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This Article is From Sep 03, 2017

...आखिर मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार में अगड़ी जातियों को क्यों दी गई तरजीह?

क्या मंत्रिमंडल फेरबदल से बीजेपी ने आरक्षण के मुद्दे पर अपने अगले कदम की नींव रख दी है.

...आखिर मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार में अगड़ी जातियों को क्यों दी गई तरजीह?
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पटना: मोदी मंत्रिमंडल में रविवार को हुए फेरबदल के बाद हर व्यक्ति यह जानना चाहता है कि आखिर ऊंची जाति के लोगों को इतनी तरजीह क्यों दी गई? बीजेपी नेता इस बात को लेकर आश्चर्य प्रकट कर रहे हैं कि उतर प्रदेश में जिस गैर यादव पिछड़ा और गैर जाटव दलित और अगड़ी जातियों के जनाधार पर बीजेपी सरकार बनी, उनको मंत्रिमंडल में उतनी तवज्जो नहीं दी गई. उत्तर प्रदेश में योगी मंत्रिमंडल में भी ऊंची जातियों का बोलबाला रहा है.

बिहार की बात करें तो राजीव प्रताप रूडी को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाया गया. उनकी जगह पूर्व गृहसचिव राजकुमार सिंह को राज्यमंत्री बनाया गया है. आरके सिंह राजपूत जाति से आते हैं. इसके अलावा अश्विनी चौबे को मंत्रिमंडल में लिया गया है जो ब्राह्मण समुदाय से हैं लेकिन बीजेपी ने अति पिछड़ा या महादलित समुदाय से किसी को नहीं लिया. ऐसा नहीं है कि राज्य में उसके पास इन समुदायों से सांसद नहीं है. राज्य में झंझारपुर से वीरेंद्र चौधरी, मुजफ्फरपुर से अजय निषाद लोकसभा चुनाव जीते थे.

वहीं उतर प्रदेश से भी कलराज मिश्रा के बदले शिवप्रताप शुक्ला को जगह दी गई. महेंद्रनाथ पांडे से मंत्री पद तो छीना लेकिन तुरंत उन्हें उत्तर प्रदेश का पार्टी अध्यक्ष बनाया गया लेकिन यहां भी किसी अति पिछड़े को तरजीह नहीं दी गई. ये एक ऐसी पहेली है जिसका जवाब बीजेपी नेता भी अब ढूंढ रहे हैं. अब तक ये तय माना जा रहा था कि जिन जातियों ने बीजेपी के रिकॉर्ड प्रदर्शन में महत्वूर्ण भूमिका अदा की है, उनका प्रतिनिधित्व आने वाले दिनों में बढ़ेगा पर फिलहाल ये होता नजर नहीं आ रहा.

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बीजेपी नेता इसके पीछे एक तर्क देते हैं कि आने वाले दिनों में पूरे हिंदी भाषी राज्यों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक महत्वूर्ण फैसला लिया जाने वाला है. ये फैसला नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण से संबंधित है. बीजेपी के रणनीतिकार कहते हैं कि केंद्र सरकार खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले चुनाव में अति पिछड़ों या गैर यादव वोटरों को और अधिक गोलबंद करना चाहते हैं. इसलिए अगले कुछ दिनों में मंडल कमीशन के लागू होने के बाद पिछड़ी जातियों को कितना लाभ हुआ है, इसका अध्ययन करने के लिए एक आयोग का गठन मोदी सरकार करेगी लेकिन मात्र तीन महीने में इसे अपनी रिपोर्ट देनी होगी.

निश्चित रूप से इस आयोग के अध्ययन में यह साफ होना तय है कि वर्तमान में आरक्षण का लाभ कुछ दबंग पिछड़ी जातियां या पिछड़ों में अगड़ी जातियों जैसे यादव, कुर्मी और कोइरी ले रहे हैं. इस रिपोर्ट में अन्य पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ सुनिश्चित करने के लिए उनके लिए निश्चित कोटा मतलब 27 प्रतिशत के वर्तमान आरक्षण में करीब 18 फीसदी उनके लिए आरक्षित रखने का प्रावधान होगा. बिहार में पंचायतों में नीतीश  कुमार ने ये प्रावधान और राज्य सरकार की नौकरियों में कर्पूरी ठाकुर ने 70 के दशक में लागू किया था.

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मोदी और बीजेपी दोनों को मालूम है कि ये एक ऐसा ब्रह्मास्त्र है जिससे अति पिछड़ी जातियों या गैर यादव पिछड़ो में उनकी पैठ न केवल मजबूत होगी बल्कि इस वोट बैंक के वो सबसे प्रबल दावेदार होंगे. निश्चित रूप से यादव, कुर्मी और कुशवाहा में इसको लेकर स्वाभाविक खलबली होगी लेकिन इन जातियों के नेता इसका सार्वजनिक रूप से न विरोध कर सकते हैं और न ही आलोचना. ऐसे में ऊंची जातियों का सामाजिक स्तर पर सहयोग बीजेपी और उनके सहयोगियों को काफी मददगार साबित होगा.

दरअसल बीजेपी उतर प्रदेश में अखिलेश यादव और बिहार में लालू यादव के खिलाफ अपना एक मजबूत जनाधार बनाना चाहती है और उसे मालूम है कि यह आसान नहीं है. इसके लिए कुछ आमूलचूल परिवर्तन करने होंगे. जब मंडल आयोग की सिफारिश लागू हुई थी, उसके अगले दिन उसकी काट खोजने के लिए तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष लालकृष्ण अडवाणी ने रथ यात्रा पर निकलने की घोषणा की और उसी दौरान बिहार में उनकी गिरफ़्तारी भी हुई.

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तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार से भाजपा ने समर्थन वापस लिया था और बीजेपी की मंडल विरोधी छवि बनी थी. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोधी भी मानते हैं कि वो मंडल और कमंडल दोनों का समिश्रण हैं. लोकसभा चुनाव के पूर्व फरवरी 2014 में उन्होंने बिहार के मुजफ्फरपुर में आयोजित सभा में कहा था कि अगले दस वर्षों की राजनीति पिछड़ों और अति पिछड़ों के इर्द-गिर्द होगी. पूरे उतर प्रदेश और बिहार में लोकसभा चुनाव में इसका लाभ बीजेपी और उनके सहयोगियों को जमकर मिला लेकिन बिहार में विधानसभा चुनाव में अति पिछड़ा वोट नीतीश कुमार के खाते में वापस गया.

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