नीतीश कुमार का फाइल फोटो
पटना:
सोमवार को जनता दल (यूनाइटेड) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने न केवल दोहराया कि कानून के राज्य में किसी प्रकार की कमी या कमजोरी नहीं दिखाई पड़गी बल्कि साथ में यह भी कहा कि महागठबंधन धर्म निभाने में उनकी तरफ से कभी कोई कमी नहीं होगी. नीतीश के कानून के राज्य और महागठबंधन से संबंधित बयान को लेकर उसकी अपनी तरह से लोग व्याख्या कर रहे हैं.
महागठबंधन के बारे में बोलते हुए नीतीश कुमार ने दावा किया कि महागठबंधन के दलों और उनके शीर्ष नेतृत्व के साथ के साथ विचार-विमर्श के बाद निर्णय लिए जाते हैं. नीतीश का ये दावा शायद राज्य में शराबबंदी को लेकर किए जा रहे कयासों पर बचाव माना जा रहा है क्योंकि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू यादव न केवल शराबबंदी के खिलाफ बताए जाते हैं बल्कि निजी बातचीत में उन्होंने कई बार मीडिया वालों से इस बात की चर्चा में कहा है कि इस संबंध में खासकर विदेशी शराब पर प्रतिबंध लगाए जाने पर उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. हालांकि लालू यादव ने सार्वजनिक रूप से इस कदम का भी स्वागत किया है.
वहीं महागठबंधन के बारे में नीतीश ने कहा कि जिस दल का जितना अधिकार होता है, वो उनका ख्याल रखते हैं और दावा किया कि उनकी तरफ से कभी कोई कमी नहीं आएगी. हमेशा नीतिगत फैसले के पहले वो नीतिगत साझेदारी भी करते हैं. लेकिन इस बयान का अपने पार्टी के फोरम से बोलने पर राजनैतिक जानकार मानते हैं कि नीतीश ने पिछले दिनों लालू यादव द्वारा अपने पार्टी के पूर्व सांसद मुहम्मद शहाबुद्दीन के उस बयान का जिसमें उन्होंने नीतीश को परिस्थितियों का नेता बताया था, पर मौन रहना उनकी नाराजगी का कारण बताया जा रहा है. नीतीश जानते हैं कि लालू यादव इस मुद्दे पर बोल सकते थे लेकिन मौन रहकर उन्होंने अपने समर्थको में संदेश भेजा है कि उनकी मौन सहमति शहाबुद्दीन के बयान पर है.
लेकिन जहां नीतीश ने नाराजगी दिखाई वहीं कानून व्यवस्था पर अपना रुख साफ कर उन्होंने अपने सहयोगियों खासकर लालू यादव और शहाबुद्दीन जैसे उनके समर्थकों को भी संदेश दिया है कि अब उनसे कोई नरमी की अपेक्षा करना बेकार है और आने वाले दिनों में शायद उनकी सरकार आपराधिक छवि के लोगों को जेल और सजा दिलाने में ज्यादा दिलचस्पी और मुस्तैदी दिखाएगी. राज्य सरकार मान कर चल रही है कि सर्वोच्च न्यायालय में फैसला चाहे जो भी आए लेकिन राज्य सरकार के ऊपर जिम्मेदारी इस बात को लेकर और बढ़ेगी कि शहाबुद्दीन जैसे आपराधिक छवि के लोगों के खिलाफ लंबित मामलों को जल्द से जल्द खत्म किया जाये.
हालांकि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन पार्टी के नेता मानते हैं कि शहाबुद्दीन के मुद्दे पर मौन रहना लालू यादव की मजबूरी है लेकिन वो भी मानते हैं कि लालू यादव एक बयान से शहाबुद्दीन के बयान से शुरू हुए विवाद पर विराम लगा सकते थे लेकिन अपनी निजी मजबूरी के कारण वो मौका उन्होंने जाने दिया. वहीं कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे पर नीतीश के साथ खड़ा होकर ये जता दिया है कि वो इस मुद्दे पर लालू यादव के साथ नहीं हैं.
महागठबंधन के बारे में बोलते हुए नीतीश कुमार ने दावा किया कि महागठबंधन के दलों और उनके शीर्ष नेतृत्व के साथ के साथ विचार-विमर्श के बाद निर्णय लिए जाते हैं. नीतीश का ये दावा शायद राज्य में शराबबंदी को लेकर किए जा रहे कयासों पर बचाव माना जा रहा है क्योंकि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू यादव न केवल शराबबंदी के खिलाफ बताए जाते हैं बल्कि निजी बातचीत में उन्होंने कई बार मीडिया वालों से इस बात की चर्चा में कहा है कि इस संबंध में खासकर विदेशी शराब पर प्रतिबंध लगाए जाने पर उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. हालांकि लालू यादव ने सार्वजनिक रूप से इस कदम का भी स्वागत किया है.
वहीं महागठबंधन के बारे में नीतीश ने कहा कि जिस दल का जितना अधिकार होता है, वो उनका ख्याल रखते हैं और दावा किया कि उनकी तरफ से कभी कोई कमी नहीं आएगी. हमेशा नीतिगत फैसले के पहले वो नीतिगत साझेदारी भी करते हैं. लेकिन इस बयान का अपने पार्टी के फोरम से बोलने पर राजनैतिक जानकार मानते हैं कि नीतीश ने पिछले दिनों लालू यादव द्वारा अपने पार्टी के पूर्व सांसद मुहम्मद शहाबुद्दीन के उस बयान का जिसमें उन्होंने नीतीश को परिस्थितियों का नेता बताया था, पर मौन रहना उनकी नाराजगी का कारण बताया जा रहा है. नीतीश जानते हैं कि लालू यादव इस मुद्दे पर बोल सकते थे लेकिन मौन रहकर उन्होंने अपने समर्थको में संदेश भेजा है कि उनकी मौन सहमति शहाबुद्दीन के बयान पर है.
लेकिन जहां नीतीश ने नाराजगी दिखाई वहीं कानून व्यवस्था पर अपना रुख साफ कर उन्होंने अपने सहयोगियों खासकर लालू यादव और शहाबुद्दीन जैसे उनके समर्थकों को भी संदेश दिया है कि अब उनसे कोई नरमी की अपेक्षा करना बेकार है और आने वाले दिनों में शायद उनकी सरकार आपराधिक छवि के लोगों को जेल और सजा दिलाने में ज्यादा दिलचस्पी और मुस्तैदी दिखाएगी. राज्य सरकार मान कर चल रही है कि सर्वोच्च न्यायालय में फैसला चाहे जो भी आए लेकिन राज्य सरकार के ऊपर जिम्मेदारी इस बात को लेकर और बढ़ेगी कि शहाबुद्दीन जैसे आपराधिक छवि के लोगों के खिलाफ लंबित मामलों को जल्द से जल्द खत्म किया जाये.
हालांकि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन पार्टी के नेता मानते हैं कि शहाबुद्दीन के मुद्दे पर मौन रहना लालू यादव की मजबूरी है लेकिन वो भी मानते हैं कि लालू यादव एक बयान से शहाबुद्दीन के बयान से शुरू हुए विवाद पर विराम लगा सकते थे लेकिन अपनी निजी मजबूरी के कारण वो मौका उन्होंने जाने दिया. वहीं कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे पर नीतीश के साथ खड़ा होकर ये जता दिया है कि वो इस मुद्दे पर लालू यादव के साथ नहीं हैं.
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