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This Article is From Apr 25, 2012

कसाब की याचिका पर न्यायालय का फैसला सुरक्षित

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को वर्ष 2008 के मुम्बई आतंकवादी हमले में दोषी करार दिए गए एवं फांसी की सजा पाए पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। कसाब ने फांसी की सजा बरकरार रखने वाले बम्बई उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी है

बम्बई उच्च न्यायालय ने 21 फरवरी 2011 को कसाब की फांसी की सजा को सही ठहराया था।

मुम्बई की एक निचली अदालत ने छह मई 2010 को कसाब को फांसी की सजा सुनाई। अन्य आरोपों के अलावा कसाब को देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने का भी दोषी ठहराया गया है।

न्यायमूर्ति आफताब आलम एवं न्यायमूर्ति सीके प्रसाद की खंडपीठ ने तीन महीनों से अधिक समय तक चली बहसों के निष्कर्ष पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। न्यायालय में कसाब की याचिका पर सुनवाई गत 31 जनवरी से शुरू हुई थी।

फांसी की सजा को चुनौती देने वाली कसाब की याचिका पर सुनवाई पूरी करने के बाद न्यायालय अब सह-आरोपी फहीम हरशद मोहम्मद यूसुफ अंसारी एवं सबाउद्दीन शेख को छोड़े जाने को चुनौती देने वाली महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर सुनवाई करेगा।

कसाब ने दलील दी कि उसके साथ निष्पक्ष सुनवाई नहीं हुई क्योंकि उसे कानूनी मदद उपलब्ध नहीं कराया गया जो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 (1) के संदर्भ में अनिवार्य है।

कसाब की ओर से पेश वरिष्ठ वकील एवं न्याय मित्र राजू रामचंद्रन ने न्यायालय को बताया कि सुनवाई के प्रारम्भिक स्तर पर वकील रखने के अधिकार एवं आत्म-दोषारोपण के खिलाफ सुरक्षा के अधिकार से वंचित किए जाने से निष्पक्ष सुनवाई विकृत हुई।

कसाब का बचाव करते हुए रामचंद्रन ने न्यायालय को बताया कि शुरुआत से ही यदि कसाब को वकीलों की मदद मिली होती और उसके बाद यदि वह इकबालिया बयान दिया होता तो किसी को हैरानी होती।

कसाब की दलीलों को खारिज करते हुए महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि मुम्बई हमला केवल सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की कोशश नहीं थी बल्कि यह हमला देश एवं उसके नागरिकों के खिलाफ था।

सुब्रमण्यम ने कहा कि मुम्बई हमला काफी सोच-विचारकर किया गया था। हमले की साजिश वर्षो तक रची गई और इसकी तैयारी कई स्थानों पर की गई। हमलावर जानते थे कि वे भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने आए हैं।

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