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वसीयत होते ही बेटा बना 'होशियार', अब बुजुर्ग की फ्लैट वापसी की गुहार, जानिए क्या अधिकार

माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण (संशोधन) विधेयक, 2019 में नटवरलाल जैसे बुजुर्गों की सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के लिए कई प्रावधान दिये गए हैं. लेकिन क्‍या मौजूदा कानून के हिसाब से नटवरलाल को क्‍या अपना घर वापस मिल पाएगा, जो उन्‍होंने अपने बेटे को गिफ्ट डीड में दिया है?

वसीयत होते ही बेटा बना 'होशियार', अब बुजुर्ग की फ्लैट वापसी की गुहार, जानिए क्या अधिकार
घर नाम होते ही बदला बेटा का व्‍यवहार...
नई दिल्‍ली:

85 साल के नटवरलाल फिचड़िया इन दिनों अदालत के चक्‍कर काट रहे हैं. अहमदाबाद के नटवरलाल उस घर को वापस लेना चाहते हैं, जो उन्‍होंने अपने बेटे को गिफ्त कर दिया था. दरअसल, घर मिलने के कुछ दिनों बाद ही नटवरलाल के बच्‍चों का व्‍यवहार बिल्‍कुल बदल गया. नटवरलाल की बहू और बेटा उनके साथ बेहद बुरा व्‍यवहार करते हैं, जिससे उनका दिल टूट गया है. हर माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्‍चों को दुनिया की हर सुख-सुविधा और खुशी मिले. इसके लिए वे दिन-रात एक कर देते हैं... जी तोड़ मेहनत करते हैं और अपने बच्‍चों को कामयाब बनाते हैं. लेकिन जब ये माता-पिता बूढ़े हो जाते हैं और उन्‍हें सहारे की जरूरत होती है, तो कुछ बच्‍चे इनके साथ नहीं खड़े होते. नटवरलाल के साथ भी कुछ यही हुआ है, उम्र के आखिरी पड़ाव पर उन्‍हें अपने बच्‍चों के सहारे की जरूरत है, लेकिन उनके साथ कोई नहीं खड़ा है, इसलिए उन्‍हें अदालत के कटघरे में जाकर खड़ा होना पड़ा है.  

जीते जी दिया घर... और बदल गया बेटा

नटवरलाल ने गुजरात हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, ताकि उस डीड को रद्द किया जा सके, जिसके जरिए उन्‍होंने अपना घर अपने एक बेटे को उपहार में दिया था. नटवरलाल का कहना है कि गिफ्टउपहार डीड बनाने के बाद बेटे और बहू ने उसके साथ बुरा व्यवहार करना शुरू कर दिया. नटवरलाल राज्य कृषि विभाग के सेवानिवृत्त कर्मचारी है और अपने राजकोट के घर के एक कमरे से प्राकृतिक चिकित्सा सेवाएं प्रदान करता है. इस घर को नटवरलाल ने कोविड के दौरान अपने बेटे को उपहार में दिया था. नटवरलाल कहते हैं कि ये घर बेटे को उपहार में देना उनकी सबसे बड़ी गलती थी, जिसके लिए अब वह बेहद पछता रहे हैं. 

चार बच्‍चे लेकिन सहारा देने वाला एक भी नहीं

नटवरलाल के चार बच्चे हैं - दो बेटे और दो बेटियां. दोनों बेटे अलग-अलग फ्लैटों में रहते हैं और बेटियों की शादी हो चुकी है. याचिकाकर्ता नटवरलाल घर के एक कमरे में रहते हैं, जहां से वह अपना प्राकृतिक चिकित्सा क्लिनिक चलाते हैं. चूंकि 1991 में खरीदा गया घर उनके और उनकी पत्नी के संयुक्त स्वामित्व में था, इसलिए उन्होंने अगस्त 2021 में घर में अपना 50% हिस्सा अपने बेटे को उपहार में दे दिया. लगभग एक महीने पहले, उनके शेष तीन बच्चों ने एक लेटर साइन कर दिया, जिससे उनकी मृत मां का 50% हिस्सा उनके भाई को हस्तांतरित कर दिया गया. 

बेटा अब पिता को करना चाहता है बेदखल!

