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This Article is From May 19, 2020

आयुध निगमीकरण के विरोध में फेडरेशनों ने राजनाथ सिंह को लिखी चिट्ठी, कहा-रद्द नही किया फैसला तो कर्मचारी जाएंगे हडताल पर

केंद्र सरकार द्वारा आयुध निर्माण के निगमीकरण के फैसले का तीनों फेडरेशन BPMS, INDWF और AIDEF ने विरोध दर्ज कराया है.

आयुध निगमीकरण के विरोध में फेडरेशनों ने राजनाथ सिंह को लिखी चिट्ठी, कहा-रद्द नही किया फैसला तो कर्मचारी जाएंगे हडताल पर
आयुध निर्माणियों के निगमीकरण के विरोध में तीनों फेडरेशन ने राजनाथ सिंह को लिखी चिट्ठी
नई दिल्ली:

केंद्र सरकार द्वारा आयुध निर्माण के निगमीकरण के फैसले का तीनों फेडरेशन BPMS, INDWF और AIDEF ने विरोध दर्ज कराया है. तीनों फेडरेशन ने रक्षा मंत्री को एक पत्र लिखकर फैसले को वापस लेने की मांग की है. फेडरेशनों की मांग है कि अगर सरकार ने इस फैसले को वापस नहीं लिया तो 82 हजार कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने को मजबूर हो जाएंगे. रक्षा मंत्री को लिखे पत्र के मुताबिक देश के सभी 41आयुध कारखानों और उसके मुख्यालय में काम करने वाले 82 हजार कर्मचारी वित्त मंत्री के निगमीकरण के ऐलान से  बहुत हैरान हैं. उनके मुताबिक यह समझ से पर है कि आयुध कारखानों का निगमीकरण कैसे COVID-19 राहत पैकेज का हिस्सा बन गया ? पूर्व में मान्यता प्राप्त तीनों फेडरेशनों और भारत सरकार के साथ लिखित समझौते हैं कि आयुध कारखानों को कॉरपोरेटाइज नहीं किया जाएगा. इन सभी समझौतों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है और इनका उल्लंघन किया जा रहा है. 

गौरतलब है कि  सरकार ने जब पिछले साल अपने 100 दिनों के एजेंडा में आयुध निर्माणियों के निगमीकरण के मुद्दे को लाया तो तीन मान्यता प्राप्त फेडरेशन, ट्रेड यूनियनों तथा आयुध निर्माणी कर्मचारियों ने सरकार के फैसले को वापस लेने की मांग के लिए पांच दिन के हड़ताल पर भी गए थे.  सरकार की ओर से भरोसा भी दिलाया गया कि अभी तक आयुध कारखानों के निगमिकरण का कोई फैसला नहीं लिया है और इस संबंध में संघों की चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार द्वारा एक उच्च स्तरीय आधिकारिक समिति का गठन किया जाएगा. इस समझौते के आधार पर हड़ताल को टाल दिया गया. फेडरेशन को नहीं पता है कि समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है या नहीं. समिति ने सरकार को रिपोर्ट सौंप भी दी हो लेकिन फेडरेशनों को उसकी प्रति नहीं दी गई है. इस बीच, COVID-19 वायरस महामारी का खतरा देश के लिए एक बड़ा खतरा बन गया. देश एक राष्ट्रीय लॉकडाउन में चला गया. 

इस दौरान COVID-19 संकट के दौरान सरकार ने डॉक्टर्स, नर्स, हॉस्पिटल स्टाफ और सेनेटरी कर्मचारियों जैसे अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं की रक्षा के लिए पीपीई बनाने का काम इन्हीं आयुध कारखानों के कर्मचारियों ने आगे बढ़कर किया. मुश्किल हालात में  अपने परिवार के सदस्यों को भूलकर कारखाने में नियमित रूप से भाग लिया और दिन-रात काम किया. एक छोटी अवधि के भीतर सभी मेडिकल प्रोडक्ट जैसे मेडिकल कवरॉल सूट, मेडिकल एंड नॉन-मेडिकल मास्क, सैनिटाइज़र, हॉस्पिटल आइसोलेशन मेडिकल टेंट आदि का उत्पादन किया गया. वैसे आयुध निर्माणी सेना के गोला बारूद और मिसाइल तक बनाती है. इनके मुताबिक ऐसे हालात मे भारत सरकार ने उन कर्मचारियों की सेवाओं को मान्यता देने के बजाय उन्हें एक निगम के कर्मचारी के रूप में बदलने का  फैसला स्वीकार्य नही है. 

फेडरेशन के अनुसार एक लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार इतनी असंवेदनशील नहीं हो सकती है. जब संबंधित ट्रेड यूनियनों की अनदेखी कर और लोकतंत्र में सरकार के साथ एक हड़ताल नोटिस पर फेडरेशंस के साथ बातचीत लंबित थी तो फिर कैसे हमारे देश के सबसे पुराने औद्योगिक सेटअप आयुध कारखानों को निगम में परिवर्तित करने का और इसे शेयर बाजार में सूचीबद्ध करने का निर्णय लिया गया. 

तीनो फेडरेशनों BPMS, INDWF, AIDEF ने कहा की हम यह मानने की स्थिति में नहीं हैं कि सरकार COVID-19 लॉकडाउन की स्थिति का लाभ कैसे उठा सकती है और प्रभावित लोगों को आर्थिक राहत देने के नाम पर  एक सरकारी विभाग को निगम में बदल सकती है. 82 हजार कर्मचारियों की सेवा शर्तें बदलने के लिए नीति की घोषणा कर सकती है. यह हर कर्मचारी के साथ विश्वासघातऔर पीठ में छुरा घोंपने के अलावा और कुछ नहीं है. इस तरह से निर्णय लिया जाना 1976 के आपातकालीन दिनों को याद दिलाता है. सरकार का यह निर्णय मनमाना, अवैध, अनुचित, अलोकतांत्रिक और अनुचित है. 
 

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