सेना को आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान स्तानीय लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है (फाइल फोटो).
नई दिल्ली:
आतंकियों का सामना करते हुए महज तीन दिन के भीतर एक मेजर सहित पांच जवान शहीद हो गए हैं. शहीद जवानों को श्रद्धाजंलि देने के बाद सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने उन तत्वों को चेतावनी दी है जो पिछले एक साल से कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में अड़चन पैदा कर रहे हैं. सेना प्रमुख ने साफ-साफ कहा है कि अब कश्मीर में आईएसआईएस और पाकिस्तानी झंडे लहराने वालों के साथ सख्ती के साथ निपटा जाएगा. इसका सीधा मतलब यह निकलता है कि अब सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी या फिर सेना के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों पर सेना जरूरत पड़ने पर गोली चलाने में परहेज नहीं करेगी.
सेना प्रमुख के बयान ने कश्मीर में बवाल भी खड़ा कर दिया है. कई दल कश्मीरियों पर सीधे गोली चलाने की अप्रत्यक्ष चेतावनी के बाद इसके विरोध में उठ खड़े हुए हैं. सेना प्रमुख ने यह बयान ऐसे ही नहीं दिया है. बात चाहे रविवार को आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ की हो या फिर मंगलवार को हुई मुठभेड़ की, दोनों ही जगहों पर कुछ स्थानीय लोगों ने सेना पर ऑपरेशन के दौरान पत्थर फेंके. इससे रविवार को आतंकी भाग निकला. यह तत्व मुठभेड़ स्थलों पर विरोध प्रदर्शन तथा पथराव कर आतंकियों को भागने में अप्रत्यक्ष तौर पर मदद कर रहे हैं जो कि सेना को कतई मंजूर नहीं है. कई बार ऐसा भी देखा गया है कि मुठभेड़ के दौरान सेना पर पथराव करके सेना के जवानों का ध्यान बंटाने या फिर उनके काम में रोड़ा अटकाने से सेना के कई जवान मारे जा चुके हैं. इतना ही नहीं कई खतरनाक आतंकी घेरे से भाग निकलने में कामयाब हुए हैं.
एनडीटीवी इंडिया को मिली जानकारी के मुताबिक 12 फरवरी को नागबल में चार आतंकी मारे गए, दो जवान शहीद हुए और तीन आतंकी भाग गए. ऐसे ही पिछले साल 17 मई को कुपवाड़ा में एक आतंकी मारा गया था और सेना के दो जवानों को गोली लगी थी. चार आतंकी भाग गए थे. इन दोनों जगहों पर 500 से ज्यादा लोग सेना के खिलाफ आतंकी कार्रवाई के दौरान प्रदर्शन करते नजर आए. किसी के हाथ में पत्थर था तो किसी के हाथ में लकड़ी. ऐसे सैकड़ों उदारहण हैं जब स्थानीय लोगों ने आतंकियों के खिलाफ सुरक्षा बलों की कार्रवाई में बाधा पैदा की. यही वजह है कि एक बार फिर से जम्मू-कश्मीर के आम लोगों को सलाह दी गई है कि उन जगहों पर न जाएं जहां सुरक्षाबलों की आतंकियों के साथ मुठभेड़ हो रही हो.
जानकार बताते हैं कि यह आतंकियों तथा आईएसअई की नई रणनीति है जिसका आदेश उन्हें सीमा पार से मिला है. कई बार ऐसा होता है जब प्रदर्शनकारियों के कारण जान पर बन आती है तब सेना के जवान गोली चलाते हैं. बदकिस्मती से गोली से किसी आम आदमी की मौत हो जाती है तो उस जगह पर मानों उबाल ही आ जाता है. सेना के जानकार बताते हैं कि अब वे इस दोहरे मोर्चे से तंग आ गए हैं. जवानों को दुश्मन पर सीधी गोली चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है, लेकिन अगर हालात नहीं सुधरे तो वे कैसे अपने लोगों पर गोली चलाएंगे. इससे आम लोगों और सेना के बीच की दूरी तो और बढ़ जाएगी जिसे पाटना आसान नहीं होगा.
सेना प्रमुख के बयान ने कश्मीर में बवाल भी खड़ा कर दिया है. कई दल कश्मीरियों पर सीधे गोली चलाने की अप्रत्यक्ष चेतावनी के बाद इसके विरोध में उठ खड़े हुए हैं. सेना प्रमुख ने यह बयान ऐसे ही नहीं दिया है. बात चाहे रविवार को आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ की हो या फिर मंगलवार को हुई मुठभेड़ की, दोनों ही जगहों पर कुछ स्थानीय लोगों ने सेना पर ऑपरेशन के दौरान पत्थर फेंके. इससे रविवार को आतंकी भाग निकला. यह तत्व मुठभेड़ स्थलों पर विरोध प्रदर्शन तथा पथराव कर आतंकियों को भागने में अप्रत्यक्ष तौर पर मदद कर रहे हैं जो कि सेना को कतई मंजूर नहीं है. कई बार ऐसा भी देखा गया है कि मुठभेड़ के दौरान सेना पर पथराव करके सेना के जवानों का ध्यान बंटाने या फिर उनके काम में रोड़ा अटकाने से सेना के कई जवान मारे जा चुके हैं. इतना ही नहीं कई खतरनाक आतंकी घेरे से भाग निकलने में कामयाब हुए हैं.
एनडीटीवी इंडिया को मिली जानकारी के मुताबिक 12 फरवरी को नागबल में चार आतंकी मारे गए, दो जवान शहीद हुए और तीन आतंकी भाग गए. ऐसे ही पिछले साल 17 मई को कुपवाड़ा में एक आतंकी मारा गया था और सेना के दो जवानों को गोली लगी थी. चार आतंकी भाग गए थे. इन दोनों जगहों पर 500 से ज्यादा लोग सेना के खिलाफ आतंकी कार्रवाई के दौरान प्रदर्शन करते नजर आए. किसी के हाथ में पत्थर था तो किसी के हाथ में लकड़ी. ऐसे सैकड़ों उदारहण हैं जब स्थानीय लोगों ने आतंकियों के खिलाफ सुरक्षा बलों की कार्रवाई में बाधा पैदा की. यही वजह है कि एक बार फिर से जम्मू-कश्मीर के आम लोगों को सलाह दी गई है कि उन जगहों पर न जाएं जहां सुरक्षाबलों की आतंकियों के साथ मुठभेड़ हो रही हो.
जानकार बताते हैं कि यह आतंकियों तथा आईएसअई की नई रणनीति है जिसका आदेश उन्हें सीमा पार से मिला है. कई बार ऐसा होता है जब प्रदर्शनकारियों के कारण जान पर बन आती है तब सेना के जवान गोली चलाते हैं. बदकिस्मती से गोली से किसी आम आदमी की मौत हो जाती है तो उस जगह पर मानों उबाल ही आ जाता है. सेना के जानकार बताते हैं कि अब वे इस दोहरे मोर्चे से तंग आ गए हैं. जवानों को दुश्मन पर सीधी गोली चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है, लेकिन अगर हालात नहीं सुधरे तो वे कैसे अपने लोगों पर गोली चलाएंगे. इससे आम लोगों और सेना के बीच की दूरी तो और बढ़ जाएगी जिसे पाटना आसान नहीं होगा.
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