बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आजकल प्रशासनिक कार्यों में अपने स्वभाव के विपरीत काफ़ी जल्दबाज़ी में रहते हैं. अधिकारियों और मंत्रिमंडल सहयोगियों पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर जल्दी-जल्दी प्रशासनिक स्वीकृति पर लोग सवाल कर रहे हैं कि आख़िर इस जल्दबाज़ी का अर्थ और राजनीतिक मतलब क्या है. नीतीश कुमार ने सोमवार को स्वास्थ्य विभाग से संबंधित पूर्वी चंपारण और मुंगेर में दो राजकीय मेडिकल कॉलेज के 603 करोड़ की अनुमानित लागत से 1200 करोड़ से अधिक की प्रशासनिक स्वीकृति दी. जबकि न इन कॉलेज के लिए भूमि का अधिग्रहण हुआ है, न बिल्डिंग के मॉडल का चयन. अमूमन नीतीश कुमार जब तक ज़मीन अधिग्रहण न हो, तब तक भवन के लिए प्रशासनिक स्वीकृति देने से बचते हैं. हालांकि चंपारण में भूमि का चयन स्थानीय प्रशासन ने किया. लेकिन इसका स्थानांतरण अब तक नहीं हुआ. वहीं मुंगेर में इस भूमि का चयन और अधिग्रहण अभी बाक़ी है.
वैसे ही सोमवार को कैबिनेट में आनन-फ़ानन में पथ निर्माण विभाग ने नीतीश के ज़िद के बाद उनके पुराने संसदीय क्षेत्र बाढ़ के दो प्रोजेक्ट - एक बख़्तियारपुर और एक हरनौत में आरओबी का निर्माण के लिए 128 करोड़ से अधिक की राशि स्वीकृत की जबकि न डिज़ाइन का पता, न ब्रिज के अलायमेंट का. ये सब नीतीश ने सीएजी द्वारा पूर्व में बिना डिज़ाइन के पटना शहर में ब्रिज के निर्माण पर आपत्ति उठाने के बाद किया. लेकिन अधिकारियों कि मानें तो नीतीश की जल्दबाज़ी से लगता है, उन्हें बहुत कुछ कम समय में करने की छटपटाहट है . इसके लिए वो अपने द्वारा निर्धारित मापदंड को भी ताक पर रखने में हिचक नहीं रहे.
दूसरा राजनीतिक जानकारों के मुताबिक़, नीतीश के इस व्यवहार से उन अटकलों को और बल मिलता है कि वो आने वाले कुछ महीनों में बिहार की गद्दी सहयोगी भाजपा को सौंप कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में शामिल हो सकते हैं. हालांकि उनके नज़दीकी मंत्रियों के अनुसार ये सब कोरी कल्पना है और सारी बातें केवल हवा में हैं. लेकिन भाजपा के नीतीश मंत्रिमंडल के सहयोगियों के अनुसार बिहार की राजनीति और नीतीश का भविष्य किस करवट बदलेगा ये तीन लोगों जिसमें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी , केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और ख़ुद नीतीश कुमार के अलावा और कोई नहीं जानता.
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लेकिन नीतीश को सहयोगी के रूप में भाजपा फ़िलहाल अगले लोकसभा चुनाव तक नहीं छोड़ने वाली, लेकिन पटना से दिल्ली उन्हें शिफ़्ट भी किया जायेगा तो वो एक सम्मानजनक तरीक़े से होगा . हालांकि वो भी मानते हैं कि नीतीश जिस तरह से परियोजनाओं को फ़ास्टट्रैक कर रहे हैं, वैसे में सवाल उठना स्वाभाविक है और उन्होंने राज्यसभा में जाने की इच्छा भी व्यक्त की है. इसका खंडन कर उन्होंने इस ख़बर को ख़ुद से पुष्टि भी कर दिया. जैसे उन्होंने अपने पुराने संसदीय क्षेत्र का दौरा किया, उससे इन अटकलों को और बल मिला कि वो देर सवेर अपनी कुर्सी भाजपा को सौंप कर दिल्ली में कुछ नया राजनीतिक रोल तलाश कर रहे हैं.
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