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This Article is From Sep 26, 2016

खास बातें : क्या है सिंधु नदी संधि? भारत और पाकिस्तान के लिए क्यों है अहम?

खास बातें : क्या है सिंधु नदी संधि? भारत और पाकिस्तान के लिए क्यों है अहम?
सिंधु जल संधि : क्या भारत इसे आसानी से तोड़ सकता है, क्या पाकिस्तान को पंगु करने के लिए वह ऐसा करेगा (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर के उरी में आतंकी हमले के बाद भारत पाकिस्तान के प्रति जवाबी कार्रवाई के तौर पर सिंधु नदी समझौते की समीक्षा पर विचार कर रहा है. भारत ने पिछले सप्ताह स्पष्ट तौर पर कहा था, इस संधि को जारी रखने के लिए ‘आपसी विश्वास और सहयोग’ बहुत महत्वपूर्ण है.

यह अंतरराष्ट्रीय जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच दो बड़े युद्धों और तमाम खराब रिश्तों के बीच भी बनी रही है. विशेषज्ञ इस बात पर एकमत नहीं हैं कि सिंधु नदी समझौते को तोड़ देना चाहिए या नहीं.

भारत-पाकिस्तान सिंधु नदी संधि से जुड़ी खास बातें-

करीब एक दशक तक विश्व बैंक की मध्यस्थता में बातचीत के बाद 19 सितंबर 1960 को समझौता हुआ
संधि पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू - पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने हस्ताक्षर किए
इसके तहत सिंधु घाटी की 6 नदियों का जल बंटवारा हुआ था
सिंधु बेसिन की नदियों को दो हिस्सों में बांटा गया था, पूर्वी और पश्चिमी
भारत इन नदियों के उद्गम के अधिक क़रीब है
ये नदियां भारत से पाकिस्तान की ओर जाती हैं
पूर्वी पाकिस्तान की 3 नदियों का नियंत्रण भारत के पास है
इनमें व्यास, रावी और सतलज आती हैं
पश्चिम पाकिस्तान की 3 नदियों का नियंत्रण पाकिस्तान के पास है
इनमें सिंधु, चिनाब और झेलम आती हैं
पश्चिमी नदियों पर भारत का सीमित अधिकार
भारत अपनी 6 नदियों का 80% पानी पाकिस्तान को देता है
भारत के हिस्से आता है क़रीब 20% पानी

क्या है इस समझौते का पाकिस्तान के लिए महत्व-

पाकिस्तान के दो-तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियां आती हैं
पाकिस्तान की 2.6 करोड़ एकड़ ज़मीन की सिंचाई इन नदियों पर निर्भर है
अगर भारत पानी रोक दे तो पाक में पानी संकट पैदा हो जाएगा, खेती और जल विद्युत बुरी तरह प्रभावित होंगे

ध्यान देने योग्य बात...

मगर यहां यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि सिंधु नदी का उद्गम स्थल चीन में है और भारत-पाकिस्तान की तरह उसने जल बंटवारे की कोई अंतरराष्ट्रीय संधि नहीं की है. अगर चीन ने सिंधु नदी के बहाव को मोड़ने का निर्णय ले लिया तो भारत को नदी के पानी का 36 फीसदी हिस्सा गंवाना पड़ेगा.

यदि संधि तोड़ने का फैसला लेता है भारत...

विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक अंतरराष्ट्रीय संधि है. ऐसे में भारत इसे अकेले खत्म नहीं कर सकता. अगर ऐसा हुआ तो  इससे भारत को अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा. साथ ही यह संदेश भी साफ साफ जाएगा कि हम कानूनी रूप से लागू संधि का उल्लंघन कर रहे हैं.

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