एक अमीर आदमी को शादी और तलाक दोनों ही महंगे पड़ते हैं. अमेरिका में एक आईटी कंसल्टेंसी सर्विस कंपनी चलाने वाले एक भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक को इस बात का एहसास तब हुआ, जब उन्हें नवंबर 2020 में अपनी पहली पत्नी को गुजारा भत्ता के रूप में 500 करोड़ रुपये देने पड़े. अब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अपनी दूसरी पत्नी को 12 करोड़ रुपये देने का आदेश दिया है. इस पत्नी के साथ उनकी शादी एक साल से भी कम समय तक चली. ये उद्योगपति शायद ही अब तीसरी शादी करने के बारे में सोचे.
इस शख्स की दूसरी शादी 31 जुलाई, 2021 को हुई, जो सिर्फ कुछ महीनों तक ही चली और टूट गई. दूसरी, पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि उसे भी उतना ही गुजारा भत्ता मिलना चाहिए, जितना पहली पत्नी को मिला था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में ऐसा निर्देश दिया, जो कई पतियों को सुकून देने वाला है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून के सख्त प्रावधान महिलाओं की भलाई के लिए हैं न कि उनके पतियों को ‘दंडित करने, धमकाने, उन पर हावी होने या उनसे जबरन वसूली करने' के लिए.
हिंदू विवाह एक पवित्र प्रथा, बिजनेस डील नहीं!
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति पंकज मिथल ने कहा कि हिंदू विवाह एक पवित्र प्रथा है, जो परिवार की नींव है, न कि कोई व्यावसायिक समझौता. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विशेष रूप से वैवाहिक विवादों से संबंधित अधिकांश शिकायतों में दुष्कर्म, आपराधिक धमकी और विवाहित महिला से क्रूरता करने सहित भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं को लगाने के लिए शीर्ष अदालत ने कई मौकों पर फटकार लगायी है. पीठ ने कहा, 'महिलाओं को इस बात को लेकर सावधान रहने की जरूरत है कि उनके हाथों में कानून के ये सख्त प्रावधान उनकी भलाई के लिए हैं, न कि उनके पतियों को दंडित करने, धमकाने, उन पर हावी होने या उनसे जबरन वसूली करने के साधन के रूप में हैं.'
पत्नी को 12 करोड़ रुपये देने का आदेश, पत्नी ने मांगे थे...
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी अलग-अलग रह रहे एक दंपति के विवाह को समाप्त करते हुए कहा कि यह रिश्ता पूरी तरह से टूट चुका है. पीठ ने कहा, 'आपराधिक कानून के प्रावधान महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तीकरण के लिए हैं लेकिन कभी-कभी कुछ महिलाएं इनका इस्तेमाल ऐसे उद्देश्यों के लिए करती हैं, जिनके लिए वे कभी नहीं होते.' इस मामले में पति को एक महीने के भीतर अलग रह रही पत्नी को उसके सभी दावों के पूर्ण और अंतिम निपटान के रूप में स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 12 करोड़ रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया गया था.
SC ने पुलिस पर भी उठाए सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि, उन मामलों पर टिप्पणी की, जहां पत्नी और उसके परिवार इन गंभीर अपराधों के लिए आपराधिक शिकायत को बातचीत के लिए एक मंच के रूप में और पति व उसके परिवार से अपनी मांगों को पूरा करने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि पुलिस कभी-कभी चुनिंदा मामलों में कार्रवाई करने में जल्दबाजी करती है और पति या यहां तक कि उसके रिश्तेदारों को गिरफ्तार कर लेती है, जिसमें वृद्ध और बिस्तर पर पड़े माता-पिता व दादा-दादी भी शामिल होते हैं. पीठ ने कहा कि वहीं अधीनस्थ न्यायालय भी प्राथमिकी में ‘अपराध की गंभीरता' के कारण आरोपी को जमानत देने से परहेज करते हैं.
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