मुंबई में सीबीआई की विशेष अदालत ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को बड़ी राहत देते हुए सोहराबुद्दीन और तुलसीराम प्रजापति फर्जी मुठभेड़ मामले में उनके खिलाफ लगे सभी आरोप खारिज कर दिए हैं। उधर, सोहराबुद्दीन का परिवार अब इस मामले को हाईकोर्ट लेकर जाने की तैयारी में है।
दरअसल, इस मामले में अमित शाह ने खुद को आरोपमुक्त करने की अर्ज़ी दी थी, जिस पर पिछली तारीख़ को सुनवाई पूरी हो चुकी थी। सीबीआई के मुताबिक, सोहराबुद्दीन शेख नवंबर, 2005 में अपनी पत्नी के साथ बस में हैदराबाद से सांगली जा रहे थे, तब गुजरात की एन्टी टेररिज्म स्क्वॉड ने दोनों का पहले अपहरण किया और फिर कथित तौर पर फर्ज़ी मुठभेड़ में उनकी हत्या कर दी। तकरीबन साल भर बाद दिसंबर में मामले के गवाह तुलसीराम प्रजापति की भी कथित फर्ज़ी मुठभेड़ में हत्या कर दी गई।
विशेष अदालत ने सीबीआई के सबूतों और दलीलों को मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त नहीं पाया। जज एमबी गोसावी ने अपने फैसले में कहा कि सिर्फ कुछ फोन कॉल और बार-बार बयान बदलते गवाहों की कहानी के आधार पर सीबीआई का यह अनुमान लगाना सही नहीं है कि अमित शाह भी साज़िश में शामिल हो सकते हैं, इसलिए अमित शाह की उन्हें आरोपमुक्त करने की अर्ज़ी को मैं मंज़ूर करता हूं।
यह फैसला जहां एक तरफ बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के लिए बड़ी राहत है, वहीं साल 2005 में मारे गए सोहराबुद्दीन के परिवार के लिए किसी झटके से कम नहीं। जज गोसावी जब यह फैसला सुना रहे थे, सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन वहां मौजूद थे। फैसला सुनते ही वह रुआंसे हो गए।
अदालत से बाहर आने के बाद रुबाबुद्दीन अपनी नाराजगी छिपा नहीं पाए और फैसले के खिलाफ मुंबई हाईकोर्ट में जाने के साथ-साथ जज की शिकायत करने की बात तक कह डाली। सोहराबुद्दीन मामले से ही जुड़ा केस तुलसीराम प्रजापति की कथित फर्ज़ी मुठभेड़ भी है। दरअसल तुलसीराम, सोहराबुद्दीन के मुठभेड़ में मारे जाने का अहम गवाह था।
तुलसी की मां का कहना है कि अगर इतना बड़ा आरोपी छूट गया तो बाकी तो छोटी मछलियां हैं, वे भी छूट ही जाएंगी। पूरा मामला दरअसल राजस्थान के मार्बल व्यापार से जुड़ा है। सीबीआई की कहानी के मुताबिक सोहराबुद्दीन शेख एक गैंगस्टर था, उसकी जबरन उगाही से तंग आकर मार्बल व्यापारी विमल पटनी ने राजस्थान के तत्कालीन गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया और अमित शाह से मिलकर सोहराबुद्दीन की हत्या की साज़िश रची थी।
उसी साजिश के तहत गुजरात और राजस्थान पुलिस के कुछ अफसरों ने मिलकर हत्या को अंजाम दिया, फिर उसे मुठभेड़ बताकर वाह-वाही भी लूटी। इसके ठीक एक साल बाद मामले का गवाह तुलसीराम प्रजापति भी मुठभेड़ में मारा गया, लेकिन जब मामला खुला और जांच हुई, तब गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह, राजस्थान के तत्कालीन गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया के अलावा गुजरात और राजस्थान के कुछ पुलिस अफसरों सहित कुल 38 लोग आरोपी बनाए गए।
मामला गुजरात पुलिस से लेकर सीबीआई को दे दिया गया। निष्पक्ष सुनवाई के लिए मुकदमा भी गुजरात से मुंबई स्थानांतरित कर दिया गया। इसके बावजूद अमित शाह मुकदमा शुरू होने से पहले ही बरी हो गए। अमित शाह के वकील मितेश अमीन का कहना है कि वह तो पहले से ही कह रहे थे कि अमित शाह को राजनीतिक साज़िश के तहत फंसाया गया है। अब अदालत के फैसले के बाद उस पर मुहर भी लग गई। अदालत ने भी माना कि बचाव पक्ष के आरोपों में तथ्य लगता है। चूंकि मामला बीजेपी के अध्यक्ष के आरोपमुक्त होने का है, इसलिए सवाल तो बनता है कि अमित शाह के खिलाफ सीबीआई क्यों पुख्ता सबूत जमा नहीं कर पाई।
क्या है पूरा मामला...?
- 22-23 नवंबर, 2005 - हैदराबाद से लौटते वक्त सोहराबुद्दीन, उसकी पत्नी और एक व्यक्ति को डीआइजी डीजी वंजारा ने उठाया।
- 26 नवंबर, 2005 - अहमदाबाद में कथित फर्जी मुठभेड़ में सोहराबुद्दीन मारा गया। सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी को कुछ दिन बाद फर्जी मुठभेड़ में मारा गया।
- 2007 - डीआईजी (अहमदाबाद) रजनीश राय ने जांच सीआईडी (क्राइम) को सौंपी
- 23 अप्रैल, 2007 - डीजी वंजारा, दिनेश एमए और राजकुमार पांडियन गिरफ्तार
- मई, 2007 - मामले की जांच से हटाए गए रजनीश राय
- जनवरी, 2010 - सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ की जांच सीबीआई को सौंपी गई
- अप्रैल, 2010 - सीबीआई ने डीआईजी अभय चुड़ासमा को गिरफ्तार किया
- जुलाई, 2010 - अमित शाह को सीबीआई ने गिरफ्तार किया
कौन था सोहराबुद्दीन...?
- मध्य प्रदेश के झारनिया गांव का रहने वाला था सोहराबुद्दीन
- कई आपराधिक मामलों में रहा था शामिल
- उदयपुर, अहमदाबाद और उज्जैन से चलाता था गिरोह
- जबरन वसूली के कई मामलों में आया सोहराबुद्दीन का नाम
- कुछ लोगों का दावा, पुलिस का मुखबिर था सोहराबुद्दीन
- लोगों का दावा, पुलिस की मुखबिरी करते-करते बना अपराधी
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