बेटे के घर नाम होने के कुछ दिनों बाद ही पिता के प्रति उनका व्‍यवहार बिल्‍कुल बदल गया. बेटे-बहू के व्‍यवहार से आहत होकर नटवरलाल ने डिप्टी कलेक्टर और कलेक्टर दोनों के पास शिकायत दर्ज कराई, जिसमें माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम के तहत गिफ्ट डीड को रद्द करने की मांग की गई. उन्होंने अपने बेटे और बहू द्वारा दुर्व्यवहार और संपत्ति से बेदखल करने के प्रयासों का हवाला दिया. हालांकि अधिकारियों ने गिफ्ट डीड को रद्द करने का कोई आदेश पारित नहीं किया, उन्होंने उनके दोनों बेटों में से प्रत्येक को मासिक रखरखाव के रूप में 2,000 रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया. बेटे और बहू ने अधिकारियों को आश्वासन दिया कि वे पिता का पूरा ख्याल रखेंगे. लेकिन नटवरलाल इस फैसले से खुश नहीं थे, इसलिए उन्‍होंने वकील प्रतीक जसानी के माध्यम से हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और याचिका में कहा कि उन्होंने अपने बेटे को यह उम्मीद और विश्वास के साथ अपना घर उपहार में दिया था कि बुढ़ापे में उनकी देखभाल की जाएगी. हालांकि, उन्होंने आरोप लगाया कि उनका बेटा न केवल उनके साथ बुरा व्यवहार करता है, बल्कि उन्हें बेदखल करने का भी पूरा प्रयास करता है. शुरुआती सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति अनिरुद्ध माई ने अधिकारियों और नटवरलाल के बच्चों को नोटिस जारी किया और 11 अप्रैल तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है.

क्‍या कहता है आने वाला नया सीनियर सिटिजन एक्‍ट (Senior Citizen Act)

माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण (संशोधन) विधेयक, 2019, भारत में वरिष्ठ नागरिकों को बेहतर सुरक्षा और कल्याण प्रदान करने के लिए मौजूदा माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 में संशोधन करना चाहता है.

  • माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण (संशोधन) विधेयक, 2019 में परिजनों की ओर से बुजुर्गों और माता-पिता को छोड़ने और उनके साथ मारपीट से बचाव का प्रावधान किया गया है. 
  • नए एक्‍ट में देशभर के हर जिलों में बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए स्पेशल पुलिस सेल बनाने और हर थाने में एक एएसआई  रैंक के नोडल अधिकारी की नियुक्ति करने का प्रावधान है. इसके अमल की जिम्मेदारी राज्यों की होगी.
  • बुर्जुर्गों के लिए प्रस्तावित बिल में अकेले रहने वाले बुजुर्गों की सूची तैयार करने की बात कही गई है. हर थाने में अकेले रहने वाले बुजुर्गों की लिस्ट तैयार होगी.
  • आज के समय में घर में अकेले रहने वाले बुजुर्गों की संपत्ति हड़पने के मामले बढ़े हैं. ऐसे में थाने के स्तर पर सुरक्षा तंत्र तैयार होने से बुजुर्गों को फायदा होगा.
  • बुजुर्गों की मदद के लिए 24 घंटे की हेल्पलाइन तैयार करने का प्रावधान नए बिल के किया गया है.
  • बिल में बच्चों की हैसियत के हिसाब से भरण-पोषण की राशि तय करने का प्रावधान किया गया है. अभी यह प्रस्‍तावित लिमिट 10,000 रुपये है.
  • अबर किसी बुजुर्ग की कोई शिकायत है, तो उसे 90 दिन में दूर करने का प्रावधान नए बिल में किया गया है. 

क्‍या मौजूदा कानून के तहत नटवरलाल को मिलेगा इंसाफ?

माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण (संशोधन) विधेयक, 2019 में नटवरलाल जैसे बुजुर्गों की सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के लिए कई प्रावधान दिये गए हैं. लेकिन क्‍या मौजूदा कानून के हिसाब से नटवरलाल को क्‍या अपना घर वापस मिल पाएगा, जो उन्‍होंने अपने बेटे को गिफ्ट डीड में दिया है? इसका जवाब है, हां... नटवरलाल को अपना घर वापस मिल सकता है. इस साल जनवरी 2025 में सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसा ही मामला सामने आया था. इस मामले में आदेश पारित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि माता-पिता तथा वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत गठित न्यायाधिकरण संपत्ति के हस्तांतरण व बेदखली का आदेश दे सकते हैं. 

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सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के 2022 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें न्यायाधिकरण के फैसले को बरकरार रखने वाले सिंगल बैंच के आदेश को खारिज किया गया था. जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ मां द्वारा दायर अपील पर फैसला किया था, जिसमें 2019 में अपने बेटे के पक्ष में निष्पादित गिफ्ट डीड रद्द करने की मांग की गई थी. मां ने शिकायत की कि बेटा उसकी देखभाल नहीं कर रहा है. इसलिए अधिनियम की धारा 23 के अनुसार गिफ्ट डीड रद्द करने योग्य है, क्योंकि हस्तांतरण में भरण-पोषण प्रदान करने की शर्त रखी गई. हालांकि न्यायाधिकरण ने गिफ्ट डीड खारिज कर दी और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश ने इसकी पुष्टि की, लेकिन हाईकोर्ट की खंडपीठ ने बेटे की अपील में न्यायाधिकरण के फैसले को उलट दिया. सुप्रीम कोर्ट ने खंडपीठ के इस तर्क को अस्वीकार किया कि धारा 23 स्वतंत्र प्रावधान है। न्यायाधिकरण के पास कब्ज़ा हस्तांतरित करने का कोई अधिकार नहीं है.

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