अजमेर धमाके के दोषी के साथ पुलिस...
जयपुर:
जयपुर की विशेष अदालत ने अजमेर बम विस्फोट कांड में दो दोषियों देवेश गुप्ता और भावेश पटेल को उम्रकैद की सजा सुनाई है. इस केस में असीमानंद समेत सात आरोपियों को कोर्ट बरी कर चुकी है जबकि उसने तीन अभियुक्तों को इस मामले में दोषी पाया था. कोर्ट ने मामले में आज सजा का ऐलान किया है.
राष्ट्रीय जांच एजेन्सी के मामलों की विशेष अदालत के न्यायाधीश दिनेश गुप्ता ने अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह परिसर में 11 अक्टूबर 2007 को आहता ए नूर पेड़ के पास हुए बम विस्फोट मामले में देवेन्द्र गुप्ता, भावेश पटेल और सुनील जोशी को दोषी करार दिया था. तब सजा का ऐलान बाद में करने की बात कोर्ट ने कही थी.
मामले में मुख्य आरोपी सुनील जोशी की विस्फोट के ठीक तीन माह बाद रहस्यमय तरीके से मौत हो गई थी. उनके करीबी साथी देवेंद्र गुप्ता झारखंड के जामताड़ा में संघ के विभाग प्रचारक थे. अजमेर दरगाह में बम रखने के मामले में दोषी भावेश पटेल हैं. देवेंद्र गुप्ता पर आरोप साबित हुआ है कि उसने अजमेर दरगाह में ब्लास्ट करने के लिए षड्यंत्र रचा और ब्लास्ट करवाना सुनिश्चित किया. असीमानंद पर हमले की योजना बनाने का आरोप था. 11 अक्टूबर 2007 को हुए इस ब्लास्ट में तीन लोगों की मौत हो गई थी और 15 लोग घायल हुए थे.
जेल जाते हुए भावेश पटेल ने बयान दिया कि 'हम निर्दोष थे, निर्दोष हैं. हम फैसले का अनादर नहीं करते हैं लेकिन हम विवशता के तहत हाईकोर्ट में जाएंगे."
बचाव पक्ष के वकील जगदीश एस राणा ने बताया था कि अदालत ने स्वामी असीमानंद समेत सात लोगों को सन्देह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है. दोषी पाए गए अभियुक्तों में से सुनील जोशी की मृत्यु हो चुकी है.
उन्होंने बताया था कि अदालत ने स्वामी असीमानंद, हर्षद सोलंकी, मुकेश वासाणी, लोकेश शर्मा, मेहुल कुमार, भरत भाई को सन्देह का लाभ देते हुए बरी कर दिया. उन्होंने बताया था कि न्यायालय ने देवेन्द्र गुप्ता, भावेश पटेल और सुनील जोशी को भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी, 195 और धारा 295 के अलावा विस्फोटक सामग्री कानून की धारा 3(4) और गैर कानूनी गतिविधियों का दोषी पाया.
इस मामले में नेशनल इनवेस्टिगेटिंग एजेंसी (एनआईए) की भूमिका को लेकर कई सवाल उठे थे. कुल 149 गवाह थे जिनमें से 26 बयान से मुकर गए. एनआईए के वकील अश्विनी शर्मा का कहना है कि "जो गवाह मुकरे थे उनमें रणधीर सिंह जो कि अब झारखंड में मंत्री हैं भी शामिल थे. एनआईए चाहती तो उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती थी.'
असीमानंद कई अन्य बम ब्लास्ट के मामले में भी आरोपी हैं जिसमें हैदराबाद की मक्का मस्जिद में 2007 में ब्लास्ट और उसी वर्ष समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट शामिल है जिसमें लगभग 70 लोगों की मौत हो गई थी. समझौता एक्सप्रेस भारत-पाकिस्तान के बीच चलती है. उन्हें 2010 में जेल भेजा गया जहां उन्होंने आतंकी मामलों में कथित तौर पर अपनी भूमिका को स्वीकार किया था. बाद में उन्होंने कहा कि जांच अधिकारियों ने उन्हें प्रताड़ित करके झूठा बयान दिलाया था.
अजमेर दरगाह ब्लास्ट केस राजनीतिक रूप से बहुत संवेदनशील रहा है. इसमें एनआईए का तर्क था कि यह एक हिंदू आतंकवादी संगठन का कार्य था जो सांप्रदायिक सद्भाव को नुकसान पहुंचाना चाहता था. एनआईए का यह भी तर्क था कि सिर्फ अजमेर दरगाह ब्लास्ट ही नहीं हैदराबाद की मक्का मस्जिद, मालेगांव और समझौता एक्सप्रेस में जो ब्लास्ट हुए थे, वे सारे हिंदू कट्टरपंथियों ने कराए थे. जांच में यह भी सामने आया कि जो सिम कार्ड अजमेर दरगाह ब्लास्ट करवाने में इस्तेमाल किए गए थे, वही सिम कार्ड मक्का मस्जिद ब्लास्ट में भी इस्तेमाल हुए थे. अजमेर दरगाह और मक्का मस्जिद में हुए विस्फोटों में कई समानताएं थीं.
