मोदी सरकार (Modi Government) अब क्रूर मुगल शासक औरंगजेब (Aurangzeb) के भाई दारा शिकोह (Dara Shikoh) की कब्र खोज रही है. राजधानी दिल्ली में हुमायूं के मकबरे के पास मुगल शासकों की पहली कब्रगाह मौजूद है. यहां 140 कब्रें हैं लेकिन इन कब्रों में दारा शिकोह की कब्र खोजना आसान नहीं है. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर मोदी सरकार दारा शिकोह की कब्र क्यों खोज रही है. दरअसल दारा भारतीय संस्कृति से बहुत प्रभावित थे. उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता का फारसी में अनुवाद किया था. दारा ने 52 उपनिषदों का भी अनुवाद किया था. अब सरकार दारा शिकोह की कब्र और उनका इतिहास बताकर उन्हें हिन्दुस्तान का 'सच्चा मुसलमान' साबित करना चाहती है. अब आपको बताते हैं कि दारा शिकोह के बारे में कुछ खास बातें.
दारा शिकोह मुगल बादशाह शाहजहां और मुमताज महल के सबसे बड़े बेटे थे. शाहजहां अपनी संतानों में सबसे ज्यादा दारा को पसंद करते थे. दारा अपने माता-पिता की हर आज्ञा का सम्मान करते और उसे पूरा करते थे. सबसे पहले दारा को पंजाब का सूबेदार बनाया गया था. वह राजधानी में रहकर अपने प्रतिनिधियों के जरिए पंजाब पर नजर रखते थे. वह बेहद बहादुर इंसान थे. वह सूफीवाद से काफी प्रभावित थे. इतिहासकार बर्नियर ने अपनी किताब 'बर्नियर की भारत यात्रा' में लिखा है कि दारा शिकोह अच्छे गुणों से युक्त व्यक्ति थे. वह बेहद नम्र और उदार पुरुष थे लेकिन उन्हें अपने बुद्धिमान होने का घमंड भी था. वह समझते थे कि संसार में उन्हें कोई शिक्षा नहीं दे सकता है.
दारा शिकोह सभी धर्मों का सम्मान करते थे. उनकी हिंदू धर्म, ईसाई धर्म, दर्शनशास्त्र आदि में विशेष दिलचस्पी थी. इस वजह से कट्टरपंथी मुसलमानों ने दारा पर इस्लाम के प्रति अनास्था फैलाने का आरोप भी लगाया था. इस परिस्थिति का उनके छोटे भाई औरंगजेब ने फायदा उठाया. 1657 में जब शाहजहां बीमार पड़े तो वह पिता का ख्याल रखने के लिए उनके पास रहने लगे. दारा पिता के तख्त-ए-ताऊस के उत्तराधिकारी थे लेकिन औरंगजेब ने इसका विरोध किया. जिसके बाद उत्तराधिकारी होने के लिए दारा को अपने भाइयों के साथ युद्ध लड़ना पड़ा. दारा को शाहजहां का समर्थन था लेकिन इसके बावजूद युद्ध में उनको हार का सामना करना पड़ा.
1659 में दारा और औरंगजेब के बीच तीसरा और आखिरी युद्ध हुआ. इस बार भी दारा की हार हुई. दारा ने जान बचाकर अफगानिस्तान में शरण ली. अफगान सरदार ने दारा के साथ धोखा किया और उन्हें पकड़कर औरंगजेब के हवाले कर दिया. शाहजहांनामा के मुताबिक, दारा को जंजीरों में जकड़कर दिल्ली लाया गया था. 30 अगस्त, 1659 में दारा शिकोह को मौत की सजा दी गई. औरंगजेब के एक भरोसेमंद सिपाही ने उनका सिर काटा और सिर को औरंगजेब के पास आगरा ले गया. कई किताबों में इस बात का भी जिक्र है कि अपने भाई का कटा हुआ सिर देखकर औरंगजेब फूट-फूटकर रोया था. दारा के धड़ को हुमायूं के मकबरे के परिसर में दफनाया गया था. वहां एक छोटी सी कब्र मौजूद है, जिसे कई इतिहासकार दारा शिकोह की ही कब्र मानते हैं.
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