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AIIMS ने तैयार किया ब्रेन का 'गूगल मैप', मेडिकल छात्रों को सर्जरी सिखाने में मददगार

एम्स के न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉक्टर विवेक टंडन ने NDTV को बताया कि, कोविड के दौर में छात्रों को सर्जरी करने का मौका नहीं मिल रहा था, तो हमने इन सिमुलेटर्स बना लिए.

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दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने छात्रों को सर्जरी सिखाने का नया तरीका ईजाद किया है.

नई दिल्ली:

यदि आपको एक जगह से दूसरी जगह जाना होता है तो उसके लिए गूगल मैप का प्रयोग करते हैं.  लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि यह गूगल मैप आपके दिमाग का भी बन सकता है. यदि नहीं तो बिल्कुल सोचना शुरू कर दीजिए. नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के न्यूरो सर्जरी के डॉक्टरों ने ब्रेन के सिमुलेटर तैयार किए हैं. इससे उन छात्रों को सीखने सिखाने में आसानी मिल रही है जिनकी ट्रेनिंग एम्स में होती है. 

ब्रेन की सर्जरी में दक्षता हासिल करने के लिए तरह-तरह के सिमुलेटर काफी कम कीमत पर तैयार किए गए हैं. पुराने वक्त में बस सर्जरी के दौरान ही सिखाने का विकल्प होता था और वह भी दूर से, पर अब इन सिमुलेटर के जरिए व्यवहारिक तौर पर छात्रों को सिखाने में मदद मिल रही है. इस बारे में एम्स के न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉक्टर विवेक टंडन और डॉ शास्वत से NDTV ने बातचीत की. 

ब्रेन सर्जरी के बारे में सिखाने के लिए नया तरीका कितना फायदेमंद हो सकता है? इस सवाल पर डॉ विवेक टंडन ने कहा कि, ''पहले स्टूडेंट को ट्रैंड करने का एक ही तरीका होता था कि वे अपने टीचर्स के साथ सर्जरी में खड़े हों और सीखें. जब वे सीख जाते थे तो उनको छोटी सर्जरी से लेकर धीरे-धीरे बड़ी सर्जरी करने का मौका मिलता था. लेकिन इस प्रोसेस में बहुत लंबा समय लगता है. हमने जो सिमुलेटर्स बनाए हैं, इनके द्वारा बिना पेशेंट के ऊपर गए हुए, प्रेक्टिस करके सीख सकते हैं. एक ही सर्जरी को बार-बार करने की कोशिश कर सकते हैं. बार-बार करते हैं तो मेमोरी डेवलप होती है, प्रोफेशेंसी डेवलप होती है. इसके साथ में कॉन्फिडेंस बढ़ता है.'' 

उन्होंने कहा कि, ''आप किताब पढ़कर जितना सीखते हैं, उससे कहीं ज्यादा यह सिमुलेटर अपॉर्चुनिटी देते हैं. जब आप सर्जरी करने के लिए जाते हैं और देखते हैं कि हां, वैसे ही तरीके सर्जरी की जा रही है, तो आप में कॉन्फिडेंस आता है, जल्दी सर्जरी कर सकते हैं.'' 

सिमुलेटर की जरूरत कब महसूस हुई और कब इसे ईजाद किया गया? इस सवाल के जवाब में डॉ टंडन ने कहा कि, ''कोविड के समय हम लोगों ने स्वीकार किया कि न्यूरो सर्जिकल प्रोसीजर एकदम से बंद हो गए, या बहुत कम हो गए. हमारे डिपार्टमेंट में हर साल करीब 50 स्टूडेंट आते हैं. हमें महसूस हुआ कि इन स्टूडेंट्स को सर्जरी करने का मौका नहीं मिल रहा. तो हमने इन सिमुलेटर्स को बनाया. डॉक्टर्स और स्टूडेंट्स ने मिलकर यह बनाया. पहले उस पर काम करके खुद सीका, उसमें जो त्रुटियां थीं, उनको हटाया. इसके बाद छात्रों को दिया, एक्सपेरिमेंट करने के लिए.'' 

उन्होंने बताया कि इसके बारे में दुनिया भर में न्यूरो सर्जरी के जर्नल्स में छपा है. उन्होंने बताया कि पांच-छह सिमुलेटर बनाए हैं.

डॉ शास्वत ने बताया कि, ''अलग-अलग प्रोसीजर के लिए अलग-अलग सिमुलेटर होता है. यह मॉडल्स होते हैं जिन पर आप अलग-अलग प्रोसीजर को प्रेक्टिस कर सकते हैं. बाद में लाइव सर्जरी में ज्यादा कुछ सीख सकते हैं.'' डॉ टंडन ने बताया कि, ''प्रेक्टिस के दौरान टीचर भी बता सकता है कि यह ठीक नहीं कर रहे हो, या इसे ऐसे करना है...'' 

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