अयोध्या जैसे अत्यधिक दबाव वाले मामलों में मैराथन सुनवाई करने वाली पीठ में शामिल न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे का कहना है कि इन मामलों की सुनवाई को सहजता से लेते हैं और उनको इन सब चीजों से ज्यादा तनाव नहीं होता है. जब अदालत का माहौल गर्म होता है, दोनों पक्षों के वकीलों की ओर से तर्कों की बौछार हो रही होती है, तो ऐसे में स्वयं को तनाव-मुक्त रखने को लेकर बोबडे ने कहा कि सुनवाई के बाद जब मैं सीट से उठता हूं, तो मैं उस पल को भूल जाता हूं, जिससे मुझे तनाव नहीं होता.
शनिवार को अयोध्या भूमि विवाद पर अपना फैसला सुनाने वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति बोबडे को मामले की सुनवाई पूरा होने के दो दिन बाद और फैसले से सिर्फ 10 दिन पहले भारत का अगला प्रधान न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की गई थी. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 29 अक्टूबर को सीजेआई के रूप में उनकी नियुक्ति के वारंट पर हस्ताक्षर किए.
इस महीने की शुरुआत में ‘पीटीआई' को दिए एक साक्षात्कार में तनाव कम करने से संबंधित पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘मैं उस क्षण को भूल जाता हूं जब मैं सीट से उठता हूं. मैं बस उसे भूल जाता हूं.''
NDTV से बातचीत में बोले देश के अगले CJI एसए बोबडे- अयोध्या पर फैसला मेरे और सबके लिए महत्वपूर्ण
न्यायमूर्ति बोबडे 18 नवंबर को भारत के अगले प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे. महाराष्ट्र के एक वकील परिवार से आने वाले न्यायाधीश ने आधार प्रकरण सहित कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की है. वह देश के 47वें सीजेआई होंगे. न्यायमूर्ति बोबडे अगस्त 2017 में निजता को मौलिक अधिकार घोषित करने वाली संविधान पीठ के भी सदस्य थे. निजता का सवाल आधार योजना की सुनवाई के दौरान उठा था और फिर इसे नौ सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिया गया था.
शीर्ष अदालत के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश 63 वर्षीय न्यायमूर्ति बोबडे वर्तमान प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई का स्थान लेंगे जो 17 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं. न्यायमूर्ति बोबडे 23 अप्रैल, 2021 तक देश के प्रधान न्यायाधीश रहेंगे. कानून मंत्रालय ने न्यायमूर्ति बोबडे की देश के नये प्रधान न्यायाधीश पद पर नियुक्ति संबंधी अधिसूचना जारी की थी. न्यायमूर्ति बोबडे करीब 17 महीने इस पद पर रहेंगे.
जस्टिस शरद अरविंद बोबडे होंगे सुप्रीम कोर्ट के 47वें प्रधान न्यायाधीश, 18 नवंबर को लेंगे शपथ
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने स्थापित परपंरा के अनुरूप अपने उत्तराधिकारी के रूप में शीर्ष अदालत के वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति बोबडे की नियुक्ति की सिफारिश केन्द्र से की थी. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच करने वाली तीन सदस्यीय आंतरिक समिति की अध्यक्षता भी न्यायमूर्ति बोबडे ने ही की थी. इस समिति में दो महिला न्यायाधीश भी थीं. शीर्ष अदालत की एक पूर्व कर्मचारी ने यह आरोप लगाया था.
न्यायमूर्ति बोबडे उस तीन सदस्यीय पीठ के भी सदस्य थे जिसने 2015 में स्पष्ट किया था कि आधार कार्ड नहीं रखने वाले किसी भी भारतीय नागरिक को बुनियादी सेवाओं और सरकारी सुविधाओं से वंचित नहीं किया जा सकता . न्यायमूर्ति बोबडे की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने हाल ही में क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड के कामकाज का संचालन करने वाली प्रशासकों की समिति को अपना काम खत्म करने का निर्देश दिया ताकि बीसीसीआई के संचालन के लिए नए सदस्यों का निर्वाचन हो सके. शीर्ष अदालत ने ही प्रशासकों की इस समिति की नियुक्ति की थी.
CJI रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप- सुप्रीम कोर्ट के इन हाउस पैनल ने खारिज की शिकायत
नागपुर में 24 अप्रैल, 1956 को जन्मे न्यायमूर्ति बोबडे ने नागपुर विश्वविद्यालय से अपनी स्नातक और फिर कानून की शिक्षा पूरी की. न्यायमूर्ति बोबडे ने 1978 में महाराष्ट्र बार काउंसिल में पंजीकरण कराने के बाद बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में वकालत शुरू की. वह 1998 में वरिष्ठ अधिवक्ता बनाए गए थे. न्यायमूर्ति बोबडे की 29 मार्च 2000 को बंबई उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश पद पर नियुक्ति हुई. वह 16 अक्टूबर 2012 को मप्र उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने और 12 अप्रैल 2013 को पदोन्नति देकर उन्हें उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बनाया गया.
VIDEO : देश के अगले चीफ जस्टिस एसए बोबडे से खास बातचीत
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं