कारगिल जंग (Kargil WAR) के 25 साल पूरे हो चुके हैं. ये वो जंग है, जब पाकिस्तान को तीसरी बार भारतीय सेना के हाथों बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा. पाकिस्तान ने 1999 में घुसपैठ की और उस टाइगर हिल पर जा बैठा, जो सामरिक तौर पर काफी मायने रखता था. लेकिन भारतीय जवानों की जांबाज़ी से पाकिस्तान को फिर मुंह की खानी पड़ी. कारगिल के युद्ध के दौरान भारतीय सेना के प्रमुख जनरल वेद प्रकाश मलिक थे. 'ऑपरेशन विजय' के समय उन्होंने सरहद और सैनिकों का जिम्मा संभाला था. जबकि उनकी पत्नी रंजना मलिक आर्मी वाइव्स एसोसिएशन की चीफ थीं. कारगिल जंग के 25 साल पूरे होने पर जनरल (रिटायर्ड) वेद प्रकाश मलिक ने NDTV से खास बात की.
जनरल (रिटायर्ड) वेद प्रकाश मलिक ने सीधे तौ पर कारगिल युद्ध को इंटेलिजेंस और सर्विलांस का फेल्योर करार दिया है. उन्होंने कहा, "अगर मौका मिलता, तो भारतीय सेना पाकिस्तान को और सबक सिखा सकती थी." पढ़ें जनरल (रिटायर्ड) वेद प्रकाश मलिक से बातचीत के खास अंश:-
फरवरी में वाजपेयी जी और नवाज शरीफ के बीच लाहौर शिखर सम्मेलन हुआ. मई में कारगिल में जंग शुरू हो गई? ये कितना चौंकाने वाला था?
इसमें कोई शक नहीं है कि ये काफी चौंकाने वाली बात थी. यह एक सरप्राइज था. मैं यह भी कह सकता हूं कि वाजपेयी जी काफी दुखी थे. उनको विश्वास नहीं हो रहा था कि लाहौर घोषणा पत्र के बाद पाकिस्तान ऐसा करेगा. मुझे यह भी याद आता है कि मई के आखिर में प्रधानमंत्री ने नवाज शरीफ से मिलने के लिए एक आदमी भेजा था. लेकिन नतीजा क्या निकला? जंग. उस वक्त हमारा सर्विलांस भी अच्छा नहीं था. कह सकते हैं कि हर लेवल पर एक बड़ा सरप्राइज था. पॉलिटिकल लेवल से लेकर मिलिट्री लेवल तक हम सरप्राइज हुए.
कैसे पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया और हमें भनक तक नहीं लगी?
पहली बात हमें वह इलाका समझना चाहिए. वह पहाड़ी इलाका है. ऊंचाई 14 से 19 हजार फीट तक जाती है. वहां बड़े-बड़े गैप हैं. ऐसे में आर्मी को हर जगह तैनात तो नहीं किया जा सकता. हमें शक था कि वह उन रास्तों पर पाकिस्तानी आ सकते हैं, लेकिन उन्होंने वह रास्ते नहीं चुने. पाकिस्तानियों ने घाटी और नाले के जरिए घुसपैठ की. घुसपैठ छोटी-छोटी टुकड़ियों में की गई.
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उस वक्त हमारे पोस्ट के बीच 9 किलोमीटर से लेकर 45 किलोमीटर तक गैप होते थे. हमारे पास कोई सर्विलांस इक्विपमेंट भी नहीं था. आजकल हमारे पास यूएवी हैं, सैटेलाइट इमेजेस की फेसिलिटी है. पहले तो ग्राउंड सेंसर या रडार जैसी चीज भी हमारे पास नहीं थी. इसलिए पाकिस्तानयों ने जहां खाली पहाड़ की चोटिया देखीं, वहीं कब्जा जमा लिया. आप कह सकते हैं कि यह इंटेलिजेंस और सर्विलांस का फेल्योर था. यह बात मैं इसलिए कहता हूं कि किसी भी इंटेलिजेंस एजेंसी को इसकी कोई भनक तक नहीं थी. वो आखिर तक यही बोलते रहे कि घुसपैठिये आ गए. कोई भी घुसपैठिये जिहादी नहीं थे, बल्कि पाकिस्तानी सैनिक थे. उन्होंने सादी वर्दी पहनी थी.
आपको कब लगा कि अब कारगिल जंग में जीत पक्की है? टर्निंग पॉइंट कब मानते हैं?
हमने ऑपरेशन 25- 26 मई के आसपास शुरू किया. पहली जीत हमें 13 या 14 जून के आसपास मिली. जब हमने तोलोलिंग की पहाड़ियों पर कब्ज़ा दोबारा हासिल कर लिया. यह हमारे रोड को बहुत ज्यादा डोमिनेट कर रही थी. काफी भीषण लड़ाई थी. जंग में हमने कई जवान खोए, अफसर शहीद हुए. जिस तरह से हमारे जवानों ने पहाड़ी पर कब्जा किया और पाकिस्तानियों को खदेड़ा. उस दिन से टर्निंग पॉइंट शुरू हुआ. हमें लगा कि अब हम यहां पाकिस्तानियों को नहीं रहने देंगे और विजय हासिल करके रहेंगे.
जंग की शुरुआत में हमारा बहुत नुकसान हुआ. उस समय आपके दिमाग में क्या-क्या ख्याल आ रहे थे?
कोई भी अफसर नहीं चाहता कि उसके जवान जंग में शहीद हो जाए. यह बहुत ही दुख की बात होती है. लेकिन हम ऐसी खबरों को छुपाते हैं, ताकि बाकी जवानों के मॉराल पर असर न पड़े.
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