राष्ट्रीय जांच एजेन्सी के मामलों की विशेष अदालत के न्यायाधीश दिनेश गुप्ता ने अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह परिसर में 11 अक्टूबर 2007 को आहता ए नूर पेड़ के पास हुए बम विस्फोट मामले में देवेन्द्र गुप्ता, भावेश पटेल और सुनील जोशी को दोषी करार दिया था. तब सजा का ऐलान बाद में करने की बात कोर्ट ने कही थी.
मामले में मुख्य आरोपी सुनील जोशी की विस्फोट के ठीक तीन माह बाद रहस्यमय तरीके से मौत हो गई थी. उनके करीबी साथी देवेंद्र गुप्ता झारखंड के जामताड़ा में संघ के विभाग प्रचारक थे. अजमेर दरगाह में बम रखने के मामले में दोषी भावेश पटेल हैं. देवेंद्र गुप्ता पर आरोप साबित हुआ है कि उसने अजमेर दरगाह में ब्लास्ट करने के लिए षड्यंत्र रचा और ब्लास्ट करवाना सुनिश्चित किया. असीमानंद पर हमले की योजना बनाने का आरोप था. 11 अक्टूबर 2007 को हुए इस ब्लास्ट में तीन लोगों की मौत हो गई थी और 15 लोग घायल हुए थे.
जेल जाते हुए भावेश पटेल ने बयान दिया कि 'हम निर्दोष थे, निर्दोष हैं. हम फैसले का अनादर नहीं करते हैं लेकिन हम विवशता के तहत हाईकोर्ट में जाएंगे."
बचाव पक्ष के वकील जगदीश एस राणा ने बताया था कि अदालत ने स्वामी असीमानंद समेत सात लोगों को सन्देह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है. दोषी पाए गए अभियुक्तों में से सुनील जोशी की मृत्यु हो चुकी है.
उन्होंने बताया था कि अदालत ने स्वामी असीमानंद, हर्षद सोलंकी, मुकेश वासाणी, लोकेश शर्मा, मेहुल कुमार, भरत भाई को सन्देह का लाभ देते हुए बरी कर दिया. उन्होंने बताया था कि न्यायालय ने देवेन्द्र गुप्ता, भावेश पटेल और सुनील जोशी को भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी, 195 और धारा 295 के अलावा विस्फोटक सामग्री कानून की धारा 3(4) और गैर कानूनी गतिविधियों का दोषी पाया.
इस मामले में नेशनल इनवेस्टिगेटिंग एजेंसी (एनआईए) की भूमिका को लेकर कई सवाल उठे थे. कुल 149 गवाह थे जिनमें से 26 बयान से मुकर गए. एनआईए के वकील अश्विनी शर्मा का कहना है कि "जो गवाह मुकरे थे उनमें रणधीर सिंह जो कि अब झारखंड में मंत्री हैं भी शामिल थे. एनआईए चाहती तो उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती थी.'
असीमानंद कई अन्य बम ब्लास्ट के मामले में भी आरोपी हैं जिसमें हैदराबाद की मक्का मस्जिद में 2007 में ब्लास्ट और उसी वर्ष समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट शामिल है जिसमें लगभग 70 लोगों की मौत हो गई थी. समझौता एक्सप्रेस भारत-पाकिस्तान के बीच चलती है. उन्हें 2010 में जेल भेजा गया जहां उन्होंने आतंकी मामलों में कथित तौर पर अपनी भूमिका को स्वीकार किया था. बाद में उन्होंने कहा कि जांच अधिकारियों ने उन्हें प्रताड़ित करके झूठा बयान दिलाया था.
अजमेर दरगाह ब्लास्ट केस राजनीतिक रूप से बहुत संवेदनशील रहा है. इसमें एनआईए का तर्क था कि यह एक हिंदू आतंकवादी संगठन का कार्य था जो सांप्रदायिक सद्भाव को नुकसान पहुंचाना चाहता था. एनआईए का यह भी तर्क था कि सिर्फ अजमेर दरगाह ब्लास्ट ही नहीं हैदराबाद की मक्का मस्जिद, मालेगांव और समझौता एक्सप्रेस में जो ब्लास्ट हुए थे, वे सारे हिंदू कट्टरपंथियों ने कराए थे. जांच में यह भी सामने आया कि जो सिम कार्ड अजमेर दरगाह ब्लास्ट करवाने में इस्तेमाल किए गए थे, वही सिम कार्ड मक्का मस्जिद ब्लास्ट में भी इस्तेमाल हुए थे. अजमेर दरगाह और मक्का मस्जिद में हुए विस्फोटों में कई समानताएं थीं.
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