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This Article is From Sep 09, 2015

त्रासदी के शिकार किसानों के बच्चों का सहारा बनी औरंगाबाद की संस्था

त्रासदी के शिकार किसानों के बच्चों का सहारा बनी औरंगाबाद की संस्था
मराठवाड़ा का एक पीड़ित किसान परिवार (फाइल फोटो)
मुंबई: पूरे देश में किसान आत्महत्या कर रहे हैं। रोज इन आंकड़ों में इजाफा हो रहा है। यह खबरें सुर्खियों में भी आती हैं, लेकिन कभी आपने सोचा है कि उस शख्स के मौत को गले लगाने के बाद उसके परिवार का क्या होता है। उसके बच्चे क्या करते हैं। कुछ मौकों पर सरकार लाख दो लाख का मुआवजा दे देती है, लेकिन क्या यह सालों तक पूरे परिवार के गुजर-बसर, बच्चों की पढ़ाई के लिए काफी है। इसी सवाल का जवाब ढूंढने में जुटी है मराठवाड़ा के औरंगाबाद की एक साईं ग्रामीण पुनर्रचना संस्था।
        
औरंगाबाद के सातारा कॉलोनी में स्थित यह संस्था 'आपल्यां मुलांचा', मराठी के इस शब्द का मतलब है 'हमारे बच्चे', नामक आवासीय स्कूल चला रही है। इसमें मराठवाड़ा, विदर्भ यहां तक कि खानदेश से आए तकरीबन 200 ऐसे बच्चे हैं जिनके पिता ने कर्ज के बोझ के कारण खुदकुशी कर ली। यह संस्था ही अब उनका घर है।
        
संस्थान में रहने वाली गीतांजलि सातवीं में पढ़ती है और बीड़ के बरदपुर से आई है। 6 महीने पहले एक दिन खेत पर अपने बाबा को बुलाने गई थी लेकिन वहां पेड़ से झूलती हुई उनकी लाश मिली। वैभवी भी बीड़ से आई है। घर में 5 बहनें एक भाई है। फसल बर्बाद होने और साहूकारों के तगादे से तंग आकर पिता खुदकुशी कर चुके हैं। अब दोनों बड़ी होकर, ऐसे बच्चों को पढ़ाने चाहती हैं जिनके सिर से पिता का साया उठ गया। यहां हर बच्चे की अपनी कहानी है। किशोर के पिता ने ट्रेन के नीचे कूदकर जान दे दी। गांव के सरपंच से उसे ये खबर मिली। पवन जालना के सुभानपुर का है। पिता ने कर्ज से परेशान होकर खेत में फांसी लगा ली। इन बच्चों में कोई डॉक्टर बनना चाहता है, तो किसी की ख्वाहिश फौज में जाने की है।

महाराष्ट्र के अलग-अलग इलाकों से सरकारी मंजूरी लेकर इन बच्चों को आपल मुलांचा लेकर आए हैं श्यामसुंदर कनके। वह खुद जब सात साल के थे तब उनके पिता ने खुदकुशी कर ली थी। अब इन 200 बच्चों के लिए वे मां-बाप सब-कुछ हैं। एनडीटीवी से बातचीत में उन्होंने कहा कि पूरे इलाके में 5000 ऐसे बच्चे हैं जिनके पिता किसान थे, जिन्होंने फसल बर्बाद होने के बाद खुदकुशी कर ली। अब वह कलेक्टर के जरिए ऐसे बच्चों के परिजनों से संपर्क करते हैं, उनकी मंजूरी लेकर उन्हें यहां पढ़ाते हैं। श्यामसुंदर कनके इन बच्चों को रखने से लेकर उन्हें खिलाने पिलाने तक की ज़िम्मेदारी उठा रहे हैं। 650 बच्चों का स्कूल चलाते हैं। जो फीस भरते हैं उनके पैसे और थोड़े बहुत लोगों के अनुदान से इन बच्चों की दुनिया में रंग भरने की कोशिश वह कर रहे हैं।

इन बच्चों के लिए खाना बनाने वाले हाथ भी, खेतों में झुलसे हैं। अनीता के पति की फसल बर्बाद हो गई, मजदूरी नहीं मिली घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया तो फांसी लगाकर जान दे दी। कमोबेश यहां काम करने वाली हर महिला की यही कहानी है।
      
मराठवाड़ा में हर दिन किसान खुदकुशी कर रहे हैं। सरकारें कागजी मुआवजा दे देती हैं, लेकिन शायद ही कोई सोचता होगा कि कागज के नोटों से बाबा की थपकी नहीं मिलती। वह आती है प्यार भरे हाथों से, हमारी आपकी भावना से, संवेदना से।

इस संस्था की मदद आप भी कर सकते हैं। इसके लिए मदद राशि संस्था के खाते में जमा कराई जा सकती है-

साईं ग्रामीण पुनर्रचना संस्था, औरंगाबाद
बैंक ऑफ महाराष्ट्र
खाता नंबर - 60225618174
आईएफएससी कोड - 0001400
ब्रांच कोड - 1400
श्यामसुंदर कनके - मोबाइल फोन नंबर 09423392565

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