लेखिका नयनतारा सहगल
                                                                                                                        
                                        
                                        
                                                                                कोलकाता: 
                                        'पुरस्कार वापसी’ अभियान के शुरुआती शख्सियतों में से एक लेखिका नयनतारा सहगल का कहना है कि देश में इस कदर असहिष्णुता बढ़ रही है कि वह उस दिन का इंतजार कर रही हैं जब संस्कृति मंत्री खजुराहो की नग्न मूर्तियों को साड़ी पहनाएंगे। कोलकाता साहित्य उत्सव में पहुंची सहगल ने कहा 'हिंदुत्व के तहत जिस तरीके से चीजें आगे बढ़ रही हैं मैं उस दिन का इंतजार कर रही हूं जब संस्कृति मंत्री खजुराहो की नग्न मूर्तियों को साड़ी पहनाएंगे क्योंकि वे काफी नाटकीय अंदाज में यौन भंगिमाएं हैं।'
इसके साथ ही सहगल ने साफ किया है कि वह लौटाए गए पुरस्कार को वापिस नहीं ले रही हैं। साथ ही उन्होंने साहित्य अकादमी के पुरस्कार वापस नहीं लिए जाने की नीति की घोषणा के समय को लेकर भी सवाल उठाए हैं। सहगल ने कहा 'मुझे नहीं पता कि यह अनर्गल बातें क्यों फैलाई जा रही हैं कि मैंने पुरस्कार वापस ले लिया है। साहित्य अकादमी ने आज मुझे फोन किया कि लौटाए गए पुरस्कार को रखने की उनकी कोई नीति नहीं है और इसलिए वे मेरे द्वारा भेजे गए चेक को वापस लौटा रहे हैं।’
दिए गए अवार्ड वापिस नहीं होते
फैसले के समय पर बात करते हुए सहगल ने कहा 'मेरा मानना है कि रोहित की आत्महत्या से यह काफी कुछ जुड़ा हुआ है जिसे मैं हत्या कहती हूं। यह हत्या है। तकनीकी रूप से यह आत्महत्या है लेकिन उसे मजबूर किया गया।’ गौरतलब है कि अकादमी ने कहा था कि उसके संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि किसी लेखक को एक बार सम्मानित करने के बाद वह उसे वापस पुरस्कार को वापिस ले सके। अकादमी ने यह भी कहा कि कुछ लेखकों ने लौटाए गए सम्मान को वापस ले लिया है।
अवार्ड वापसी अभियान का नेतृत्व करने वाली सहगल ने कहा कि उन्होंने अक्तूबर में चेक भेजे थे जिसे अकादमी ने अपने खाते में नहीं डाला और अब यह चेक मान्य नहीं रहा। बता दें कि 1986 में सहगल को यह सम्मान दिया गया था जिसके तहत उन्हें ताम्र पट्टिका के साथ 21 हजार का चेक भी दिया गया था। सहगल ने बताया कि ‘अकादमी ने यह कहकर मेरे उपर हमला किया कि मैं धन लौटा रही हूं लेकिन ब्याज नहीं। उससे मैं काफी निराश हुई और उन्हें एक लाख रूपये का चेक भेज दिया लेकिन वह तबसे पड़ा हुआ है। और अब वे अचानक कह रहे हैं कि यह हमारी नीति नहीं है। यह उनकी समस्या है मेरी नहीं।’’ सहगल ने कहा कि
                                                                        
                                    
                                इसके साथ ही सहगल ने साफ किया है कि वह लौटाए गए पुरस्कार को वापिस नहीं ले रही हैं। साथ ही उन्होंने साहित्य अकादमी के पुरस्कार वापस नहीं लिए जाने की नीति की घोषणा के समय को लेकर भी सवाल उठाए हैं। सहगल ने कहा 'मुझे नहीं पता कि यह अनर्गल बातें क्यों फैलाई जा रही हैं कि मैंने पुरस्कार वापस ले लिया है। साहित्य अकादमी ने आज मुझे फोन किया कि लौटाए गए पुरस्कार को रखने की उनकी कोई नीति नहीं है और इसलिए वे मेरे द्वारा भेजे गए चेक को वापस लौटा रहे हैं।’
दिए गए अवार्ड वापिस नहीं होते
फैसले के समय पर बात करते हुए सहगल ने कहा 'मेरा मानना है कि रोहित की आत्महत्या से यह काफी कुछ जुड़ा हुआ है जिसे मैं हत्या कहती हूं। यह हत्या है। तकनीकी रूप से यह आत्महत्या है लेकिन उसे मजबूर किया गया।’ गौरतलब है कि अकादमी ने कहा था कि उसके संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि किसी लेखक को एक बार सम्मानित करने के बाद वह उसे वापस पुरस्कार को वापिस ले सके। अकादमी ने यह भी कहा कि कुछ लेखकों ने लौटाए गए सम्मान को वापस ले लिया है।
अवार्ड वापसी अभियान का नेतृत्व करने वाली सहगल ने कहा कि उन्होंने अक्तूबर में चेक भेजे थे जिसे अकादमी ने अपने खाते में नहीं डाला और अब यह चेक मान्य नहीं रहा। बता दें कि 1986 में सहगल को यह सम्मान दिया गया था जिसके तहत उन्हें ताम्र पट्टिका के साथ 21 हजार का चेक भी दिया गया था। सहगल ने बताया कि ‘अकादमी ने यह कहकर मेरे उपर हमला किया कि मैं धन लौटा रही हूं लेकिन ब्याज नहीं। उससे मैं काफी निराश हुई और उन्हें एक लाख रूपये का चेक भेज दिया लेकिन वह तबसे पड़ा हुआ है। और अब वे अचानक कह रहे हैं कि यह हमारी नीति नहीं है। यह उनकी समस्या है मेरी नहीं।’’ सहगल ने कहा कि
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