संसद का बजट सत्र खत्म हो गया। यह इस सरकार का पहला सत्र था और इस सत्र की सबसे बड़ी खासियत रही कि पिछले 10 साल में प्रश्नकाल के दौरान कामकाज सबसे अच्छे ढंग से इस बार चला। लोकसभा में 24 फीसदी सवाल सरकार से पूछे गए, जो वर्ष 2004 के बाद सबसे अधिक है। इस बार लोकसभा में सबसे कम व्यवधान डाला गया, मगर यह सत्र इसलिए भी याद किया जाएगा, क्योंकि सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद बीमा बिल को पास नहीं कराया जा सका।
हालांकि, जजों की नियुक्ति से संबंधित बिल को सरकार पास कराने में सफल रही। सरकार को विपक्ष का एक संशोधन मानना पड़ा और अब 15 राज्यों की विधानसभा से पास होने के बाद यह कानून बन जाएगा। मगर बीमा बिल के लटकने का मलाल सरकार में सबको है। इस बिल में बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी करने का प्रावधान है।
सरकार चाहती थी कि बीमा बिल 15 अगस्त से पहले पास हो जाए ताकि प्रधानमंत्री इसका जिक्र लाल किले से अपने भाषण में कर सकें और जब सितंबर में वह अमेरिका के दौरे पर जाएं तो विदेशी निवेश लाने के लिए उनके पास कुछ ऐसा हो जिससे वह विदेशी कंपनियों को लुभा सकें। मगर विपक्ष की एकजुटता ने सरकार को घुटने टेकने लिए मजबूर कर दिया और अब यह बिल राज्यसभा की समिति को भेजा गया है। अब यह बिल संसद के शीतकालान सत्र में ही पास हो पाएगा।
दरअसल कांग्रेस, मोदी सरकार से उसी तरह का बदला ले रही है जैसा कि बीजेपी ने यूपीए के साथ किया था। साथ ही कांग्रेस की कोशिश है कि वैचारिक मामलों में विपक्षी पार्टियों के साथ एक बड़ा गठजोड़ बनाए। इसी सत्र में कांग्रेस ने घुमाफिरा कर ये भी कहा स्पीकर विपक्ष को पूरा मौका नहीं दे रही हैं।
कई लोगों का मानना है कि इसी विरोध को जताने के लिए राहुल गांधी साम्प्रदायिक हिंसा के खिलाफ बहस की मांग के दौरान वैल में भी कूदे। इसी सत्र में यह भी चर्चा शुरू हो गई थी कि सत्र को छोटा किया जाए क्योंकि सरकार के पास कोई कामकाज नहीं था।
हालांकि, सरकार यह जरूर कहेगी कि मॉनसून, महंगाई, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा के साथ साथ सांप्रदायिक हिंसा जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। सरकार के बहुमत का असर भी सदन में देखने को मिला।
लोकसभा में जहां सरकार को बहुमत है, अधिक कामकाज हुआ, जबकि राज्यसभा में केवल 15 फीसदी सवालों के जबाब प्रश्नकाल में दिए जा सके। ये सत्र इसलिए भी याद किया जाएगा कि कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल की मान्यता के लिए दबाब बनाती रही और सरकार बात स्पीकर पर टालती रही, जिसका बदला कांग्रेस ने राज्यसभा में दिखाया और स्पीकर पर भी आक्षेप लगाए।
राहुल गांधी ने बकायदा मीडिया से इस बारे में शिकायत की और अंत में सरकार ने लोकसभा में उपाध्यक्ष का पद विपक्ष या अपने किसी सहयोगी को देने के बजाए एआईडीएमके को दिया और थंबी दुरै उपाध्यक्ष बने। वजह साफ है इससे सरकार के पक्ष में राज्यसभा में 11 सांसदों के समर्थन का इजाफा हुआ जो एआईडीएमके से हैं। यानि राज्यसभा में बहुमत की टीस सरकार को सालती रही और उससे निकलने के लिए सरकार रणनीति बनाती रही।
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