राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा है कि कोविड महामारी के दौरान घर से काम करने (डब्ल्यूएफएच) के अपने फायदे हैं, लेकिन इससे कामकाजी महिलाओं को ‘‘तिहरे बोझ'' का सामना करना पड़ रहा है. ‘मनोरमा ईयरबुक 2022' में प्रकाशित युवा भारतीयों को लिखे एक पत्र में, उन्होंने कहा कि महिलाओं पर पहले से ही भुगतान किए जाने वाले काम और ‘‘अवैतनिक काम'', यानी घरेलू जिम्मेदारियों का दोहरा बोझ है. कोविंद ने ‘‘अराइज, द फ्यूचर बेकन्स'' शीर्षक वाले पत्र में लिखा है, ‘‘इसके ऊपर, जब बच्चे घर से स्कूलों की कक्षा में शामिल होते हैं, तो उनकी शिक्षा में अभिभावक द्वारा मदद की जाती है और इस काम का बोझ भी आमतौर पर मां पर ही पड़ता है.''
उन्होंने लिखा है कि ऐसे समय का पुरुष कर्मचारियों द्वारा स्वागत किया जाना चाहिए और उन्हें अपने जीवनसाथी की कुछ जिम्मेदारियों को साझा करने के लिए आगे आना चाहिए.
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राष्ट्रपति ने कहा कि महामारी ने हमें ‘‘बिल्कुल वे सबक सिखाए हैं जो जलवायु कार्रवाई के काम आएंगे.'' उन्होंने लिखा, ‘‘जलवायु परिवर्तन अब वैज्ञानिक अनुसंधान और नीतिगत चर्चा का विषय नहीं है; इसका प्रभाव पहले से ही प्रत्यक्ष है, और ग्लोबल वॉर्मिंग को व्यवहार्य सीमा के भीतर रखने के लिए हमारे पास तेजी से समय समाप्त हो रहा है.''
उन्होंने कहा कि 2020 का दशक सबसे निर्णायक बिंदु साबित हो सकता है. उन्होंने कहा, ‘‘स्थिति विकट है लेकिन मैं आशान्वित हूं.''
करियर के अवसरों पर, उन्होंने कहा, ‘‘सामाजिक अनिवार्यताओं या साथियों के दबाव में, आप में से कई लोग अक्सर ‘करियर' को ‘नौकरी' के रूप में लेते हैं. ज्यादातर सेवानिवृत्ति तक इसकी निरंतरता के आश्वासन के साथ. यह समझ में आता है. भारत की नौकरशाही और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों को प्रतिभाशाली, मेहनती युवाओं की आवश्यकता है.'' उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन नौकरी का मतलब केवल सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरी नहीं है. हमारे निजी क्षेत्र ने सभी के लिए आय के सृजन में बहुत योगदान दिया है और इसे भारत की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए प्रतिभा की भी आवश्यकता होगी.''
उन्होंने जोर देकर कहा कि करियर का मतलब नौकरी नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘नई सदी में, ‘कार्य' की हमारी कई धारणाओं में वैसे भी बदलाव हो रहे थे, और कोविड-19 ने केवल उस प्रक्रिया को तेज किया. इसके कारण हम पर आवाजाही के प्रतिबंध लगे और लॉकडाउन लगाया गया और इसने दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं को पंगु बना दिया. इस वजह से नौकरियां गई और वेतन में कटौती हुई, लेकिन ‘गिग इकॉनमी' में भी वृद्धि हुई.''
‘गिग इकॉनामी' एक ऐसी मुक्त बाजार व्यवस्था है जहां पूर्णकालिक रोजगार की जगह अस्थायी रोजगार का प्रचलन है.
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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं