यह ख़बर 02 फ़रवरी, 2013 को प्रकाशित हुई थी

महिला समूहों ने रेप कानून पर अध्यादेश को खारिज किया

खास बातें

  • महिला अधिकार समूहों ने रेप कानूनों पर केंद्र सरकार के अध्यादेश को खारिज करते हुए कहा है कि इसमें जस्टिस वर्मा आयोग की चुनिंदा सिफारिशों को ही शामिल किया गया है।
नई दिल्ली:

महिला अधिकार समूहों ने रेप कानूनों पर केंद्र सरकार के अध्यादेश को खारिज करते हुए कहा है कि इसमें जस्टिस वर्मा आयोग की चुनिंदा सिफारिशों को ही शामिल किया गया है।

उन्होंने एक संयुक्त बयान में कहा कि सरकार ने पूरी तरह से पारदर्शिता की कमी बरती और हम राष्ट्रपति से आग्रह करते हैं कि वह ऐसे अध्यादेश पर हस्ताक्षर नहीं करें। इस समूह में महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली वकील वृंदा ग्रोवर, जागोरी की सुनीता धर, ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वूमेन्स एसोसिएशन की कविता कृष्णन और पार्टनर्स फॉर लॉ एंड डेवलेपमेंट की मधु मेहरा शामिल थीं।

उल्लेखनीय है कि सरकार ने शुक्रवार को महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए कानून को सख्त बनाने और संशोधन के लिए अध्यादेश को मंजूरी दे दी, जिसमें बेहद गंभीर मामलों में मौत की सजा तक का प्रावधान किया गया है, लेकिन वैवाहिक बलात्कार और विवादास्पद आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (एएफएसपीए) पर जस्टिस वर्मा आयोग की सिफारिशों को नजरअंदाज कर दिया है।

अध्यादेश में यौन अपराधों का सामना कर रहे राजनेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने संबंधी वर्मा आयोग की सिफारिश पर भी कुछ नहीं कया गया है। जस्टिस वर्मा आयोग ने सुझाव दिया था कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध माना जाए, जो कि महिला अधिकार कार्यकर्ताओं की प्रमुख मांगों में से एक है।

सरकार ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून पर वर्मा समिति की यह सिफारिश नामंजूर कर दी कि यदि सशस्त्र बल के जवान महिला के खिलाफ अपराध के आरोपी पाए जाते हैं, तो किसी मंजूरी की जरूरत नहीं होगी। लेकिन सरकार ने इस कानून को महिलान्मुखी बनाते हुए यह सुझाव दिया है कि यौन अपराध की पीड़ित का बयान केवल महिला पुलिस अधिकारी ही लेगी।

उल्लेखनीय है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए कठोर सिफारिशों को शीघ्र लागू करने के प्रयास के तहत शुक्रवार रात को इस संबंध में एक अध्यादेश को मंजूरी दी। न्यायमूर्ति जे एस वर्मा समिति की सिफारिशों पर आधारित और उससे भी आगे जाकर इस अध्यादेश में ‘बलात्कार’ शब्द के स्थान पर ‘यौन हिंसा’ रखने का प्रस्ताव है, ताकि उसके दायरे में महिलाओं के खिलाफ सभी तरह के यौन अपराध शामिल हों।

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इसमें महिलाओं का पीछा करने, दर्शनरति, तेजाब फेंकने, शब्दों से अश्लील बातें करने, अनुपयुक्त स्पर्श जैसे महिलाओं के खिलाफ अन्य अपराधों के लिए सजा बढ़ाने का प्रस्ताव है। इसके दायरे में वैवाहिक बलात्कार को भी लाया गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने संसद के बजट सत्र से तीन सप्ताह पहले ही विशेष रूप से आयोजित अपनी बैठक में वर्मा समिति की सिफारिशों से आगे बढ़कर उस स्थिति के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया है, जहां बलात्कार की पीड़िता की मौत हो जाती है या वह कोमा में चली जाती है। ऐसे मामलों में न्यूनतम सजा 20 साल की जेल की सजा होगी जिसे उसके प्राकृतिक जीवनावधि तक बढ़ाया जा सकता है या फिर मृत्युदंड दिया जा सकता है। अदालत अपने विवेक के आधार पर निर्णय करेगी।