यह ख़बर 21 जून, 2012 को प्रकाशित हुई थी

भावी वित्तमंत्री से उद्योग जगत की अपेक्षाएं...

खास बातें

  • राष्ट्रपति चुनाव की रेस तेज़ हो रही है और दिलचस्प भी। प्रणब मुखर्जी 28 जून को अपना नामांकन भरने की तैयारी कर रहे हैं और उससे पहले अपना इस्तीफा दे देंगे।
नई दिल्ली से हिमांशु शेखर:

राष्ट्रपति चुनाव की रेस तेज़ हो रही है और दिलचस्प भी। प्रणब मुखर्जी 28 जून को अपना नामांकन भरने की तैयारी कर रहे हैं और उससे पहले अपना इस्तीफा दे देंगे। ऐसे में नया वित्त मंत्री कौन होगा यह सवाल महत्वपूर्ण होता जा रहा है। इस सवाल पर सबसे ज़्यादा नज़र बाज़ार की है।
 
वित्तमंत्री के तौर पर प्रणब मुखर्जी की विरासत चुनौतियों से भरी है। एनडीटीवी से खास बातचीत में वाणिज्य मंत्री आनंश शर्मा ने माना कि देश आर्थिक संकट से जूझ रहा है। उनके मुताबिक उद्योगजगत निराश है। औद्योगिक उत्पादन गिरता जा रहा है और वातावरण खराब हो रहा है।
 
माना जा रहा है कि प्रणब के जाने के बाद प्रधानमंत्री खुद वित्त मंत्रालय की कमान कुछ दिन अपने पास रखेंगे। लेकिन वित्त मंत्रालय जैसे भारी−भरकम महकमे का काम एक अलग और फुलटाइम मंत्री के बिना लंबे समय तक नहीं चलना है। वैसे भी सरकार पर आरोप है कि वह अहम वित्तीय फ़ैसले नहीं कर पा रही और पॉलिसी पैरालिसिस से निपटने में बार−बार नाकाम हो रही है। इस वजह से कई अहम प्रस्ताव अटके पड़े हैं।
 
कुछ अहम प्रस्ताव जिन पर सरकार को फैसला लेना है में पेंशन, इंश्योरेंस और मल्टी ब्रांड रीटेल सेक्टर में एफडीआई आदि प्रमुख प्रस्ताव हैं। मौजूदा बजट में पिछली तारीख़ से लागू होने वाले कर प्रस्तावों से निवेशक नाराज़ हैं। डायरेक्ट टैक्स कोड और जीएसटी अटके पड़े हैं।
 
जाहिर है यह सारी मांगें सरकार के आने वाले वित्तमंत्री से भी है। एसोचैम के अध्यक्ष और वीडियोकॉन प्रेसिडेन्ट राज कुमार धूत चाहते हैं कि ब्याज दर 2 प्रतिशद तक घटाई जानी चाहिए। छोटे−मझोले उद्योगों को आसान शर्तों पर लोन मिलना चाहिये और पेंशन और इंश्योरेन्स सेक्टर में एफडीआई लाने और बढ़ाने के लिए पहल करनी चाहिए। एनडीटीवी से बातचीत में उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि प्रधानमंत्री खुद उद्योगजगत की चिंताओं को दूर करने के लिए पहल करें जिससे की बाज़ार में निगेटिव सेन्टीमेन्ट सुधरे।
 
सीआईआई के सेक्रेटरी जनरल चंद्रजीत बनर्जी भी मानते हैं कि मौजूदा परिस्थिति में सरकार और इंडस्ट्री में स्लोडाउन को मैनेज करने के लिए तालमेल ज़रूरी है। लेकिन मुश्किल यह है कि नई पहल आर्थिक ही नहीं राजनीतिक मोर्चों पर भी ज़रूरी है। यूपीए में सहमति न होने की वजह से मल्टी−ब्रैंड रिटेल सेक्टर में 51 विदेशी निवेश का प्रस्ताव महीनों से अटका पड़ा है। सबसे ज़्यादा विरोध पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरफ से आ रहा है। जब एनडीटीवी इंडिया ने आनंद शर्मा से इस बारे में पूछा तो उन्होंने इसके लिए बीजेपी को ज़िम्मेदार बता दिया और आरोप लगाया कि बीजेपी इस मुद्दे पर दोहरी नीति अपना रही है।

आनंद शर्मा का दावा है कि जब सरकार मल्टी−ब्रैंड रिटेल सेक्टर में विदेशी निवेश की नीति तैयार कर रही थी उस दौरान उन्होंने कोई ऐतराज नहीं जताया। लेकिन नीति के ऐलान के बाद इसका विरोध करने लगे। उनका दावा है कि बहुत सारे राज्य इसके पक्ष में हैं।
लेकिन अगर बहुमत इसके पक्ष में है तो सरकार आगे क्यों नहीं बढ़ रही है। क्यों बार−बार कोशिश के बावजूद तृणमूल नेता ममता बनर्जी को मनाने में सरकार नाकाम साबित हो रही है।

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उद्योगजगत गिरते आर्थिक विकास दर से परेशान है। बड़े फैसले लेने में हो रही देरी की वजह से बाज़ार में सेन्टीमेन्ट गिरता जा रहा है। अब उद्योगजगत चाहता है कि सख्त फैसले लेने का समय आ गया है और देश के नए वित्तमंत्री को इस बारे में जल्दी पहल करनी होगी।