कांग्रेस (Congress) ने दलित सिख नेता चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) को पंजाब का नया मुख्यमंत्री (New CM of Punjab) बनाकर एक तीर से तीन निशाने साधे हैं. वह अमरिंदर सिंह सरकार में तकनीकि शिक्षा मंत्री थे. चन्नी ने आज राज्य के 16वें मुख्यमंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली. 58 साल के चन्नी रूपनगर की चमकौर साहिब से तीन बार से विधायक हैं. वह राज्य के पहले ऐसे दलित नेता हैं जो इस पद पर पहुंचे हैं. चन्नी को अमरिंदर सिंह का विरोधी समझा जाता है. उनके शपथ समारोह में राहुल गांधी भी मौजूद थे.
कांग्रेस ने आगामी पंजाब विधान सभा चुनावों से पहले चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर तिहरा दांव खेला है. पहला तो उन्होंने राज्य की करीब 32 फीसदी आबादी वाले दलित समुदाय से मुख्यमंत्री बनाकर उस वोट बैंक पर निशाना साधा है और दूसरा इस कदम के जरिए विपक्षी बीजेपी और अकाली दल को करारा जवाब दिया है. तीसरे आप को जवाब देते हुए पार्टी में भी सत्ता संतुलन कायम करने की कोशिश की है.
दरअसल, अकाली दल ने चुनाव जीतने पर दलित नेता को उपमुख्यमंत्री पद देने का वादा किया था, जबकि बीजेपी ने चुनाव जीतने की सूरत में दलित सीएम बनाने का वादा किया था. कांग्रेस ने चन्नी के बहाने दोनों पार्टियों के इस हॉट मुद्दे को कुंद कर दिया है. उधर, आप को भी कांग्रेस ने जवाब दिया है, जो यह कहती रही है कि उसने हरपाल चीना को नेता विपक्ष बनाकर दलितों को सम्मान दिया है.
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पंजाब के इतिहास में यह पहली बार है, जब कोई दलित चेहरा मुख्यमंत्री बना है. अब तक राज्य में जट सिख ही सीएम बनते रहे हैं. राज्य की करीब 3 करोड़ की आबादी में जट सिख की आबादी 20 फीसदी के करीब है, जबकि दलित आबादी (हिंदू और सिख दलित) 32 फीसदी है. राज्य में अन्य हिन्दू आबादी करीब 38 फीसदी है. इसके अलावा अन्य समुदाय जिसमें मुस्लिम, ईसाई भी शामिल हैं, उनकी आबादी करीब 10 फीसदी है.
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आजादी के बाद से राज्य पर शासन करने वाले 15 मुख्यमंत्रियों में से कोई भी दलित समाज से नहीं हुआ है. 1966 में राज्य के बंटवारे से पहले पंजाब के तीन मुख्यमंत्री हिंदू मूल के थे. उसके बाद से लगभग सभी मुख्यमंत्री (ज्ञानी जेल सिंह को छोड़कर) जट सिख समुदाय से हुए हैं, जो राज्य की आबादी का 19 फीसदी ही है. 1972 से 1977 तक राज्य के सीएम रहे ज्ञानी जैल सिंह ओबीसी समुदाय के रामगढ़िया समूह से ताल्लुक रखते थे.
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बता दें कि पंजाब की कुल 117 विधान सभा सीटों में से 34 सीटें अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हैं. राज्य की एक तिहाई दलित आबादी मालवा (दक्षिण-पूर्वी हिस्से) और माझा इलाके (अमृतसर, तरणतारण, गुरदासपुर और पठानकोट) में रहती है और उसका मूल काम खेतीबारी करना है.
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