स्मिता प्रकाश ने लिखा है, यह प्रधानमंत्री वाजपेयी से जुड़ी हमारी (एएनआई) की मधुर यादों में से एक है. यह 1998 की बात है जब वे पीएम नहीं थे. उन दिदिनों में काफी आलोचना होने के बाद दूरदर्शन को विपक्ष के नेताओं को भी एयरटाइम में कुछ मिनटों का समय देने की अनुमति दी गई थी.
हालांकि डीडी ने विपक्षी नेताओं के लिए कुछ स्लॉट निर्धारित किए, लेकिन उन्हें डीडी के स्टूडियो में रिकॉर्डिंग की अनुमति नहीं दी. भाजपा ने निजी स्टूडियो से पूछा. कोई स्टूडियो उन्हें रिकॉर्डिंग सुविधाओं की अनुमति देने के लिए तैयार नहीं था! सबको इससे प्रतिशोध का डर था.Tweet thread- this is one of our (ANI) fond memories of Prime Minister Vajpayee. This was in 1998 when he wasn’t PM & doordarshan after a lot of criticism had allowed opposition leaders a few minutes of airtime each. pic.twitter.com/DAqRgz0V5G
— Smita Prakash (@smitaprakash) August 16, 2018
यहां तक कि बीजेपी के एक पूर्व सांसद, जिनका स्टूडियो था, ने भी उन्हें रिकॉर्डिंग का समय नहीं दिया. एएनआई के पास कोई फैंसी स्टूडियो नहीं था. न्यूजरूम में एक कोने में अस्थायी व्यवस्था थी जिसमें एक टेलीप्रॉम्प्टर लगा था. यहीं पर सभी बीजेपी नेताओं ने एक-एक करके अपने संदेश रिकॉर्ड किए.2- Though DD scheduled a few slots for opposition leaders, they did not allow them DD studios. BJP then asked private studios. No studio was willing to allow them recording facilities! Such was the fear of reprisal.
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यह वह एक तस्वीर है, जब कई टेक होने के बाद वाजपेयी ने कहा कि वे बिना टेलीप्रॉम्पटर के बोलेंगे. एनएनआई के संजीव प्रकाश ने उन्हें यह कहकर मनाने की कोशिश की कि एक कोशिश और करें, डीडी ने सीमित समय दिया है और उनका संदेश संपादित करना बहुत कठिन होगा.3- Not even a BJP former MP who had a studio gave them recording time. ANI did not have any fancy studio, a makeshift corner in the newsroom with a teleprompter and all the BJP leaders trooped in one by one and recorded their messages.
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अटलजी सहमत हो गए और सहजता से टेलीप्रॉम्प्टर का इस्तेमाल किया. बीजेपी ने 1998 का चुनाव जीता. इसके बाद परमाणु परीक्षण और कारगिल युद्ध हुआ. 1999 में सरकार फिर से गिर गई. चुनाव फिर हुए.4 In this picture, Mr Vajpayee after several takes, said he would speak without the teleprompter to which Sanjiv Prakash, ANI tried persuading him to give one more try as there was only a limited time that DD was willing to give & it would be hard to edit his message pic.twitter.com/gsj66ln7Le
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संदेश फिर से दर्ज किया जाना था. मीडिया के दिग्गजों ने अपने ठाठ-बाट वाले स्टूडियो की पेशकश की, यह कहते हुए कि संदेश बेहतर और तकनीकी गुणवत्ता वाला होगा. यह भी स्पष्ट था कि बीजेपी जीत जाएगी, इसलिए दूरदर्शन भी तब अधिक अनुकूल था.5- Atalji agreed, and sportingly used the teleprompter. The BJP won the election of 1998. Subsequently nuclear tests & Kargil war happened. Govt fell again in 1999. Elections again.
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हालांकि कुछ बीजेपी नेता हमारे स्टूडियो को "भाग्यशाली" मानते हुए इसमें आना पसंद करते थे, क्योंकि उन्होंने अपना पिछला चुनाव जीता था. बेशक मैं यह नहीं बताऊंगी कि कौन आया और कौन नहीं. यह बात हमारे लिए कोई मायने नहीं रखती कि हमें इइसका कोई भुगतान नहीं मिला.6- Messages had to be recorded again. Many media honchos offered their swanky studios saying the messages would have better technical quality. Also it was apparent that BJP would win so Doordarshan too was more amenable by now.
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आप में से जो दूरदर्शन अधिकारियों को दोष देना चाहते हैं, रुक जाएं. अटल बिहारी वाजपेयी के तीसरी बार पीएम बनने तक किसी गैर-कांग्रेसी पीएम ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया था.7- However some BJP leaders preferred to come to our studio saying it was “lucky” as they had won their previous election. Of course I won’t name who came and who didn’t. It didn’t cost us anything and we didn’t get paid
— Smita Prakash (@smitaprakash) August 16, 2018
आपके जैसे नौकरशाहों के परिवारों को पालने के लिए. उन्होंने उनकी नौकरी बचाए रखी.8- those of you who might be tempted to start blaming Doordarshan officials, stop right there. Till the 3rd non consecutive term of ABV no non-Congress PM had completed his full 5 year term. Bureaucrats like you have families to feed. They had to keep their jobs. Thread over.
— Smita Prakash (@smitaprakash) August 16, 2018
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