ऑनलाइन दुर्व्यवहार के खिलाफ इस अभियान को 75 संगठनों का समर्थन है
तिरुवनंतपुरम:
आम विचारधारा से हटकर बात करना अक्सर मुसीबत बन जाता है और सोशल मीडिया पर इसके काफी उदाहरण देखने को मिलते रहते हैं। इस पर चर्चा होती आई है कि फेसबुक जैसे मंच पर बहुसंख्यकों से मेल न खाने वाले विचारों को भी बराबर जगह मिलनी चाहिए और इसी मकसद के लिए केरल की 8 महिलाओं ने हाथ मिलाया है। 'For a Better FB' नाम के इस अभियान को 75 अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन संगठनों से समर्थन मिला है।
यह भी पढ़ें - फेसबुक पर झूठ बोलते हैं हम..
41 साल की प्रीथा अपने बच्चे का अकेले ही पालन पोषण कर रही हैं। फेसबुक पर अपने कटु अनुभव के बारे मे प्रीथा कहती हैं 'मुझे गालियां दी गई थीं और फेसबुक ने मेरे ही आईडी को तीन बार ब्लॉक कर दिया। जब मैंने मल्यालम भाषा में फेसबुक से इस अभद्र भाषा के बारे में शिकायत की तो जवाब था कि मुझे पर की गई टिप्पणियां, कंपनी के तय किए गए नियमों को पार नहीं करती।'
28 साल की जसीला सीवी को भी अभद्र भाषा का सामना करना पड़ा जब उन्होंने ऐसे आदमी का समर्थन किया जिसे सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान नहीं बजने पर गिरफ्तार कर लिया गया था। जसीला बताती हैं 'मुझे गालियां दी गईं, मेरे प्रोफाइल की शिकायत की गई और मुझे झटका लगा जब फेसबुक ने मुझे मैसेज भेजा कि मैं फर्जी नाम इस्तेमाल कर रही हूं जबकि यह मेरा असल नाम ही है।'
'भाषा के एक्सपर्ट को रखिए'
जसीला और प्रीथा समेत 8 औरतों ने फेसबुक से मांग की है कि वह अपनी Real name policy को हटाएं और प्रमाण के लिए सरकारी पहचान पर ज़ोर दें। यही नहीं इन्होंने यह भी मांग की है कि फेसबुक कुछ कर्मचारियों को घृणा फैलाने वाले पेज (hate pages)का विश्लेषण करने के लिए रखे और गैर अंग्रेज़ी संस्कृति की पेचीदिगियों को समझने के लिए भाषा के जानकारों की भी मदद ले। इस अभियान में साथ देने वाली संस्थाओं में अमेरिकन सिविल लिबर्टीज़ यूनियन, डिजिटल राइट्स फाउंडेशन और ग्लोबल वोइसेज़ एडवोकेसी है।
लेकिन दुनिया भर में कई धार्मिक संगठनों के साथ करीबी से काम करने वाला फेसबुक अपनी असल नाम बताने की नीति का बचाव करते ही दिखा है। कंपनी का मानना है कि इस नीति के बलबूते ही वह लोगों को लगातार अनियमितताएं करने से रोक पाता है। फेसबुक के प्रवक्ता ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा 'हमारे बैठाए मानदंडों की अवहेलना को हम बहुत गंभीरता से लेते हैं और इसलिए हम उस कंटेंट, प्रोफाइल और पेज को हटा देते हैं जिसकी शिकायत हमसे की जाती है।'
हालांकि कंपनी ने माना कि संदर्भ की कमी और भारी मात्रा में आने वाली रिपोर्ट की वजह से कई बार उनके फैसले गलत भी हो जाता हैं। साथ ही यह भी सच है कि इन रिपोर्टों का विश्लेषण करने के लिए फेसबुक के पास स्थानीय भाषा के एक्सपर्ट होते हैं जो उपलब्ध जानकारी के आधार पर उचित फैसला लेते हैं।
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41 साल की प्रीथा अपने बच्चे का अकेले ही पालन पोषण कर रही हैं। फेसबुक पर अपने कटु अनुभव के बारे मे प्रीथा कहती हैं 'मुझे गालियां दी गई थीं और फेसबुक ने मेरे ही आईडी को तीन बार ब्लॉक कर दिया। जब मैंने मल्यालम भाषा में फेसबुक से इस अभद्र भाषा के बारे में शिकायत की तो जवाब था कि मुझे पर की गई टिप्पणियां, कंपनी के तय किए गए नियमों को पार नहीं करती।'
28 साल की जसीला सीवी को भी अभद्र भाषा का सामना करना पड़ा जब उन्होंने ऐसे आदमी का समर्थन किया जिसे सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान नहीं बजने पर गिरफ्तार कर लिया गया था। जसीला बताती हैं 'मुझे गालियां दी गईं, मेरे प्रोफाइल की शिकायत की गई और मुझे झटका लगा जब फेसबुक ने मुझे मैसेज भेजा कि मैं फर्जी नाम इस्तेमाल कर रही हूं जबकि यह मेरा असल नाम ही है।'
'भाषा के एक्सपर्ट को रखिए'
जसीला और प्रीथा समेत 8 औरतों ने फेसबुक से मांग की है कि वह अपनी Real name policy को हटाएं और प्रमाण के लिए सरकारी पहचान पर ज़ोर दें। यही नहीं इन्होंने यह भी मांग की है कि फेसबुक कुछ कर्मचारियों को घृणा फैलाने वाले पेज (hate pages)का विश्लेषण करने के लिए रखे और गैर अंग्रेज़ी संस्कृति की पेचीदिगियों को समझने के लिए भाषा के जानकारों की भी मदद ले। इस अभियान में साथ देने वाली संस्थाओं में अमेरिकन सिविल लिबर्टीज़ यूनियन, डिजिटल राइट्स फाउंडेशन और ग्लोबल वोइसेज़ एडवोकेसी है।
लेकिन दुनिया भर में कई धार्मिक संगठनों के साथ करीबी से काम करने वाला फेसबुक अपनी असल नाम बताने की नीति का बचाव करते ही दिखा है। कंपनी का मानना है कि इस नीति के बलबूते ही वह लोगों को लगातार अनियमितताएं करने से रोक पाता है। फेसबुक के प्रवक्ता ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा 'हमारे बैठाए मानदंडों की अवहेलना को हम बहुत गंभीरता से लेते हैं और इसलिए हम उस कंटेंट, प्रोफाइल और पेज को हटा देते हैं जिसकी शिकायत हमसे की जाती है।'
हालांकि कंपनी ने माना कि संदर्भ की कमी और भारी मात्रा में आने वाली रिपोर्ट की वजह से कई बार उनके फैसले गलत भी हो जाता हैं। साथ ही यह भी सच है कि इन रिपोर्टों का विश्लेषण करने के लिए फेसबुक के पास स्थानीय भाषा के एक्सपर्ट होते हैं जो उपलब्ध जानकारी के आधार पर उचित फैसला लेते हैं।
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