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सभी को भारतीय वायु सेना के कार्गो विमान सी-17 से स्वदेश लाया गया
कुछ लोगों ने लौटने से इनकार कर दिया है, उन्हें हालाद सुधरने की उम्मीद है
वीके सिंह ने विमान के अंदर घूम-घूमकर यात्रियों से बात की
करीब 30 घंटे के इस ऑपरेशन में 156 भारतीयों को बचाकर लाया गया। इन सभी को भारतीय वायु सेना के कार्गो विमान सी-17 से स्वदेश लाया गया। विमान में खास तौर पर सीटें लगाई गई थीं। जबकि 300 से ज्यादा लोगों ने दक्षिण सुडान की राजधानी जुबा में जारी गोलाबारी के बावजूद वहां से वापस वतन लौटने से इनकार कर दिया है।
Op #Sankatmochan leaving Juba for India via Entebbe (Uganda) pic.twitter.com/4glo05F52H
— Vijay Kumar Singh (@Gen_VKSingh) July 15, 2016
विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह ने पब्लिक एड्रेस सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए बचाए गए परिवारों से कहा, 'भारतीय वायु सेना की सराहना करें।' उन्होंने मुस्कुराते हुए, उत्साहवर्धक तरीके से कहा, 'हमारा मुख्य उद्देश्य आपकी सुरक्षा है। यह वायुसेना का विमान है। इसमें आपके लिए खासतौर पर सीटें लगाई गई हैं, लेकिन यह उतनी आरामदायक नहीं हैं।' एक अन्य वीडियो में वीके सिंह विमान के अंदर घूम-घूमकर यात्रियों से बात कर रहे हैं।
जिन लोगों ने स्वदेश लौटने से इनकार कर दिया है, वे दक्षिण सुडान में हालात सुधरने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। उन्हें हाल ही में दक्षिण सुडान की सरकार और विद्रोहियों के बीच हुए युद्धविराम से काफी उम्मीदें हैं और वे वहां अपना बिजनेस नहीं छोड़ना चाहते थे।
Op #SankatMochan in progress.A sense of fulfillment prevails in the team seeing these happy faces. Jai Hind!! pic.twitter.com/XvVUnwEPfW
— Vijay Kumar Singh (@Gen_VKSingh) July 14, 2016
वीके सिंह ने कहा, 'हमारा लक्ष्य जुबा और आसपास के इलाकों में फंसे उन लोगों को सुरक्षित निकालना था, जिन्होंने कहा था कि वे मुसीबत में हैं। करीब 300 लोगों ने आने से इनकार कर दिया, क्योंकि वे अपना व्यापार नहीं छोड़ सकते थे।
अंजलि उनके बिजनेसमैन पति और तीन साल की बेटी ने शुक्रवार सुबह तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट पर उतरकर चैन की सांस ली। उनके लिए पिछले कुछ दिनों से गोलियों की आवाज पर छिपने का सिलसिला जारी था। अंजलि अरुण कहती हैं, 'वहां बहुत ज्यादा फायरिंग हो रही थी। हमें लगातार गोलियों की आवाजें सुनाई दे रही थीं, लेकिन हम सुरक्षित थे।'
जय कृष्णन ने कहा, 'हालात बहुत बुरे हैं। फायरिंग के कारण हम लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकल पा रहे थे। हमारे पास खाना भी नहीं था। स्वदेश लौटे कुछ लोग जितनी जल्दी हो सके जुबा लौटना चाहते हैं।
अरुण कहते हैं, 'मेरा वहां पिछले 12 सालों के बिजनेस है और मैं वहां सबकुछ यूं ही नहीं छोड़ सकता। यहां तक कि इस समय भी वहां 10 लोग हैं जो बिजनेस की देखभाल कर रहे हैं। आखिरकार हम सबकुछ तो यहां नहीं ला सकते। पूरे स्टाफ को पैसा कौन देगा?'
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