उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में राजकीय बाल गृह की मासूम बच्चियों से बलात्कार की खबर से शासन में हड़कंप मच गया है। बाल गृह में हुए इस कांड के बाद यहां की प्रमुख उर्मिला गुप्ता से इस्तीफा मांगा गया है। इसके साथ ही डीएम इलाहाबाद ने यहां के 9 कमर्चारियों को निलंबित कर दिया है। कमर्चारियों पर लापरवाही बरतने का आरोप है।

इससे पहले आरोपी विद्याभूषण ओझा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है। आरोपी विद्याभूषण बाल गृह में चपरासी का काम करता था। इसके अलावा मामले में आगे की जांच के लिए एक मजेस्ट्रीयल कमेटी बनाई गई है। जांच अधिकारियों को इस मामले से जुड़े दो और आरोपी के बारे में जल्द रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है।

गौरतलब है कि सरकार द्वारा चलाये जाने वाले बाल सुधार गृह में 10 साल से कम उम्र की कम से कम तीन लड़कियों के साथ बलात्कार और आरोपी चपरासी की गिरफ्तारी तथा अधीक्षक के निलंबन की घटना से पूरी तरह से स्तब्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए एक दिशा निर्देश जारी किया है ताकि समाज में ऐसा कड़ा संदेश जाये जिससे फिर कोई ऐसी हरकत नहीं कर सके।

बलात्कार के आरोपी चपरासी विद्याभूषण ओझा (52) को किशोर गृह के नजदीक से गिरफ्तार कर लिया गया है। यह बाल सुधार गृह शहर के शिवकुटी इलाके में पड़ता है। यह घटना बीती रात हुई और पुलिस का दावा है कि आरोपी ने स्वीकार किया है कि उसने वहां रहने वाली कई लड़कियों का यौन उत्पीड़न किया है।

यह मामला उस समय प्रकाश में आया जब एक छह वर्षीय लड़की ने किशोर गृह के अंदर चल रही गतिविधियों के बारे में एक दंपति को बताया। इस दंपति ने लड़की को हाल ही में गोद लिया है। इस दंपति ने किशोर गृह की अधीक्षक उर्मिला गुप्ता से संपर्क किया और उन्होंने ओझा के खिलाफ शिवकुटी पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज की। ओझा पड़ोसी राज्य बिहार के सिवान जिले का रहने वाला है।

पुलिस ने दावा किया कि ओझा ने गिरफ्तारी के बाद अपना अपराध स्वीकार किया है। बाल सुधार गृह की तीन लड़कियों को चिकित्सा जांच के लिये ले जाया गया जहां उनके साथ हुए यौन उत्पीड़न की पुष्टि हो गई।

जिला परिवीक्षा अधिकारी इला पंत ने मामले पर कड़ा रवैया अख्तियार किया और आज उर्मिला गुप्ता को लापरवाही बरतने के लिये निलंबित कर दिया और ओझा को सेवा से बख्रास्त कर दिया। इस बीच न्यायमूर्ति अमर सरन और न्यायमूर्ति अशोक श्रीवास्तव की इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया और आदेश दिया कि इसे आपराधिक जनहित याचिका के रूप में माना जाये।

खंडपीठ ने कहा, हम पूरी तरह से स्तब्ध हैं। उन्होंने कहा, 'हम यह चाहेंगे कि सभी तीन मामलों की जांच और सुनवाई तीन महीने के अंदर पूरी हो जाये ताकि समाज में यह संदेश जाये कि ना ही अदालत और ना ही समाज ऐसे किसी व्यक्ति के घिनौने कार्य को सहन नहीं करेगा जिसे असहाय और अनाथ लड़कियों को शरण देने की जिम्मेदारी दी गई है।'  

खंडपीठ ने जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक इलाहाबाद को 11 अप्रैल को व्यक्तिगत रूप से पेश होकर आरोपियों के खिलाफ उठाये गये कदमों के बारे में जानकारी देने के लिये कहा।
(इनपुट भाषा से भी)

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