क्या सुप्रीम कोर्ट की फ़टकार के बाद सीबीआई निदेशक इस्तीफ़ा देंगे, ये सवाल अब सब पूछ रहे हैं। क्योंकि पहले कभी इस हद तक किसी निदेशक को कोर्ट में खुले आम बेइज्ज्त नहीं किया गया। ये फ़टकार इसलिए पड़ी क्योंकि सीबीआई निदेशक ने मारन के खिलाफ़ चार्जशीट दायर करने में एक साल की देर की।
सीबीआई निदेशक हलफ़नामे में एक पैराग्राफ जोड़ना चाहते थे वह पैराग्राफ़ आरोपियों के लिए मददगार हो सकता था। सीबीआई निदेशक ने अपने अफ़सर से बदसलूकी की। ये तमाम आरोप जब सुप्रीम कोर्ट में पढ़े गए तो हर कोई हैरान था और परेशान भी कि किसी एजेंसी का मुखिया अपनी ही संस्था को कैसे नुकसान पहुंचा सकता है।
जानकारी के मुताबिक निदेशक रंजीत सिन्हा ने छुट्टियों के दौरान यूएसएल गाइडलाइंस को लेकर हलफनामा दायर करने की कोशिश की। उस दौरान मामले से जुड़े ज्यादातर अफसर देश से बाहर थे।
नए हलफ़नामे से 2-जी केस कोर्ट में कमजोर पड़ सकता था। ये बात भी साफ हो गई कि मारन के खिलाफ़ चार्जशीट सलाह के नाम पर बार−बार अलग−अलग विभागों को भेजी गई। चार्जशीट पहले अटॉर्नी जनरल को भेजी गई, जब ये जवाब मिला कि कोई अलग राय नहीं है, तो फिर डीओपीटी को भेजी गई।
डीओपीटी ने 10 में से नौ आरोपियों के खिलाफ़ चार्जशीट की हरी झंडी दे दी। इसके बाद फाइल फिर अटॉर्नी जनरल को भेजी गई।
इस पूरी कवायद में मारन के खिलाफ़ चार्जशीट एक साल बाद दायर हो सकी। ये ही नहीं उन्होंने अपने डीआईजी को फ़ाइल में बेइज्जत भी किया। रंजीत सिन्हा, 2 दिसंबर को रिटायर हो जाएंगे।
उनके लिए और जिस संस्था में उन्होंने काम किया, उसकी गरिमा के लिए ये ही अच्छा होगा कि वह इस्तीफ़ा दे दें।
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