दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) में एक 97 वर्षीय व्यक्ति ने अर्जी देकर बुजुर्गों की देखभाल के लिए बने कानून के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी है. यह प्रावधान देखभाल के बदले अपनी संपत्ति बच्चों/अन्य को देने वाले बुजुर्गों की उचित देखभाल नहीं होने पर संपत्ति हस्तांतरण को अवैध करार देने से जुड़े हैं. बुजुर्ग द्वारा दी गई याचिका में ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक देखभाल और कल्याण कानून, 2007' के प्रावधानों को चुनौती दी गई है. इस कानून के तहत एक वरिष्ठ नागरिक ने अपनी मौलिक जरूरतों और सामान्य देखभाल की शर्त पर अपनी संपत्ति किसी और को हस्तांतरित की थी.
लेकिन, इस कानून का लाभ उन बुजुर्गों को नहीं मिल रहा है जिन्होंने 2007 में कानून लागू होने से पहले अपनी संपत्ति का हस्तांतरण किया है. कानून के प्रावधान के अनुसार, अगर संपत्ति पाने वाला व्यक्ति बुजुर्ग की उचित देखभाल करने में असफल रहता है तो संपत्ति के हस्तांतरण को धोखाधड़ी या दबाव के तहत लिया गया माना जाए और अधिकरण इस हस्तांतरण को रद्द भी कर सकता है.
बुजुर्ग याचिकाकर्ता का कहना है कि कानून के तहत संपत्ति का हस्तांतरण करने वालों को उचित देखभाल नहीं मिलने की स्थिति में न्यायिक हक प्राप्त है, लेकिन कानून लागू होने से पहले संपत्ति का हस्तांतरण कर चुके बुजुर्गों को यह लाभ नहीं मिल रहा है.
मुख्य न्यायाधीश सतीश चन्द्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रह्मण्यम प्रसाद ने नोटिस जारी किया और केन्द्र सरकार से इस पर जवाब मांगा है. अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 13 दिसंबर की तारीख तय की है.
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