सूरत:
पीएम नरेंद्र मोदी दो दिन के गुजरात दौरे पर हैं. इसी दौरे के दौरान जब उनका काफिला गुजर रहा था तो एक 4 साल की बच्ची सड़क के बीच उनकी गाड़ी के पास आ गई. यह देख पीएम मोदी ने अचानक काफिले को रुकवाया और बच्ची से मिले. इस बीच बच्ची के पिता सामने खड़े होकर दोनों की तस्वीरें खींचते रहे. वहीं सूरत में आज पीएम मोदी भावुक भी हो गए थे. अस्पताल में संबोधन के वक्त पीएम नरेंद्र मोदी की आंखे भर आईं. उन्होंने कहा -सूरत के लोगों को पता था कि प्रधानमंत्री को क्या खाना है. रविवार रात सर्किट हाउस में बाजरे की रोटी के लिए फोन आया. एक परिवार का खिचड़ी भेजने के लिए फोन आया. आज सुबह भी एक परिवार ने खाखरी भेज दिया. ये वो लोग हैं जो गांव में खेत की मिट्टी खाकर बढ़े हुए हैं.ये वो लोग हैं जो अपने दोस्तों के साथ अमली-पिपली खेलते हैं. ये लोग साइकिल के टायर को दौड़ाते हुए मज़ा लेते थे.
वैसे बीजेपी मिशन गुजरात में जुट गई है. बीते करीब 40 दिन में पीएम मोदी का गुजरात का यह दूसरा दौरा है, जबकि 9 महीने में यह 8वां दौरा है. इससे पहले प्रधानमंत्री बनने के दो साल तक वे यहां नहीं आए. सूत्रों के मुताबिक-बीजेपी खेमे में जून में चुनाव की सुगबुगाहट है, क्योंकि बारिश की वजह से जुलाई-अगस्त में चुनाव नहीं हो सकते. हालांकि अंतिम निर्णय पीएम नरेंद्र मोदी ही लेंगे. रविवार को जो सूरत में पीएम नरेंद्र मोदी ने रोड शो किया, इससे बीजेपी माहौल बनाने की कोशिश कर रही है. दरअसल, 2015 के आखिर में स्थानीय चुनावों में बीजेपी यहां जीत गई थी, हालांकि कुछ सीटें कम हुई थीं, लेकिन जिला पंचायत और तहसील पंचायत में बीजेपी की बुरी तरह हार हुई थी. इसके बाद पाटीदारों, दलितों और ओबीसी आंदोलन बीजेपी के गले की फांस बन गया. अब पीएम मोदी को लगता है कि खुद कमान संभालने से ही परिस्थितियां संभलेंगी. दूसरे नेताओं के भरोसे नहीं बैठ सकते.
वैसे बीजेपी मिशन गुजरात में जुट गई है. बीते करीब 40 दिन में पीएम मोदी का गुजरात का यह दूसरा दौरा है, जबकि 9 महीने में यह 8वां दौरा है. इससे पहले प्रधानमंत्री बनने के दो साल तक वे यहां नहीं आए. सूत्रों के मुताबिक-बीजेपी खेमे में जून में चुनाव की सुगबुगाहट है, क्योंकि बारिश की वजह से जुलाई-अगस्त में चुनाव नहीं हो सकते. हालांकि अंतिम निर्णय पीएम नरेंद्र मोदी ही लेंगे. रविवार को जो सूरत में पीएम नरेंद्र मोदी ने रोड शो किया, इससे बीजेपी माहौल बनाने की कोशिश कर रही है. दरअसल, 2015 के आखिर में स्थानीय चुनावों में बीजेपी यहां जीत गई थी, हालांकि कुछ सीटें कम हुई थीं, लेकिन जिला पंचायत और तहसील पंचायत में बीजेपी की बुरी तरह हार हुई थी. इसके बाद पाटीदारों, दलितों और ओबीसी आंदोलन बीजेपी के गले की फांस बन गया. अब पीएम मोदी को लगता है कि खुद कमान संभालने से ही परिस्थितियां संभलेंगी. दूसरे नेताओं के भरोसे नहीं बैठ सकते.
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