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This Article is From Nov 09, 2014

पूर्व रेलमंत्री की हत्या के मामले में 39 साल बाद आएगा फैसला

नई दिल्ली:

अंग्रेजी की एक कहावत है, 'जस्टिस डिलेड, जस्टिस डिनाइड।' देश में न्याय में देरी के तो कई उदाहरण हैं, लेकिन देश के पूर्व रेलमंत्री की हत्या का मुकदमा 1975 से कोर्ट में चल रहा है। करीब 39 साल बाद सोमवार को दिल्ली की कोर्ट इसका फैसला सुना सकता है।

2 जनवरी 1975 को बिहार के समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर बम विस्फोट कर तत्कालीन रेलमंत्री एलएन मिश्रा की हत्या कर दी गई थी। इस मामले आनंद मार्ग संगठन के एडवोकेट रंजन द्विवेदी और चार लोगों को आरोपी बनाया गया। एक आरोपी की मौत हो चुकी है, जबकि संतोषानंद अवधूत, सुदेवानंद अवधूत और गोपालजी पर भी मामला चल रहा है।

दिल्ली की की कड़कड़डूमा कोर्ट में चल रहे इस मुकदमे में करीब 200 गवाह पेश किए गए। इनमें 161 गवाह सीबीआई की तरफ से, जबकि 40 गवाह बचाव पक्ष की और से पेश हुए। 12 सितंबर 2014 को कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर 10 नवंबर के लिए आदेश सुरक्षित रख लिया था।

खास बात ये है कि सीबीआई ने इस मामले की चार्जशीट 1 नवंबर 1977 को पटना कोर्ट में दाखिल की थी, लेकिन तत्कालीन अटॉर्नी जनरल की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने 1979 में मामले का ट्रायल दिल्ली ट्रांयफर कर दिया था।

वहीं मामले के आरोपियों ने ट्रायल को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी, जिसमें कहा गया था कि इस केस का ट्रायल 37 साल बाद भी पूरा नहीं हुआ। लेकिन 17 अगस्त 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने अर्जी को खारिज कर दिया।

गोपालजी को छोड़कर अन्य तीन आरोपियों को 1975 में देश के तत्कालीन मुख्य न्यायधीश जस्टिस एएन रे की हत्या के प्रयास में निचली अदालत से सजा सुनाई गई थी, लेकिन दिल्ली हाइकोर्ट ने रंजन द्विवेदी को बरी कर दिया था।

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