अटल बिहारी वाजपेयी का 16 अगस्त को दिल्ली के एम्स में निधन हो गया था.
नई दिल्ली:
अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के साथ ही राजनीति में एक युग खत्म हो गया है. उनके साथ ही एक सवाल भी खड़ा हो गया है क्या राजनीतिऔर सामाजिक जीवन में असहमति के सम्मान का दौर खत्म हो जाएगा. अटल जी जिस दौर में प्रधानमंत्री बने थे वह सामान्य नहीं थे. देश अस्थिरता से जूझ रहा था. सरकारें बनती थीं और निजी स्वार्थों में टकरा गिर जाती थीं. देश को केंद्र में ऐसी सरकार की जरूरत थी जो सबको साथ लेकर बड़े निर्णय ले सके. अटल जी ने 22 दलों को साथ लेकर सरकार बनाई और परमाणु परीक्षण कर पूरी दुनिया को चौंका दिया. लेकिन 13 महीने में उनकी सरकार के एक वोट से गिर गई. देश को एक बार फिर से चुनाव के दरवाजे पर खड़ा हो गया. लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी को अपने सहयोगी दलों पर विश्वास था और एनडीए ने उनकी अगुवाई में एक बार फिर से सत्ता में वापसी की. इसके बाद तो उनकी सरकार ने कई ऐसे फैसले लिये जिनमें वाजपेयी ने असहमति होते हुये भी उन्होंने रास्ते निकाले. आर्थिक मोर्चे पर आरएसएस के संगठन भारतीय किसान संघ का विरोध झेला तो अयोध्या के मुद्दे पर विश्व हिंदू परिषद ने उनके खिलाफ धर्म संसद भी आयोजित कर दिया. इतना ही नहीं पार्टी के अंदर भी उनके खिलाफ विरोध के सुर उठते रहे थे लेकिन वाजपेयी कभी विचलित नहीं हुये.
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विरोध का सम्मान
अटल बिहारी वाजपेयी विरोध का हमेशा सम्मान करते थे. उनकी सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा बताते हैं कि एक बार वह अटल जी के पास बीमा क्षेत्र को विदेशी पूंजी के लिये खोलने का प्रस्ताव लेकर गये तो उन्होंने इस पर आगे बढ़ने को कहा लेकिन जब प्रस्ताव कैबिनेट के पास आया तो इसका विरोध शुरू हो गया. अटल जी सबकी बातें शांत होकर सुनते रहे और उसके बाद उन्होंने इस पर सहमति बनाने के लिये समिति बना दी और बाद में इस पर कैबिनेट की मुहर लग गई. इसी तरह एक ममता बनर्जी को मनाने के लिये वह पश्चिम बंगाल में उनके घर चले गये.
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दिल दुखाने वाली बात न कहना
अटल जी 50 सालों तक विपक्ष की राजनीति की है लेकिन अटल जी कई मुद्दों पर नेहरू जी से लेकर कई प्रधानमंत्रियों की नीतियों का विरोध करते रहे. लेकिन अटल जी ने कभी कोई ऐसी बात नहीं की जो असंदीय लगे. उन्होंने एक बार खुद भी बताया कि उनके विदेश मंत्री बनने के बाद साउथ ब्लॉक से नेहरू जी की तस्वीर हटा दी गई थी. उन्होंने पूछा कि यह तस्वीर कहां गई. अगले दिन फिर वह तस्वीर फिर वहां टांग दी गई.
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कुशल वक्ता और दिल को छू लेने वाली बात
अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों इतिहास में अमर हो गये. रैलियों में उनको सुनने के लिये लोग दूर-दूर से आते थे. घंटों उनके इंतजार में खड़े रहते थे. वाजपेयी के भाषणों में देश पहले होता था लेकिन कभी उन्होंने व्यक्तिगत हमले नहीं किया.
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ईमानदारी की राजनीति
आज जब देश की राजनीति उस दौर में आ पहुंची है जहां किसी तरह सरकार बनाने को ही जीत माना जाता है. वहीं अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक वोट से गिर गई थी. देश ने वह दिन भी देखा था. आज जब विधायकों और सांसदों की खरीद-फरोख्त की खबरें आती हैं वहीं जब अटल जी से पूछा गया कि आपने बचाने की कोशिश की तो उन्होंने कहा, मंडी में माल तो बहुत था लेकिन हमने खरीदा नहीं.'
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