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This Article is From Aug 09, 2015

जेल की सलाखों ने कैद किया और उसने अपनी मेहनत से 'गोल्ड मेडल' के पंख लगा लिए

जेल की सलाखों ने कैद किया और उसने अपनी मेहनत से 'गोल्ड मेडल' के पंख लगा लिए
वाराणसी: एक ऐसा शख्‍स जो गैर इरादतन हत्या के केस में सजा काट रहा है, लेकिन अपने फौलादी इरादे से जेल की सलाखों के पीछे रहकर भी उसने गोल्ड मेडल हासिल किया। ये गोल्ड मेडल इग्नू के टूरिज्म स्टडी में सबसे ज्यादा नंबर से पास होने पर मिला है। और ये शख़्स अजीत है जिसके हौसले को दस साल की सजा का दर्द भी नहीं रोक पाया। अब इस सफलता के बाद वो पढ़ाई के क्षेत्र में बड़ी उड़ान भरना चाहता है। और सज़ा से छूटने के बाद वो समाज के लिए जीना चाहता है।

शनिवार को बीएचयू के उडुप्पा हॉल में पुलिस से घिरा एक शख्स जो गैरइरादतन ह्त्या के जुर्म में दस साल की सजा काट रहा अभियुक्त है। वो जेल की सलाखों से निकलकर इस हॉल में हो रहे इग्नू के दीक्षान्त समारोह में आया है। एक कैदी के दीक्षान्त समारोह में आने पर वहां बैठे सभी लोग चौंक उठे। पर जब ये पता चला कि ये कैदी कोई आम कैदी नहीं बल्कि गोल्ड मेडलिस्ट है और इसी दीक्षान्त समारोह में इसे गोल्ड मेडल से नवाजा जाएगा, हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।




टूरिज्म स्टडी में 75 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले अजीत के गले में गोल्ड मेडल उसके फौलादी इरादों की जीती जागती मिसाल है। अजीत वाराणसी सेन्ट्रल जेल का वह कैदी है जो आईपीसी कि धारा 304 में गैर इरादतन हत्या के आरोप में 10 साल कि सजा काट रहा है। अजीत को जब फरवरी 2010 में सजा हुई तब यह बीएससी प्रथम वर्ष का छात्र था। सजा पाने के बाद इसे लगा कि अब सब कुछ बिखर जाएगा। लेकिन अजीत ने हिम्मत दिखाई और जेल में पढ़ाई शुरू की। उसने इस गोल्ड मेडल से पहले कई और डिप्लोमा सर्टिफिकेट कोर्स किए, जिनमें एचआईबी से डिप्लोमा, मानवाधिकार में डिप्लोमा शामिल हैं। इस पढ़ाई से वो जेल में तो लोगों की निगाह में अव्वल था पर जब डिप्लोमा इन टूरिज्म स्टडी में उसे गोल्ड मेडल मिला तो उसकी लगन ने उसे दुनिया के सामने लाकर खड़ा दिया।

अजीत जिस आरोप की सजा भोग रहा है, उसकी मानें तो उसने किया ही नहीं। जिस शख्स की गैर इरादतन ह्त्या की सजा काट रहा है उससे उसके परिवार की पुश्‍तैनी रंजिश थी। उस व्यक्ति की गांव में ही शराब पीकर गिरने से मौत हो गई तो परिवार वालों ने उसे नामज़द कर फंसा दिया। मामला अदालत में चला, गवाह न मिल पाने की वजह से वह निचली अदालत में गुनहगार साबित हो गया। उस वक़्त उसके परिवार पर ये सजा कहर बनकर टूटी। मां बाप के आंसू थामे नहीं थम रहे थे। और आज जब बेटे ने जेल से ये उपलब्धि हासिल की तो भी आंख के आंसू रुक नहीं पा रहे हैं। पर दोनों आंसूओं में दर्द और ख़ुशी का अंतर है।
जेल सिर्फ सजा के लिए नहीं बल्कि कैदी के आचरण के सुधार के लिए भी है। सलाखों के पीछे क़ैद अजीत ने अपने मज़बूत इरादे से इसे सही साबित किया। ऐसे में आप कह सकते हैं कि अजित जब जेल गए तो इनके सर पर इल्जाम था और जब बहार आएंगे तो गले में गोल्ड मेडल होगा। जाहिर है ये एक ऐसी मिसाल है जो जेल में बंद हज़ारों कैदियों के लिए नई राहें खोल सकता है।

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