नई दिल्ली:
महाराष्ट्र में इस साल कुपोषण की वजह से बच्चों की मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, बच्चों की मौत से आपको कोई फर्क नहीं पड़ रहा. राज्य सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही, तो आप (वकील) भी सरकार से कोई निर्देश नहीं ले रहे.'
कुपोषण से 600 आदिवासी बच्चों की मौत से जुड़ी मीडिया रिपोर्ट्स पर संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील को कहा, 'आपको क्या लगता है कि हम यहां मजे लेने के लिए बैठे हैं. हमने मीडिया रिपोर्ट देखी हैं कि महाराष्ट्र में 500-600 बच्चों की कुपोषण से मौत हुई है. आपको लगता है कि बड़ी जनसंख्या वाले देश में कुछ लोगों के कुपोषण से मरने पर कोई फर्क नहीं पड़ता.'
दरअसल सुप्रीम कोर्ट सूखे को लेकर स्वराज अभियान की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर महाराष्ट्र सरकार के वकील का कहना था कि इस बारे में सरकार से कोई निर्देश नहीं मिला है.
याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट में बताया गया कि पिछले साल की तरह इस बार भी 21 राज्यों के 115 जिलों में हालात खराब हैं, लेकिन राज्यों ने इन्हें सूखा प्रभावित घोषित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया.
सुनवाई के दौरान इस मुद्दे पर केंद्र के अफसरों को भी तलब किया, जिन्होंने कोर्ट को बताया कि अगस्त में जब पहली सूचना मिली थी कि बारिश में 50 फीसदी कमी है, तब केंद्र से राज्यों को एडवायजरी भेजी गई. सितंबर में भी राज्यों को दूसरी एडवायजरी भेजी गई. सूखा घोषित करना राज्यों पर निर्भर है. हालांकि अनुमान है कि पिछले दस साल की तुलना में इस बार हालात सुधरे हैं और फसल भी अच्छी होगी.
इसके साथ ही उन्होंने कोर्ट को बताया, केंद्र ने सूखे के लिए मानकों में बदलाव किया है और राज्यों को तय करना है कि वह सूखा घोषित करें. केंद्र का मानना है कि राज्यों के पास कोई कारण नहीं है कि वे सूखा घोषित ना करें.
वहीं याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि राज्यों को अक्टूबर के आखिर तक सूखा घोषित करना चाहिए. सूचना यह भी है कि यूपी में भी कुपोषण से बच्चों की मौत हो रही है. दरअसल नए कानून के मुताबिक, राज्यों को नए नियम बनाने हैं, लेकिन 11 में से सिर्फ 5 राज्यों ने नोटिफिकेशन जारी किया है.
कुपोषण से 600 आदिवासी बच्चों की मौत से जुड़ी मीडिया रिपोर्ट्स पर संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील को कहा, 'आपको क्या लगता है कि हम यहां मजे लेने के लिए बैठे हैं. हमने मीडिया रिपोर्ट देखी हैं कि महाराष्ट्र में 500-600 बच्चों की कुपोषण से मौत हुई है. आपको लगता है कि बड़ी जनसंख्या वाले देश में कुछ लोगों के कुपोषण से मरने पर कोई फर्क नहीं पड़ता.'
दरअसल सुप्रीम कोर्ट सूखे को लेकर स्वराज अभियान की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर महाराष्ट्र सरकार के वकील का कहना था कि इस बारे में सरकार से कोई निर्देश नहीं मिला है.
याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट में बताया गया कि पिछले साल की तरह इस बार भी 21 राज्यों के 115 जिलों में हालात खराब हैं, लेकिन राज्यों ने इन्हें सूखा प्रभावित घोषित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया.
सुनवाई के दौरान इस मुद्दे पर केंद्र के अफसरों को भी तलब किया, जिन्होंने कोर्ट को बताया कि अगस्त में जब पहली सूचना मिली थी कि बारिश में 50 फीसदी कमी है, तब केंद्र से राज्यों को एडवायजरी भेजी गई. सितंबर में भी राज्यों को दूसरी एडवायजरी भेजी गई. सूखा घोषित करना राज्यों पर निर्भर है. हालांकि अनुमान है कि पिछले दस साल की तुलना में इस बार हालात सुधरे हैं और फसल भी अच्छी होगी.
इसके साथ ही उन्होंने कोर्ट को बताया, केंद्र ने सूखे के लिए मानकों में बदलाव किया है और राज्यों को तय करना है कि वह सूखा घोषित करें. केंद्र का मानना है कि राज्यों के पास कोई कारण नहीं है कि वे सूखा घोषित ना करें.
वहीं याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि राज्यों को अक्टूबर के आखिर तक सूखा घोषित करना चाहिए. सूचना यह भी है कि यूपी में भी कुपोषण से बच्चों की मौत हो रही है. दरअसल नए कानून के मुताबिक, राज्यों को नए नियम बनाने हैं, लेकिन 11 में से सिर्फ 5 राज्यों ने नोटिफिकेशन जारी किया है.
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